- आषाढ़ माह की अष्टमी को देवी को लगाया गया बासी भोग- ही एकमात्र ऐसी है अष्टमी है जिसमे देवी को बासी भोजन का भोग लगाया जाता है


प्रयागराज ब्यूरो । आषाढ़ माह की कूष्णपक्ष कि अष्टमी के दिन महिलाओं ने अपनी कामना की पूर्ती के लिए देवी मंदिरों का दर्शन किया। इसे शीतला अष्टमी कहा जाता है। इस दिन श्रद्धालुओं ने बड़ी संख्या में मंदिरों में पहुंचकर देवी के दर्शन किए। बता दें कि आषाढ़ माह की सप्तमी के दिन महिलाएं व्रत रखने के साथ ही भोग लगाने के लिए भोजन भी तैयार करती है। यहीं तैयार किया हुआ भोजन माता को अष्टमी के दिन भोग में लगाया जाता है। जिस वजह से शीतला अष्टमी को बसीयौरा अष्टमी भी कहते है। यह एकमात्र ऐसा व्रत है जिसमें ठंडा और बासी भोजन खाने की परंपरा है।मंदिरों में लगी रही भक्तों की कतार
अष्टमी के दिन शनिवार को शहर के बड़े मंदिरों अलोपीदेवी, कल्याणी देवी और मां ललिता देवी में सुबह से ही महिलाएं दर्शन के लिए पहुंचने लगी। कल्याणी देवी मंदिर में सुबह से लेकर दोपहर तक लगभग पचास हजार महिलाओं ने दर्शन कर लिया था। वहीं ललिता देवी मंदिर में महिलाओं की लंबी कतार देखने को मिली।बासी भोजन का लगाते है भोग


पुरोहितों के अनुसार हिंदू संवत्सर में चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ़ चार अष्टमी पड़ती है। ललिता देवी मंदिर पुजारी इंद्र कुमार मिश्रा बताते है कि शीतला माता शीतलता की देवी है। इसीलिए इन्हें शीतल भोजन का भोग लगाया जाता है। शीतला माता को चेचक की देवी भी कहा जाता है। उन्हें सफाई का प्रतीक भी माना जाता है जो की ताप या अग्नि उत्पन्न करने वाले रोगों से मुक्त करती है। दाह बैठाने की है परंपरा कल्याणी देवी मंदिर के पुजारी श्याम जी पाठक बताते है कि शीतला अष्टमी पर दाह बैठाने की परंपरा है। इस दिन हिंदू महिलाएं देवी मंदिरों के प्रांगण में एक गोलाकार आकृति बनाती है। उसके बाद उस पर सात बार सिंदूर का टीका करती है। इसे देवी का प्रतीक माना जाता है। जिसके बाद इस पर नेवज का भोग लगाया जाता है। कल्याणी देवी मंदिर के पुरोहित का कहना है कि इस दिन महिलाएं मिट्टी के कुल्हड़ में नेवज (मिट्टी के कुल्हड़ के अंदर हलवा और पूड़ी) भर कर उसे मिट्टी के प्याले से ढाक डोरी से बांध कर मंदिर प्रांगण में बनी जलहरी में प्रवाहित करती है। इसे महिलाएं अपनी मनोकामना को मन में रखते हुए प्रवाहित करती है, ताकि उनकी मनोकामना जल्द से जल्द पूरी हो जाए। नहीं जलाते है चूल्हा

पुरोहित बताते है कि इस दिन घरों में चूल्हा नहीं जलाया जाता है। महिलाओं द्वारा सप्तमी को बनाए भोजन का अष्टमी के दिन माता को भोग लगाया जाता है। इसी भोग को सारा परिवार भोजन के रूप में ग्रहण करता है।

Posted By: Inextlive