राष्ट्रीय चेतना का निर्माण पत्रकारिता से संभव
प्रयागराज ब्यूरो । उक्त बातें हिंदी पत्रकारिता और साहित्य निर्माण विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के तृतीय सत्र में बोलते हुए बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के प्रो। मुन्ना तिवारी जी ने कहीं। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से पधारे डॉ। मलखान सिंह जी ने कहा कि हमें सकारात्मकता के साथ पत्रकारिता की चुनौतियों से निपटना चाहिए। रचना समय की उपज है इसी तरह पत्रकारिता भी अपने समय की ही उपज होती है और उसके सवाल भी अपने समय के सवाल होते हैं। प्रयाग, प्रयोगों का शहर है, चाहे कुंभ की भीड़ को संभालने का प्रयोग हो, पांच प्रधानमंत्रियों का प्रयोग हो या फिर साहित्यिक आंदोलनों का प्रयोग, प्रयाग का सश1त हस्तक्षेप सब जगह मिलता है। पत्रकार के निर्माण में उसका मोहल्ला, परिवार, स्कूल, आसपास आदि सबका महत्व है। पत्रकारिता चुनौतीपूर्ण और कठिन काम है। आज के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जमाने में पत्रकारिता और चुनौतीपूर्ण हुई है। इस तृतीय तकनीकि सत्र का संचालन हिंदी विभाग इलाहाबाद विश्वविद्यालय के डॉ। शिव कुमार यादव जी ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन इस दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के संयोजक, हिन्दी विभाग इलाहाबाद के डॉ। राजेश कुमार गर्ग जी ने किया।
संगोष्ठी के समापन सत्र में बोलते हुए प्रो। राजेंद्र सिंह रज्जू भैया विश्वविद्यालय के डॉ आशुतोष कुमार सिंह जी ने कहा कि कविवचन सुधा और बालाबोधनी जैसी पत्रिकाओं से जिन पत्रकारिता संबंधी मूल्यों का निर्माण हुआ था उसकी निर्मिति में केशवराम भट्ट, प्रताप नारायण मिश्र, लाला सीताराम भूप, ठाकुर जगमोहन सिंह और अंबिका दत्त व्यास जैसे पत्रकारों का महत्त्वपूर्ण योगदान है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय की डॉ। विभु खरे दास ने कहा कि ओटीटी जैसे माध्यमों में जिन मूल्यों को चुनौती दी जा रही है हिंदी पत्रकारिता को उस तरफ भी ध्यान देना चाहिए। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से पधारे अतिथि व1ता प्रो। हरिराम मिश्र जी ने कहा के हिंदी पत्रकारिता को मूल्यरक्षा की तरफ भी ध्यान देना चाहिए। माता पिता, गुरु और पत्र पत्रिकाएं ही नवयुवकों की निर्मिति का आधार हैं। उन्होंने कहा कि 1880 में पटना से जब 'सुधर्मा' नामक संस्कृत पत्रिका प्रारंभ हुई थी तब उसका संकल्प इसी तरह का निर्माण पक्ष ही था। प्रतिमूल्यों से बाहर निकालने का काम यही पत्रिकाएं ही करती हैं।