- मोबाइल एडिक्शन सेंटर में रोजाना पहुंच रहे हैं औसतन दस मामले- काउंसिलिंग के अलावा दवाओं के जरिए किया जा रहा है इलाज4-6 घंटे प्रतिदिन स्क्रीन पर बिताते हैं 8 से 12 वर्ष के बच्चे औसतन

प्रयागराज ब्यूरो ।बच्चों और किशोरों में मोबाइल फोन की लत बढ़ती जा रही है। पढऩे लिखने और खेलने की उम्र में वह सारा समय मोबाइल के साथ बिता रहे हैं। हालांकि इसके जिम्मेदार भी पैरेंट्स हैं। बच्चों को बहलाने के लिए दिया गया मोबाइल फोन बाद में उनकी आदत में शुमार हो जाता है। जब हैबिट अपनी हदें पार करने लगती है तो मजबूरन माता पिता को अपने बच्चों की निगरानी पर मजबूर होना पड़ता है। काल्विन अस्पताल के मोबाइल एडिक्शन सेंटर में आने वाले मामले इसका उदाहरण बने हुए हैं। मोबाइल एडिक्शन के शिकार बच्चों की लत छुड़ाने के लिए न केवल उनकी काउंसिलिंग की जाती है, बल्कि कई बार मरीजों की तरह दवा देकर उनका इलाज भी करना पड़ता है।
हर महीने आते हैं दस नए मामले
मोबाइल एडिक्शन सेंटर में इस तरह के हर माह औसतन दस नए मामले आ रहे हैं। यह सेंटर 2017 में खोला गया था। जिसका उददेश्य बच्चों, किशोरों और युवाओं में बढ़ती मोबाइल की आदत से होने वाली बीमारियों से छुटकारा दिलाना था। डॉक्टर्स का कहना है कि लगातार मामले बढ़ते जा रहे हैं। केस स्टडी में पता चलता है कि नौकरी और घर के कामों में व्यस्त पैरेंट्स बच्चों को बिजी रखने के लिए उन्हें मोबाइल थमाते हैं और बाद में यही बच्चों की कमजोरी बन जाती है। जिससे पीछा छुड़ाना आसान नही होता है।
तमाम जुगत लगाने में जुटे पैरेंट्स
बच्चों में मोबाइल की आदत को कम किया जा सके। उनकी स्क्रीनिंग टाइमिंग कम हो, ताकि बच्चे अपने खानपान के साथ मानसिक व शारीरिक विकास पर भी ध्यान दे सकेंॅ। इसके लिए पेरेंट्स तमाम जुगत भिड़ा रहे हैं। वह बकायदा बच्चों की निगरानी कर रहे हैं, जिससे बच्चों और पैरेंट्स के रिश्तों में अविश्वास का भाव पैदा हो रहा है। यहां तक कि कई माता पिता ने बच्चों के स्क्रीन टाइमिंग को फिक्स करते हुए अलार्म भी लगाया हुआ है। मोबाइल पर बच्चे भटक न जाएं इसके लिए फोन में तमाम निगरानी साफ्टवेयर भ्ीा लगाए जा रहे हैं।
क्या कहती है लेटेस्ट स्टडी
आज के डिजिटल युग में, बच्चों की स्क्रीन टाइम की बढ़ती मात्रा ने माता-पिता के लिए एक नई चुनौती उत्पन्न कर दी है। हाल के शोधों के अनुसार 8 से 12 वर्ष के बच्चे औसतन 4-6 घंटे प्रतिदिन स्क्रीन पर बिताते हैं, जबकि किशोरों के लिए यह आंकड़ा 7-10 घंटे तक पहुंच सकता है। इससे बचने के लिए माता पिता कई प्रकार के टूल का सहारा ले रहे हैं। कोई रास्ता नही दिखने पर वह एक्सपट्र्स या डॉक्टर्स का सहारा भी ले रहे हैं।
वर्जन- फोटो
बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम को प्रतिदिन दो घंटे तक सीमित रखना चाहिए। यदि बच्चा इससे अधिक स्क्रीन टाइम बिताता है, तो यह उसके लिए हानिकारक हो सकता है। आजकल, माता-पिता को अपने बच्चों की स्क्रीन मॉनिटरिंग करने की आवश्यकता है, ताकि वे समय सीमा निर्धारित कर सकें और बच्चों को अन्य पाठ्येतर गतिविधियों में शामिल कर सकें।
डॉ। राकेश पासवान, मनोचिकित्सक

यह सचमुच हर माता-पिता की समस्या है, क्योंकि बच्चे अब अधिकतर डिजिटल एडिक्शन के शिकार हो चुके हैं। लेकिन माता-पिता को उन पर नियंत्रण रखने की बेहद आवश्यकता है। मैं अपने 11 साल के बच्चे के हर रोज़ स्क्रीन टाइम की मॉनिटरिंग करती हूँ ताकि उसकी गतिविधियों पर नजऱ रख सकूं और यह सुनिश्चित कर सकूं कि वह गलत दिशा में न जाए। मैं एक समय सीमा भी निर्धारित करती हूँ ताकि वह ज्यादा से ज्यादा स्क्रीन टाइम न बिताए।
अंजना शुक्ला, पैरेंट

बच्चों के मोबाइल और टीवी स्क्रीनिंग आजकल एक बड़ी समस्या बन गई है, जिससे कई तरह की दिक्कतें उत्पन्न होती हैं। इससे बच्चों के रूटीन और स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। आजकल के माता-पिता को जागरूक होना पड़ेगा ताकि वे अपने बच्चों को शारीरिक और मानसिक समस्याओं से बचा सकें। मैं अपनी 16 साल की बेटी पर पूरी ध्यान देने की कोशिश करता हूंं।
शिव कुमार, पैरेंट

Posted By: Inextlive