काश! आज इस शहर में पैदल ही निकले होते
नैनी को कनेक्ट करने वाले दोनों पुलों पर सुबह से शाम तक रेंगते रहे वाहन
फाफामऊ और शास्त्री ब्रिज से शहर का सफर पूरा करने में लग गये घंटों
पूरे दिन सिर्फ जाम खुलवाने के लिए जूझते रहे पुलिस और ट्रैफिक पुलिस के जवान
प्रयागराज (ब्यूरो)। दोपहर में एक बजे प्रैक्टिकल समाप्त हुआ और वे घरों की ओर लौटे तो जैसे तैसे तिकोनिया चौराहा और बांगड़ धर्मशाला तक पहुंच गये। इसके बाद उन्होंने नये नैनी ब्रिज पर वाहनों की कतार देखी। तय किया कि जहां तक हो सकेगा पैदल चलेंगे। जहां से रास्ता खुला मिलेगा बस या आटो ले लेंगे। इस चक्कर में पैदल चलते चलते दोनों अपने-अपने घर पहुंच गये और आटो-बस लेने की हिम्मत नहीं जुटा सके। घर पहुंचकर शाम चार बजे के करीब स्कूल बस से आने वाले दोस्त को फोन किया तो पता चला कि वह नैनी ब्रिज पर जाम में फंसा हुआ है। फाफामऊ के स्कूल में जॉब करने वाली अनुष्का दिन में स्कूल बंद होने पर घर के लिए निकलीं। उन्हें महेवा पहुंचने में शाम के सात बज गये। शनिवार को ऐसे तमाम उदाहरण सामने आये। अधिकतम आधे घंटे का सफर तय करने वाली दूरी पूरी करने के लिए पब्लिक को चार से पांच घंटे तक रेंगते हुए चलना पड़ा। ट्रैफिक को मैनेज करने के लिए पुलिस को मेला क्षेत्र में चार पहिया वाहनों का प्रवेश वर्जित करना पड़ गया। जाम में फंसे हर शख्स की जुबान पर एक ही बात थी कि ऐसा क्या हो गया था आज? जो आउटर और सिटी का कनेक्शन इस तरह से डिस्टर्ब हो गया।
धूल-धुआं झेलकर हो गए परेशाननया नैनी ब्रिज हो या फिर पुराना पुल। झूंसी पुल हो या फिर फाफामऊ पुल। दोपहर से लेकर शाम तक इन पर वाहनों की कतार लगी हुई थी। कोई भी गाड़ी दूसरे से तीसरे गेयर में डालने की स्थिति में नहीं था। बीच-बीच में पुलिसवालों को कोशिश करते हुए देखकर थोड़ी जान में जान आती जरूर थी लेकिन सुकून का यह पल भी लम्बा नहीं था। बस, आटो और बाइकों पर सवार लोग जाम के चलते धुआं बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं थे फिर भी लाइन में थे क्योंकि पीछे लौटने का ऑप्शन भी नहीं था। कीडगंज, मुट्ठीगंज, गऊघाट जैसे मोहल्लों के लोग भी शहर में मूव करने में झेल गये।
मेला क्षेत्र बना पहला कारण
शनिवार को अचला सप्तमी थी। इस दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु स्नान के लिए संगम तट पहुंचे थे। खिली धूप होने से सुबह 11 बजे के आसपास इतना क्राउड हो गया कि मेला के बाहर का एरिया फुल पैक नजर आने लगा। वाहनों की कतार लगी थी और पैदल चलने वाले भी बमुश्किल ही आगे बढ़ पा रहे थे। माघ मेले में अन्य स्नान पर्वों की तरह अचला सप्तमी को भी पुण्य काल माना जाता है। जो लोग स्नान पर्व पर अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करा पाते वे अचला सप्तमी को डुबकी लगाकर पुण्य कमाते हैं। शनिवार को ही पांच सौ से अधिक कल्पवासिायों के शिविर में शैय्यादान और गऊदान किया गया। इसकी वजह से भी भीड़ बढ़ी रही। ऊपर से खिली धूप ने लोगों को मेले की ओर आकर्षित किया। कुल मिलाकर दोपहर तीन बजे के बाद मेले में चार पहिया वाहनों का प्रवेश बंद कर दिया गया था।
रामबाग पुल बना दूसरा कारण
