एक कंपनी ने दूसरी को किया टेकओवर तो चेंज हो गया अस्पताल से टाइअपबीमाधारक को करना पड़ गया अस्पताल बिल का भुगतानक्लेम करने पर अस्पताल से टाइअप न होने का बहाना मिला


हेल्थ इंश्योरेंस करने वाली कंपनी को कोई दूसरी कंपनी टेकओवर कर ले या फिर उसका अस्पताल के साथ टाइअप कैंसिल हो गया, क्लेम का भुगतान रोका नहीं जा सकता है। यह स्टेटस उपभोक्ता फोरम में चल रहे एक मामले के फैसला से सामने आया है। फोरम ने इसे लापरवाही माना है और इंश्योरेंस करने वाली कंपनी को इलाज के सम्पूर्ण बिल के साथ आठ फीसदी ब्याज का भुगतान करने का आदेश दिया है। इसके लिए कंपनी को दो महीने का मौका दिया गया है। हार नहीं मानी
यह कहानी है शहर के बादशाही मंडी निवासी राजेश कुमार ओझा की। उनकी पत्नी का पिछले दिनों इलाज के दौरान निधन हो गया था। उन्होंने 20 लाख रुपये का हेल्थ इंश्योरेंस करा रखा था। इसके बाद भी उन्हें पत्नी के इलाज का बिल करीब सवा चार लाख रुपये अपने पास से भरना पड़ गया। क्लेम के भुगतान के लिए बिल लगाने पर न तो अस्पताल ने साथ दिया और न ही इंश्योरेंस करने वाली कंपनी ने। इसके बाद राजेश ने इंश्योरेंस कंपनी से इंसाफ की लड़ाई लडऩे का फैसला लिया। उन्होंने जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग प्रयागराज में वाद दायर किया।दो कंपनियां पार्टी


उपभोक्ता फोरम में दायर किये गये वाद में उन्होंने हेल्थ इंश्योरेंस करने वाली दो कंपनियों को पार्टी बनाया। इन दोनों कंपनियों के लोकल ऑफिसेज के स्टाफ के साथ ही उनके हेडक्वार्टर के ऑफिसर्स को भी पार्टी बनाया। वाद में उन्होंने डिटेल शेयर करते हुए बताया किउन्होंने स्वास्थ्य बीमा 2019 में कराया था। पॉलिसी 20 मई 2019 से 19 मई 2020 तक प्रभावी रही। इस दौरान उन्होंने कोई क्लेम नहीं लिया। इसके बाद भी वे लगातार पॉलिसी रिन्यू कराते रहे। इसी दौरान दोनो कंपनियों ने हाथ मिला लिया। यानी बजाज एलियांज की रिस्पांसबिलिटीज को आदित्य बिरला हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी ओन करेगी। पहली कंपनी का टाइअप टैगोर टाउन में स्थित प्राइवेज अस्पताल के साथ जबकि दूसरी कंपनी ने जब काम करना शुरू किया तो उसने टाइअप समाप्त कर दिया.इस बीच उनकी बीमा होल्डर पत्नी बीमार हो गईं। उनका उपचार पार्वती नर्सिंग होम कमला नेहरू रोड में हुआ। इलाज में करीब दो लाख 35 हजार रुपये खर्च हुए जिसका भुगतान विपक्षी तीन व चार हेल्थ बीमा के अनुसार किया गया। दो बार कराया इलाज

दोबारा पत्नी के बीमार होने पर वह इलाज के लिए टैगोर टाउन कर्नलगंज फिनिक्स हॉस्पिटल में एडमिट किए। इस दौरान इलाज पर 82.077 हजार रुपये खर्च किए। फिर दोबारा बीमार होने पर पत्नी निशा को फिनिक्स में ही भर्ती कराए। जहां इलाज के दौरान 09 दिसंबर 2022 तक चला और खर्च तीन लाख 31 हजार 092 रुपये हुआ। फिनिक्स में भर्ती के दौरान दोनों बिलों को जोड़ कर करीब चार लाख 13 हजार 169 रुपये का बिल इंश्योरेंस कंपनी को सौंप दिया। राजेश का कहना है कि अस्पताल के साथ टाइअप नहीं होने और इलाज की प्री इंफारमेशन नहीं देना बताकर उनके क्लेम का पेमेंट रोक दिया गया। उन्होंने फोरम को बताया कि पैसों के अभाव में उनकी पत्नी निशा ओझा की मृत्यु हो गई। उन्होंने फोरम से इलाज में खर्च पैसे का भुगतान करने का आदेश देने की गुहार लगायी। फोरम में सुनवाई के दौरान कंपनी की तरफ से अपना भी तर्क रखा गया लेकिन वह टिक नहीं पाया। कंपनियों के तर्क को खारिज कर दिया गया।

बाक्सआखिरकार पीडि़त को मिल गया इंसाफइस पूरे मामले की कई महीने तक जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग प्रयागराज के अध्यक्ष मो। इब्राहीम और सदस्य प्रकाशचंद्र त्रिपाठी द्वारा सुनवाई की गई।पैरवी कर रहे अधिवक्ता के द्वारा परिवादी की तरफ से विपक्षियों के खिलाफ सारे साक्ष्य और सुबूत पेश किए गए।पत्रावलियों में उपलब्ध साक्ष्य और सुबूतों के आधार पर जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग प्रयागराज द्वारा 18 सितंबर 2024 को फैसला सुनाया गया।
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग प्रयागराज ने विपक्षियों को आदेश दिया कि वह निर्णय की तिथि से दो माह के अंदर परिवादी को चार लाख 13 हजार 169 रुपये मय आठ प्रतिशत साधारण वार्षिक व्याज की दज से भुगतान करें।इतना ही नहीं विपक्षीगण परिवादी को मानसिक एवं शारीरिक क्षतिपूर्ति के रूप में बीस हजार तथा वाद व्यय के रूप में दो हजार भी का भी भुगतान करेंगे। फोरम ने अपने आदेश में यह भी मेंशन किया है।

Posted By: Inextlive