वल्र्ड डायबिटीज डे स्पेशललगातार बढ़ रही टाइप वन डायबिटीज के मरीजों की संख्याआटो इम्यून बीमारी की वजह से नही बनती है इंसुलिन की मात्रा

प्रयागराज (ब्‍यूरो)। ये कहना कि डायबिटीज केवल एडल्ट और बुजुर्गों को होती है तो यह गलत है। वर्तमान में बच्चों में टाइप वन डायबिटीज के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। खुद पैरेंट्स भी इसे लेकर सरप्राइज हो रहे हैं। जांच कराने के बाद पता चलता है कि बच्चा शुगर की समस्या से ग्रसित है। जिसकी वजह से उसे कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

आटो इम्युन पर हमला
डॉक्टर्स का कहना है कि तमाम अनुवांशिक या जेनेटिक कारणों से टाइप वन डायबिटीज बढ़ रही है। इसमें 5 से 15 साल के बच्चों की पैंक्रियाज की सेल्स पर आटो इम्युन बीमारियां हमला करती हैं। जिससे इंसुलिन बनना बद हो जाता है और बच्चे को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। टाइप वन डायबिटीज से ग्रसित बच्चों में ऐसे कई लक्षण होते हैं जो डायबिटीज की ओर इशारा करते हैं। अगर पहचान होने पर बच्चे की जांच कराई जाए तो समय रहते डायबिटीज का इलाज शुरू कराया जा सकता है।

बच्चों में इन लक्षणों से रहें होशियार
बार-बार संक्रमण होना
संक्रमण की वजह से वोमेटिंग, डायरिया और सांस लेने में तकलीफ
ब्लड में शुगर लेवल 400 से 600 तक बढ़ जाना
पेशाब में काली रंग की चीटी का लगना
बच्चे का वेट लॉस होना या बॉडी की ग्रोथ कम होना

फास्ट फूड से बनाएं दूरी
डॉक्टर्स का कहना है कि टाइप वन के अलावा बच्चों में टाइप टू डायबिटीज भी देखी जा रही है। इसका कारण फास्ट फूड का अधिक सेवन करना है। इसकी वजह से बच्चों में कम उम्र में मोटापा बढऩे लगता है और बाद में डायबिटीज का कारण बन जाता है। ऐसी स्थिति में 18 से 20 साल तक की उम्र में डायबिटीज अपने चरम पर पहुंच जाती हे। यही कारण है कि डॉक्टर्स बच्चों को अधिक फास्ट फिूड खिलाने से मना करते हैं।

12 फीसद हैं शिकार
एक ओर जहां पापुलेशन में एक से दो फीसदी टाइप वन टू डायबिटीज के मरीज हैं तो दूसरी ओर अनुमानित 12 फीसदी तक टाइप टू डायबिटीज के मरीज हैं।
खुद डब्ल्यूएचओ का कहना है कि जिस तरह से इंडिया में शुगर के मरीज बढ़ रहे हैं, उसको देखते हुए 2030 तक भारत दुनिया में डायबिटीज मरीजों की राजधानी बन जाएगा।
कई बार लोगों को पता ही नही होता है कि वह डायबिटीज से ग्रसित हैं। इस वजह से उनके शरीर के दूसरे अंग भी प्रभावित होने लगते हैं।
अगर माता पिता में किसी एक को डायबिटीज हो तो बच्चों को हर छह माह में अपना ब्लड शुगर लेवल चेक कराते रहना चाहिए।

बच्चों में टाइप वन डायबिटीज के मामले बढ़ रहे हैं। मेरी क्लीनिक में ऐसे ढाई सौ बच्चे रजिस्टर्ड हैं। आटो इम्युन डिजीज की वजह से ऐसा हो रहा है। लोगों को सतर्क रहना है और बच्चों की जीवन शैली पर विशेष ध्यान देना होगा। लक्षणों को पहचानकर डायबिटीज की जांच करानी होगी।
डॉ। सुबोध जैन
सीनियर फिजीशियन

Posted By: Inextlive