सनातन धर्म में प्रकृति की पूजा का विशेष महत्व है. सूर्य और प्रकृति की उपासना के इसी महापर्व डाला छठ महोत्सव की शुरुआत सोमवार को नहाय खाय से होगी. छठ व्रत इस बार 10 नवम्बर को पड़ रहा है. नहाय खाय के दिन व्रती महिलाएं नए वस्त्र धारण करके व्रत के सकुशल पूर्ण होने की कामना करती है. इस मौके पर विशेष रूप से नए गुड़ और नए चावल की खीर प्रसाद स्वरूप ग्रहण करेगी. चार दिनों के इस व्रतपर्व पर व्रती महिलाओं के साथ पूरे परिवार को नियमों के साथ रहना अनिवार्य रहता है.


प्रयागराज (ब्यूरो)। डाला छठ पर्व परिवार की सुख-समृद्धि के लिए मनाया जाता है। इस मौके पर महिलाएं पूरे 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखकर सूर्य और छठ मइया की उपासना करती है। पर्व पर षष्ठी तिथि पर अस्तांचल सूर्य को अघ्र्य देकर महिलाएं पूजा करती है। इस दौरान घाटों पर बड़ी संख्या में महिलाएं रूक कर पूरी रात जागरण करती है। इसके बाद सप्तमी को उगते हुए सूर्य को अघ्र्य देने और पूजन के बाद छठपर्व महोत्सव का समापन होता है। छठ पूजा महोत्सव का उल्लेख त्रेतायुग और द्वापरयुग में भी मिलता है। त्रेतायुग में माता सीता द्वारा भी सूर्य उपासना का प्रसंग आता है। इसी प्रकार द्वापरयुग में भी जब पांडवों ने अपना राजपाठ खो कर वन-वन भटक रहे थे। उस समय पाण्डवों की माता कुंती और द्रोपदी द्वारा भी छठी मईया का व्रत व पूजन करने प्रसंग मिलता है।

ठेकुआ होता है मुख्य प्रसाद
डाला छठ पूजा के दौरान वैसे तो कई तरह के प्रसाद चढ़ते है। लेकिन इसमें सबसे मुख्य प्रसाद ठेकुआ होता है। जो गेंहू के आटे और देशी घी व चीनी को मिलकर बनाया जाता है। इसी प्रसाद को ग्रहण करके व्रती महिलाएं पारण करती है.इसके साथ ही नींबू, नारंगी, गन्ना, नारियल, सिंघाड़ा भी छठ मईया को प्रसाद स्वरूप चढ़ाया जाता है।

Posted By: Inextlive