सीबीआई जांच नहीं बन पा रही गले की फांस
विधायक राजू पाल हत्याकांड की जांच सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सीबीआई को सौंपी गयी
ज्वैलरी कारोबारी व प्रापर्टी डीलर ललित वर्मा हत्याकांड की जांच हाई कोर्ट ने सीबीआई को सौंपी लोक सेवा आयोग से नियुक्तियों की सीबीआई जांच की बात प्रदेश सरकार ने कही हैALLAHABAD: शनिवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक और मामला सीबीआई के हवाले कर दिया। इसके बाद जिले के तीन बहुचर्चित मामले सीबीआई के हवाले हो चुके हैं। एक मामला सुप्रीम कोर्ट और दूसरा उत्तर प्रदेश सरकार के रिफर करने से पहुंचा है। देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी पर पब्लिक का भरोसा अब भी कायम है। लेकिन, अभी तक कोई ऐसा रिस्पांस सामने नहीं आया है, जो पब्लिक का चौंका दे। किसी भी मामले में सीबीआई ने किसी को गिरफ्तार भी नहीं किया है। सर्किट हाउस में अस्थायी कैंप कार्यालय खुल गया। स्पॉट से एवीडेंस जुटाने के प्रयास हुए। दर्जनो लोगों से पूछताछ हुई लेकिन, कोई नतीजा अब तक सामने नहीं आया है। यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हो रही जांच की हकीकत है। प्रदेश सरकार के निर्देश पर जांच अभी तक हवा में ही लटक रही है। तीसरा मामला शनिवार को ही सीबीआई को सौंपने का आदेश हुआ है। क्या-क्या हैं ये मामले और क्या हुआ था?
दिल दहला देने वाला था राजूपाल हत्याकांड
25 जनवरी 2015. इस दिन को याद करके अब भी तमाम लोग सिहर उठते हैं। दबंगई का नंगा नाच धूमनगंज से लेकर सिविल लाइंस एरिया तक में हुआ था। शहर पश्चिमी के तत्कालीन बसपा विधायक राजू पाल को दिनदहाड़े गोलियों से छलनी कर दिया गया था। उन पर तब तक गोलियां बरसाई गई जब यह तय नहीं हो गया कि मौत हो चुकी है। राजू पाल की अतीक गैंग से सीधी दुश्मनी थी। उनकी पत्नी बसपा की पूर्व विधायक पूजा पाल ने इस घटना में बाहुबली पूर्व सांसद अतीक अहमद, उनके भाई व पूर्व सपा विधायक मो। अशरफ समेत दर्जन भर लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करायी थी। इस घटना के बाद ही अशरफ और अतीक दोनों को लम्बी फरारी काटनी पड़ी थी। पुलिस ने इनाम भी घोषित किया। बाद में दोनों को गिरफ्तार किया गया। 12 साल बाद भी आज तक मामला पेंडिंग है। राजू पाल की पत्नी पूजा पाल ने पुलिस की जांच और कार्रवाई पर असंतोष जताते हुए सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा दाखिल करके इसकी सीबीआई से जांच कराने की मांग की। सुप्रीम कोर्ट ने लम्बी बहस के बाद 22 जनवरी 2016 को हत्याकांड की सीबीआई जांच कराने का आदेश दिया। जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष और अमिताभ रॉय की पीठ ने जांच एजेंसी से कहा था कि बेहतर होगा यदि वह इस मामले में अपनी जांच 6 महीने में पूरी करे। इसके बाद सीबीआई टीम इलाहाबाद आई। स्पॉट विजिट करने के साथ हत्याकांड से जुड़े लोगों से लम्बी पूछताछ की। एडीवेंस की तलाश में भटकती रही। करीब दो साल पूरे होने को हैं और आज तक इस मामले में क्या हुआ? किसी को कुछ पता नहीं है।
नामजद कोई और चार्जशीट किसी और के खिलाफ3 फरवरी 2016 की रात सिविल लाइंस थाने के करीब धूमनगंज के सर्राफा व्यापारी ललित वर्मा और उनके चचेरे भाई विक्रम को गोली मार दी गयी। इस घटना में ललित ने आन द स्पॉट दम तोड़ दिया था जबकि इलाज के बाद विक्रम बच गये। इस मामले को तब प्रापर्टी डीलिंग से जोड़कर देखा जा रहा था। इस मामले में पूर्व बसपा विधायक पूजा पाल समेत अन्य के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करायी गयी थी। पुलिस ने इंवेस्टिगेट और सीसीटीवी फुटेज चेक की तो पूजा पाल की संलिप्तता को उसने खारिज कर दिया। घटना में घायल की ही भूमिका पुलिस को संदिग्ध नजर आयी। इसी के आधार पर पुलिस ने विक्रम को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया। वर्तमान समय में वह नैनी जेल में बंद है। इस घटना से करीब एक महीना पहले ही पूजा पाल की पहल पर अतीक एंड कंपनी के खिलाफ सीबीआई जांच का आदेश हुआ तो पुलिस को इसमें पूजा को घेरने की साजिश की बू आ गयी। तब वह बसपा की विधायक थीं तो पुलिस ने उन्हें जांच से बाहर कर दिया। इसके खिलाफ ललित के पिता ने हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल करके कहा कि घटना के असली फैक्ट सामने लाने के लिए सीबीआई से जांच कराना जरूरी है। इस पर दोनो पक्षों की लम्बी बहस और तर्को को सुनने के बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रकरण जांच के लिए सीबीआई को सौंपने का आदेश शनिवार को ही दिया है। कोर्ट ने पुलिस से कहा है कि वह मामले से संबंधित पत्रावली भी सीबीआई को सौंप दे।
घटना के बाद जिन आरोपियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी, विवेचना के दौरान जांच और साक्ष्य के आधार पर वह घटना में संलिप्त नहंी मिले। इसी के आधार पर कार्रवाई की गयी थी। -बचन सिंह सिरोही इंस्पेक्टर, सिविल लाइंस घोषणा के बाद ठंडा पड़ गया मामलाउत्तर प्रदेश पब्लिक सर्विस कमीशन से हुई पीसीएस, लोअर की भर्तियों में व्यापक हेराफेरी का आरोप लगाकर प्रतियोगी छात्रों ने जमकर बवाल काटा था। भर्तियों में गड़बड़ी का मामला खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान वाराणसी में उठाया था। इसके बाद प्रदेश में सपा की सरकार बनी तो तत्कालीन अध्यक्ष अनिल यादव के कार्यकाल में हुई सभी नियुक्तियों की जांच सीबीआई से कराने की घोषणा उत्तर प्रदेश सरकार ने की। मामला विधानसभा की कार्रवाई में भी उठा और फिर सरकार ने सीबीाआई जांच को ओके कर दिया। 19 जुलाई 2017 को सीबीआई जांच का ऐलान तो कर दिया। लेकिन, सीबीआई आयोग कब पहुंचेगी? वर्तमान में यह बताने की स्थिति में कोई नहीं है। सरकार ने वर्ष 2012 से 2016 तक की भर्तियों की सीबीआई से जांच करवाने का फैसला किया है। इसके दायरे में तकरीबन 600 भर्तियां आयेंगी। करीब चार महीने बीत चुके हैं और सीबीआई ने क्या किया किसी को कुछ पता नहीं है। इसे लेकर वे प्रतियोगी छात्र भी परेशान हैं जिन्होंने सीबीआई जांच का मुद्दा उठाया था।