10वीं से महंगी हो गयी छठीं क्लास की बुक्स
प्रयागराज (ब्यूरो)। प्राइवेट स्कूलों में नए सेशन में कॉपी किताबें खरीदना पैरेंट्स के लिए मुश्किल होता जा रहा है। कारण सिर्फ एक है। हर साल किताबें चेंज होना और उनके रेट में बढ़ोतरी हो जाना। यह दोनों फैक्टर लोगों की समझ से बाहर हैं। इंतेहा तो यह है कि कक्षा छठवीं की किताबें कक्षा दस की किताबों से महंगी हैं। ऐसे में पैरेंट्स का कहना है कि यह फंडा तो बिल्कुल अबूझ है। फिलहाल किताब की दुकानों पर रोजाना पैरेंट्स हजारो रुपए की किताबें खरीद रहे हैं।
रेट में दो गुने का है अंतर
यह अंतर कई प्राइवेट स्कलों में देखने में मिल जाएगा। एग्जाम्पल के तौर पर एसएमसी में कक्षा दस की किताबों का रेट 4303 है, जबकि कक्षा छह की किताबों का सेट 7202 में आता है। पैरेंट्स का कहना है कि प्रकाशकों की तरफ से मनचाहा रेट लगाया जाता है। कक्षाओं में चलाई जाने वाली रेफरेंस बुक के दाम सिलेबस की किताबों से बहुत अधिक होता है। इनको खरीदना भी जरूरी है। यह किताबें उसी दुकान पर मिलती हैं जो स्कल की ओर से फिक्स की जाती है। इन किताबों की वजह से बच्चों की पढ़ाई महंगी होती जा रही है।
किस क्लास मे कितने की किताबें
सेंट मेरीज कांवेंट
1 3118
2 3501
3 3926
4 4040
5 4044
6 7202
7 6735
8 6897
9 7700
10 4303
सेंट जोसेफ कालेज
6 6801
7 6966
8 7126
9 7236
10 5837
इस साल चेंज हो गया ऑथर
पेशे से वकील रजनीश प्रताप सिंह ने बताया कि उनका बेटा सेंट जोसेफ कॉलेज में क्लास 9 में पढ़ता है। उन्होंने जो किताब खरीदी है वह क्लास में नही चलेगी। उसका आथर चेंज हो गया है। उन्होंने बताया कि कम्प्यूटर कामर्शियल अप्लीकेशन नाम की यह बुक 900 रुपए की है और बावजूद इसके इस बार इसमें चेंजेस हो गए हैं। उन्होंने बताया कि उनके बेटे की किताबों का सेट 7700 रुपए का पड़ा है।
सुबह खरीदी, दोपहर में बुक रिजेक्ट
इसी तरह सलोरी के रहने वाले रिशीकांत सिंह भार्गव बुक डिपो पर पहुंचे थे। उन्होंने बताया कि मार्निंग में उन्होंने एसएमसी की क्लास 9 की बुक कम्प्यूटर अप्लीकेशन खरीदी है। बेटी ने दोपहर में बताया कि यह किताब क्लास में नही चलेगी। इसको लेकर उन्होंने बुक सेलर से कम्प्लेंट दर्ज कराई। वह बोले की इस साल किताबों का रेट महंगा गया है।
कवर चढ़ाने के दो सौ एक्स्ट्रा
शहर के प्राइवेट स्कूलों की ओर से किताबें खरीदने का स्थान निर्धारित रखा गया है। जिस शॉप के लिए बोला जाएगा हीं पर पूरा सेट मिलेगा। यह किताबें जिन बुक डिपो पर मिलती हैं वहां पर संचालक ने बताया कि उनकी ओर से किताबों पर कवर चढ़ाकर बेचा जाता है। इसके डेढ़ से दो सौ रुपए एक्स्ट्रा लिए जाते हैं। इसके लिए उन्होंने इम्प्लाई भी रखे हुए हैं। बताते हैं कि हमें हर किताब पर केवल 15 परसेंट मिलता है। बाकी मुनाफा प्रकाशक और स्कूल मैनेजमेंट के पास चला जाता है। इस साल भी 10 से 20 फीसदी तक किताबें महंगी हुई हैं।
एक ही क्लास की किताबों के आथर चेंज
पैरेंट्स बताते हैं कि आईसीएसई के स्कूलों में एक ही क्लास के गल्र्स और ब्वॉयज की किताबों के चैप्टर चेंज कर दिए जाते हैं। जिससे वह एक दूसरे की बुक से पढ़ाई नही कर सकते हैं। एक पैरेंट्स ने बताया कि उनके दो बच्चे एक ही क्लास में पढ़ते हैं लेकिन दोनों की बुक अलग अलग खरीदनी पड़ी है। दोनों के चैप्टर के आथर अलग हैं।
स्कूूलोंं की मनमानी रोजाना बढ़ती जा रही है। कोई हिसाब किताब है ही नही। किताबें उनकी मनमर्जी से उसकी दुकान से लेना पड़ता है जहां उनका अधिक कमीशन फिक्स है। अगर इसी तरह चलता रहा तो केवल पूूंजीपतियों के बेटे वहां पढ़ेंगे और वह क्या पढ़ेंगे, यह सभी जानते हैं।
कश्यप मिश्रा
आपने बिल्कुल सही मुद्दा उठाया है। अभिभावक परेशान हो चुके हैं। पढाई महंगी होती जा रही है। भविष्य में मध्यम वर्ग के पास बच्चों को प्राइवेट स्कलो मे ंपढ़ाने का विकल्प शायद न रह जाए।
उर्मिला
कोरोना के बाद से प्राइवेट स्कूल धन उगाही में जुटे हुए हैं। चाहे फीस वृद्धि के नाम पर हो गया एडमिशन, किताबें या ड्रेस का मामला हो। किताबों के सेट का पैकेज ऐसे बताय ाजाता है जैसे कुछ और लेने आए हों। इनके रेट भी मनचाहे लगाए जो हैं।
विनीत द्विवेदी
अगर स्कूल फीस बढ़ा रहे हैं तो टीचर्स की सैलरी भी तो बढ़ रही है। फीस बढ़ाने के अलावा और क्या तरीका है कि कोई संस्था अपने बढ़ते हुए खर्चों के साथ न्याय कर सके।
गौरेश आहूजा