रामबाग पुल पर आवागमन शुरू हो जाने का दावा वैसे तो शुक्रवार को किया गया था लेकिन यह पुल शनिवार को भी नहीं खुल पाया। नए नैनी पुल पर वाहनों का प्रेशर बढ़ा तो पब्लिक को लगा कि पुराने पुल पर राहत मिल जाएगी। इस चक्कर में लोग डायवर्ट होने लगे तो यहां प्रेशर बन गया। रामबाग पुल बंद होने से बड़ा प्रेशर काली मंदिर बैरहना और बांगड़ धर्मशाला चौराहे पर आ गया। इसके चलते दोपहर होते होते पूरा सिस्टम पर वेंटिलेटर पर चलता हुआ नजर आने लगा। पुलिस और प्रशासन को भी अचला सप्तमी पर होने वाली भीड़ की अधिक जानकारी नही थी। इसकी वजह से जाम से निपटने के इंतजाम नही किए जा सके। भारी वाहनों का प्रवेश बंद नही होने से बड़े वाहन जाम का बड़ा कारण बन गए। अचरज तो यह है कि मौनी अमावस्या जैसे बड़े स्नान पर ट्रैफिक व्यवस्थित होने की वजह से नए और पुराने यमुना पुल पर यातायात चालू था लेकिन शनिवार को यह व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो गई।
मठ बाघमबारी गद्दी में मना अचला सप्तमी समारोह
अचला सप्तमी के अवसर पर श्रीमठ बाघम्बरी गद्दी में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। विचारानंद संस्कृत उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की नींव अचला सप्तमी के दिन ही रखी गई थी। इसके उपलक्ष्य में ही अचला सप्तमी महोत्सव का आयोजन मठ में शनिवार को किया गया। आयोजन में माघ मेला क्षेत्र में प्रवास कर रहे कई बड़े संत शामिल हुए। कार्यक्रम का आरंभ दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। विद्यालय के बटुकों ने वैदिक मंगलाचरण, लौकिक मंगलाचरण, सरस्वती वंदना, स्वागत गीत, श्लोक पाठ और संयुक्त संस्कृत गीत की प्रस्तुति दी। मुख्य अतिथि महंत ओमकार गिरी जी महाराज रहे जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता और गोविंद पुरी जी महाराज ने की। समारोह के दौरान विद्वानों का पूजन और सम्मान किया गया। इसके बाद भंडारे का आयोजन भी हुआ। मठ के महंत बलबीर गिरी जी महाराज ने बताया कि मेला क्षेत्र में प्रवास व कल्पवास कर रहे साधु-संतों एवं विद्वानों का इस मौके पर पूजन व सम्मान किया गया है। भविष्य में कार्यक्रम को और भव्य रूप दिया जाएगा।
माघ मेला के अचला सप्तमी पर शनिवार को बड़ी संख्या में कल्पवासियों ने कल्पवास पूरा होने पर शिविर में विधि विधान से पूजन अर्चन के बाद शैय्या दान कर भण्डारे का आयोजन किया। प्रतापगढ़ के कोहडौर के बृजेंद्रमणि इंटरमीडिएट कॉलेज के पूर्व प्रधानाचार्य रामजीत तिवारी सहित 98 कल्पवासियों ने विधि विधान से पूजन अर्चन के बाद शैय्या दान किया। यह शैय्या दान कार्यक्रम सूरज पण्डा सेक्टर-3 त्रिवेणी मार्ग पर संपन्न हुआ। शैय्या दान में बेड सहित सभी घरेलू उपयोग की सामग्रियां और खाद्यान्न सामग्रियां तीर्थपुरोहित को दक्षिणा के साथ प्रदान किया। भण्डारे में बडी संख्या में सगे संबंधी और श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण किया। वीकंड एंज्वॉयमेंट पड़ा फीका
चार बड़े स्नान पर्व निपट जाने के बाद वीकंड पर खिली धूप के चलते शहर के लोग भी बड़ी संख्या में संगम घूमने के लिए निकले थे। पूरा परिवार गाड़ी में बैठकर घर से निकला तो जोश में था कि बोटिंग करेंगे, मेला घूमेंगे एंज्वॉय करेंगे। इन लोगों के वाहन जाम में फंसे तो पूरे प्लान की हवा निकल गयी। जो लोग अर्ली मार्निंग में पहुंच गये थे और दोपहर बाद निकलने की कोशिश की, उनके पास तो आप्शन ही नहीं रहा कि आगे कैसे बढ़ें। घंटाभर से अधिक समय तक उन्हें एक ही स्थान पर खड़े रहना पड़ गया। ऐसे लोग खुद को ही कोसते दिखे क्योंकि गाड़ी पार्क करने का ऑप्शन नहीं था। बाहर निकलकर कुछ खरीदने का ऑप्शन नहीं था। गाड़ी का शीशा बंद करके एसी चलाएं तो ठंड लग रही थी और शीशा नीचे गिराने पर बाहर से आने वाला धुआं और हार्न का शोर बेचैन कर दे रहा था।