पेन के बाद भी नहीं छोड़ी रेस
प्रयागराज (ब्यूरो)। दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट से बातचीत के दौरान विक्रम बंगरिया की आंखे भर आई। वह बताने लगे की घर में तीन भाई है और पिताजी बस चालक थे। आर्थिक जरूरत पूरी नहीं हो पाती थी। घर में खाने का भी इंतजाम भी अक्सर नहीं हो पाता था। कई बार भूखे पेट भी दौड़ता था। क्योंकि प्रैक्टिस बहुत जरूरी थी। सबकी सलाह थी कि दौड़कर ही आर्मी में भर्ती होंगे और वहीं से जिंदगी बदल जाएगी। मैं दौड़ता रहा और यह लक्ष्य हासिल हो गया। मुझे सेना में जॉब मिल गयी। इससे स्थितियां थोड़ी बदलीं। आज इंदिरा मैराथन में दूसरा स्थान मिला है। अगली बार फिर आऊंगा और पहला स्थान हासिल करूंगा। वह बताते है कि डाइट, प्रशिक्षण, शेड्यूल यह तो आर्मी में आने पर पता चला। अभी तक आर्मी के लिए 10 किमी रेस ही दौड़ते थे। पहली बार मैराथन में दौड़े और स्थान बनाने में सफल रहे।
विक्रम बंगरिया का सपना एशियन गेम व ओलंपिक में पदक जीतना है। विक्रम बंगरिया का सपना अब एशियन गेम और ओलंपिक में पदक जीतना है। विक्रम के नाम राष्ट्रीय प्रतियोगिता एक स्वर्ण, एक रजत, एक कांस्य है। अर्मी में दो बार स्वर्ण पदक है। क्रिकेट खेलना और नदी में तैरना पसंद है।