बेधड़क बिना हेलमेट स्कूल पहुंच रहे बच्चे
प्रयागराज (ब्यूरो)। बच्चे बगैर हेलमेट लगाए स्कूल और कोचिंग जा रहे हैं। शहर की सड़कों पर स्कूली डे्रस में बच्चों को स्कूटी और बाइक से फर्राटा भरते देखा जा सकता है, मगर कोई भी विभाग कार्रवाई को तैयार नहीं है। यातायात विभाग जाम छुड़ाने में ही अपना दम खो दे रहा है तो आरटीओ कार्यालय को इसकी जांच पड़ताल की फुर्सत नहीं है। यहां तक की बच्चों के आगे गार्जियन भी बेबस हो जा रहे हैं, वहीं स्कूल प्रबंधन को केवल एडमीशन और फीस से मतलब है। फिर चाहे बच्चे सकुशल घर पहुंचे या नहीं।
फास्ट राइडिंग करते हैं बच्चे
शहर के सिविल लाइंस एरिया में कई ऐसे स्कूल हैं, जिनमें शहर के नामी गिरामी परिवार के बच्चे पढ़ते हैं। ये बच्चे स्कूल स्कूटी या फिर बाइक से आते हैं। सुबह और दोपहर में इसको आसानी से देखा जा सकता है। स्कूल छूटने के बाद सिविल लाइंस के कंपनी बाग गेट, हॉट स्टफ चौराहा, धोबीघाट चौराहा, एजी आफिस चौराह, काफी हाउस के पास स्कूली बच्चों का जमावड़ा लगता है। स्कूटी और बाइक से स्कूल आने वाले बच्चे इन जगहों पर झुंड बनाकर खड़े होते हैं।
स्कूली बच्चों पर चलना था अभियान
मार्च माह में स्कूली बच्चों के वाहन से स्कूल आने पर रोक के शासनादेश पर उस समय जांच पड़ताल शुरू कराई थी। मगर वह वक्त इग्जाम का था। जिस पर यह कहा गया था कि स्कूटी और बाइक से स्कूल आने वाले बच्चों की अभियान चलाया जाएगा मगर जुलाई में। हैरत की बात है कि जुलाई आधी बीत गई है और अभी तक आरटीओ को शासनादेश की याद नहीं आई है। जबकि स्कूल खुलने के बाद बच्चे वाहनों से आ जा रहे हैं।
कम से कम हेलमेट तो लगा लें
खबर के साथ लगाई जा रही तस्वीर सारी हकीकत बयां करने के लिए काफी है। तस्वीर बता रही है कि कैसे स्कूली बच्चे बगैर हेलमेट के स्कूल आ जा रहे हैं। इस तस्वीर में यातायात विभाग के इंस्पेक्टर और सिपाही खड़े हैं। बच्चों में जांच का कतई भय नहीं दिख रहा है। तस्वीर में बच्चे बगैर हेलमेट के दिख रहे हैं। ऐसे में कानूनी कार्रवाई तो यातायात विभाग की तरफ से बनती है मगर जिम्मेदारी तो बच्चों और उनके गार्जियन की भी है। आखिर गार्जियन को घर से निकलते वक्त यह तो देखना ही चाहिए कि उनके बच्चे ने हेलमेट लगा रखा है या नहीं।
मोबाइल पर करा देते हैं बात
गाहे बगाहे यातायात विभाग के कुछ दारोगा अपनी तरफ से स्कूली बच्चों को चौराहों पर रोक लेते हैं। जब वह हेलमेट और कागज के बारे में पूछते हैं तो बच्चे अपना परिचय बताने लगते हैं। दारोगा या सिपाही की बात मोबाइल पर अपने गार्जियन से करा देते हैं। जिस पर मजबूरी में दारोगा सिपाही को बच्चों को बगैर चालान के छोडऩा पड़ता है।
लड़कियां भी नहीं लगाती हेलमेट
माना जाता है कि लड़कियां कुछ ज्यादा अवेयर होती हैं, मगर हेलमेट के मामले में लड़कियां भी कम नहीं हैं। वह भी बगैर हेलमेट लगाए स्कूल कोचिंग आती जाती हैं। अक्सर यातायात विभाग के दारोगा सिपाही लड़कियों को रोकते नहीं हैं, जिससे वह भी मनमानी पर उतारु रहती हैं। कौन चेक करेगा कागज, हेलमेट
स्कूल जाने वाले छात्रों के वाहन का कागज और हेलमेट कौन चेक करेगा ये बड़ा सवाल है। यातायात विभाग के नब्बे फीसदी दारोगा सिपाही चौराहा हांकने में लगे रहते हैं और आरटीओ कार्यालय के अफसर शहर में अचानक जांच अभियान के नाम पर प्रकट होते हैं फिर लुप्त हो जाते हैं। जिसका फायदा बच्चे उठा रहे हैं।
ये मनमानी जानलेवा है
अब बात आती है स्कूल प्रबंधन की। सिविल लाइंस में कई ऐसे स्कूल हैं, जिनके आगे पुलिस अफसरों की भी नहीं चलती है। इन स्कूलों में एडमीशन के लिए पुलिस अफसरों को भी पसीना आ जाता है। ऐसे में इनकी पहुंच का अंदाजा लगाया जा सकता है। इन स्कूलों के ही छात्र स्कूटी या बाइक से आते जाते हैं। मगर इन स्कूलों का प्रबंधन इन बच्चों पर कोई सख्ती नहीं करता है।
अमित सिंह, इंस्पेक्टर यातायात विभाग