चेक कर लें रेडिएशन का स्टेटस इंपोटेंट बना सकता है मोबाइल
प्रयागराज ब्यूरो ।मोबाइल फोन खरीदते समय लोग सबसे पहले कैमरा, उसकी रैम, प्रोसेसर, स्क्रीन साइज और फिर स्टोरेज चेक करते हैं। शायद ही कोई ऐसा हो जो फोन का रेडिऐशन लेवल चेक करता हो। यकीन मानिये फोन का रेडिएशन लेवल चेक नही किया गया तो यह आपके सामने तमाम हेल्थ इश्यूज खड़े कर सकता है। यूजर को नपुंसक भी बना सकता है। यह बात दुनियाभर में हुई तमाम सर्वे और स्टडी में प्रूव हो चुकी है। यही कारण है कि कंपनियां अपने फोन बाजार में उतरने से पहले उनका रेडिएशन लेवल खतरे के निशान से नीचे रखने की कोशिश करती हैं।
कम हो रहा स्पर्म काउंट
रेडिएशन की वजह से लोगों का स्पर्म काउंट कम हो रहा है। साथ ही उसकी क्वालिटी और महिलाओं में फर्टिलिटी की समस्या भी हो रही है। खुद डॉक्टर्स भी इस चीज को स्वीकारते हैं। यही कारण है कि मोबाइल फोन कम यूज करने की हिदायत दी जाती है। इसके अलावा अन्य कई हेल्थ इश्यूज भी होते हैं। जिनकी वजह से से सेहत पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
रेडिएशन से होने वाले हेल्थ इश्यूज
नींद का कम होता जाना
सोते समय बार बार नींद का टूटना
आंखों में भारी पन और सिर में दर्द होना
हार्ट अटैक के रिस्क में इजाफा
माइंड फाग और सुनने में कमी आना
स्पर्म काउंट व क्वालिटी में कमी के साथ फर्टिलिटी की प्राब्लम
दूरसंचार विभाग की ओर से मोबाइल फोन की एसएआर वैल्यू 1.6 यूनिट तय की है।
इससे अधिक एसएआर होने पर सेहत को खतरा हो सकता है।
मोबाइल फोन कंपनियां अपने प्रोडक्ट की एसएआर वैल्यू को निर्धारित रखती हैं।
फोन पर एक साथ कई काम करने पर उसका रेडिएशन लेवल बढ़ जाता है।
एसएआर वैल्यू को स्पेसिफिक एब्जार्पशन रेट कहते हैं। फोन से निकलने वाली रेडियो फ्रीक्वेंसी को एसएआर से मापा जाता है।
अपने मोबाइल फोन की एसएआर वैल्यू जानने के लिए *प्त०७प्त पर डायल किया जा सकता है।
फोन के मैनुफैक्चरर की वेबसाइट से भी एसएआर वैल्यू पता कर सकते हैं।
फोन की सेटिंग में जाकर एसएआर वैल्यू पता की जा सकती है।
गूगल पर फोन का माडल नंबर डालकर भी एसएआर वैल्यू को पता किया जा सकता है।
इस तरह से होगा रेडिएशन से बचाव
फोन को हमेशा अपनी बॉडी से थोड़ी दूर रखिए।
मोबाइल फोन को जेब में मत रखें, उसे किसी पर्स या बैग में रखें।
बात करते समय हेड फोन या स्पीकर यूुज करें।
सोते समय मोबाइल को तकिए के नीचे या पास मत रखें।
नेटवर्क वीक होने पर मोबाइल का इस्तेमाल करने से बचें।
मोबाइल फोन गर्म होने पर उसे दूर रख दें।
बच्चों को मोबाइल फोन देने से बचें।
90 फीसदी मोबाइल यूजर
इस समय देखा जाए तो हर हाथ में मोबाइल फोन है। आंकड़ों के मुताबिक 18 साल से अधिक उम्र के 90 फीसदी से अधिक लोग स्मार्ट फोन का यूज कर रहे हैं। एक्सपर्ट कहते हैं कि हमेशा बेहतर कंपनी का मोबाइल खरीदना चाहिए। खरीदते समय ही उसकी रेडिएशन वैल्यू को चेक करना चाहिए। बाजार में बिक रहे सस्ते और लोकल क्वालिटी के फोन का रेडिएशन अधिक होता है। यह मोबाइल लंबे समय तक यूज करने से नपुंसकता के लक्षण आ सकते हैं।
पैंट की जेब मेंन रखें
एमएलएन मेडिकल कॉलेज के यूरोलॉजी डिपार्टमेंट के एचओडी डॉ। दिलीप चौरसिया का कहना है किमोबाइल फोन को कभी भी पैंट की जेब में नही रखना चाहिए। लैपटाप को अपने ऊपर रखकर काम नहीं करना चाहिए। दोनों स्थिति में स्पर्म काउंट और उसकी क्वालिटी दोनों प्रभावित होती है। यही कारण है कि पिछले कुछ सालों में इंपोटेंसी का प्रतिशत 15 से बढ़कर 32 हो गया है। डब्ल्यूएचओ की माने तो आने वाले कुछ सालों में यह 42 फीसदी का आंकड़ा पार कर जाएगा। यही कारण है कि तेजी से आईवीएफ सेंटर खुल रहे हैं।
डॉ चौरसिया का कहना है कि स्पर्म काउंट कम होने से लेट एज में शादी होने पर बच्चा पैदा होने में इश्यूज आते हैं। शादी के एक दो साल के भीतर बच्चे न होने पर सोसाइटी के लेवल पर कमेंट आने लगते हैं। इससे बचने का रास्ता यह है कि पुरुष 25 साल एज तक अपना स्पर्म प्रिजर्व करा लें। शादी के बाद पत्नी नार्मल प्रेग्नेंट नहीं हुई तो प्रिजर्व स्पर्म का इस्तेमाल आईवीएफ प्रेग्नेंसी के लिए किया जा सकता है। इतना ही नहीं लोगों को अक्सर गरम पानी से नहाने से बचना भी चाहिए।
लाइफ स्टाइल के चलते आ रही दिक्कतों से बचने के लिए बेस्ट होगा कि 25 साल तक की उम्र में स्पर्म को प्रिजर्व करा लिया जाय। युवाओं को हमेशा गरम पानी से स्नान करने से भी बचना चाहिए।
डॉ दिलीप चौरसिया
एचओडी, यूरोलॉजी डिपार्टमेंट
एमएलएन मेडिकल कॉलेज