जहां खतरा नहीं था वहां सावधानी, जहां खतरा था वहां चूक गये
प्रिजन वैन से लाये गये थी अतीक और अशरफ, शहर में पुलिस जीप में घुमा रही थी
प्रदेश की कानून व्यवस्था पर सवाल एक बार फिर प्रयागराज से ही उठा है। शनिवार को पुलिस कस्टडी में हुई दो हत्याओं ने सुरक्षा व्यवस्था में चूक की पोल खोल दी है। अब तो सवाल यह भी पूरे प्रदेश में उठाया जाने लगा है कि जहां खतरा ज्यादा था वहां से लाने के लिए भारी भरकम फोर्स लगायी गयी और जहां सबसे ज्यादा खतरा था वहां लापरवाही बरती गयी। यह लापरवाही अंजाने में हुई या जानबूझकर बरती गयी? इसे लेकर भी सवाल उठाये जाने लगे हैं। जितने मुंह उतनी बातें हो रही हैं। पुलिस अफसरों की तरफ से सन्नाटा है। कोई ऑफिशियली कुछ भी बोलने या बताने के लिए तैयार नहीं था।
तब पूरा लश्कर चला था साथ
उमेश पाल हत्याकांड में अतीक को पहली बार साबरमती जेल से 26 मार्च को निकाला गया था। प्रयागराज से पुलिस टीम उसे लेने के लिए पहुंची थी। इस टीम को एक आईपीएस अफसर लीड कर रहे थे। उनके साथ दो इंस्पेक्टर रैंक के अफसर थे। ये बुलेरो या बंद गाड़ी से गये थे। इस टीम में 40 सिपाहियों को शामिल किया गया था। ये सभी पीआरबी के थे। ये सभी प्रिजन वैन में थे। प्रिजन वैन के चलते सुरक्षा की व्यवस्था तगड़ी थी। रास्ते में कहीं उतारने की नौबत आयी तो गाड़ी या तो थाने में रोकी गयी या ऐसे किसी स्थान पर जहां सुरक्षा का पूरा बंदोबस्त था। यानी हर कदम फूंक फूंक कर रखा जा रहा था। पुलिस ने रिस्क नहीं लिया तो अतीक को लेकर सही सलामत यहां पहुंच गयी।
28 मार्च को उमेश पाल अपहरण कांड में अतीक, उसके वकील खान सौलत और एक अन्य को सजा सुनायी जानी थी तो नैनी जेल से लेकर कचहरी तक सुरक्षा का तगड़ा बंदोबस्त किया गया था। वकीलों के लिए भी उसकी एक झलक पाना मुश्किल हो गया था। इस दिन एमपी एमएलए कोर्ट में किसी दूसरे मुकदमे की सुनवाई ही नहीं हुई। 1& अप्रैल को अतीक को सीजेएम कोर्ट में पेश किया गया तब भी सिर्फ उन्हीं लोगों को कोर्ट के भीतर जाने की अनुमति दी गयी जो केस से जुड़े हुए थे। बाहरी किसी को अनुमति नहीं थी। यह बता रहा था कि पुलिस अतीक की सुरक्षा को लेकर बेहद सतर्क है और कोई रिस्क लेना नहीं चाहती है।
रिमांड में आते ही हो गई चूक
1& अप्रैल को सीजेएम कोर्ट ने अतीक और अशरफ को पुलिस कस्टडी रिमांड पर दिया तो सीन चेंज होने लगा। धूमनगंज थाने के भीतर और बाहर तो सुरक्षा के पर्याप्त बंदोबस्त थे लेकिन पुलिस टीम तब भी उन्हें लेकर निकलती थी तब इसी स्तर की सावधानी नहीं बरती जाती थी। इसी का नतीजा रहा कि हत्यारे अतीक के इतने करीब पहुंचे गये कि खोपड़ी से सटाकर गोली मारने में कामयाब हो गये।
रविवार को पब्लिक के बीच जो चर्चा रही उसके मुताबिक असद और गुलाम को मुठभेड़ में मार गिराये जाने के बाद सरकार को एडवांटेज मिल गया था। हर तरफ तारीफ के पुल बांधे जा रहे थे। लेकिन, शनिवार को जो कुछ हुआ उसने पुराने किये कराये पर पानी फेर दिया है। कानून व्यवस्था पर सीधे सवाल खड़ा हो गया है। पब्लिक के बीच चर्चा रही कि इस कांड को सरकार की छवि खराब कराने के लिए अंजाम दिलाया गया है। सरकार की छवि खराब करने वाला कौन हो सकता है? सरकार के भीतर का है या सरकार के बाहर का? यह आने वाले समय में होने वाली जांच और हत्यारों को रिमांड पर लेकर होने वाली पूछताछ के बाद ही सामने आयेगा।