दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों का नहीं खुला खाता पुरानी सीट भी नहीं बचा पाई बसपाकैडर वोटरों को भी साध पाने में नाकाम रही बसपा भाजपा और सपा का थाम लिए दामनविधान सभा 2022 के चुनाव में बसपा और कांग्रेस का जिले से सूपड़ा साफ हो गया. गुरुवार को मतगणना बाद आए परिणाम में इन दोनों पार्टियों को जनपद में एक भी सीट नसीब नहीं मिली. कांग्रेस का जनाधार यहां पहले भी नहीं था. मगर बसपा जमीन पर वोटरों के बीच अपनी पकड़ बनाए हुए थी. धीरे-धीरे भाजपा की लहर में बसपा की जमीन भी यहां बंजर होती चली गई. परिणाम यह रहा कि वर्ष 2017 में जिस एक सीट पर जीत मिली थी बसपा इस बार उसे भी बचाने में असफल साबित हुई. इसके पीछे राजनीतिक पंडित पार्टी नेताओं की बड़ी कमजोरी मान रहे हैं. कहा जा रहा कि बसपा और कांग्रेस के नेता कार्यकर्ताओं से दूरी बनाए रहे. यही वजह रही कि कांग्रेस ही नहीं बसपा का कैडर वोटर भी पाला बदल लिया. ज्यादातर बसपा के मतदाता भगवा रंग में रंग गए जो बचे वह सपा का दामन थाम लिए. पिछले चुनाव की अपेक्षा इस बाद सपा की कई सीटों पर हुई शायद इसी का परिणाम रहा.


प्रयागराज (ब्यूरो)। कांग्रेस का जनाधार जिले में पहले से खिसक चुका था। बसपा वोटरों के बीच अपनी पकड़ बनाए हुए थी। यहां बहुजन समाज पार्टी के कैडर वोटर बहुतायत की तादाद में रहे। वर्ष 2017 के चुनाव में भाजपा की लहर थी। बावजूद इसके बसपा हंडिया और प्रतापपुर सीट पर जीत हासिल करने में कामयाब रही। इस सीट पर बसपा प्रत्याशी हाकिम लाल अपने प्रतिद्वंदी अपना दल की प्रमिला देवी 8526 के अंदर से शिकस्त देकर जीत हासिल की थी। इस बार बसपा अपनी हंडिया सीट को भी बचा पाने में नाकाम साबित हुई है। राजनीतिज्ञों का मानना है कि ऐसा पहली बार हुआ है जब बसपा को जिले में एक भी सीट नहीं मिली। इसके पीछे वह पार्टी के शीर्ष नेताओं की होमवर्क में कमी मान रहे हैं। कहा जा रहा है कि चुनावी मैदान में जिले की सीटों पर बसपा खुलकर इस बार नहीं आई। यही वजह रही कि जो कैडर वोटर थे वह भी बसपा से दूरी बना लिए। बसपा का दामन छोडऩे वाले ज्यादातर कैडर के ज्यादातर वोटर भाजपा से जुड़ गए। एट लास्ट में माहौल को देखते हुए जो बचे भी थे वह साइकिल पर सवार हो गए। हालांकि इसका फायदा भी सपा की साइकिल को खूब मिला है।


2017 में भी कराह उठी थी कांग्रेसखोई हुई सियासी जमीन को बचाने में कांग्रेस इस बार ही नहीं पिछले चुनावों में भी फ्लाप रही है। जिले के अंदर कांग्रेस से वोटरों ने किनारा कर लिया। 2017 के विधान सभा चुनाव में भी कांग्रेस का यहां खाता नहीं खुला था। जमीन तलाशने की कोशिश में चुनावी प्रचार के वक्त कांग्रेस नेताओं द्वारा की गई कसरत भी बेअसर रही। इसके पीछे सियासी थिंक टैंक कहे जाने वाले लोग कई कारण मान रहे हैं। वह कहते हैं कि जिले में कांग्रेस के पास कोई बड़ा चेहरा नहीं है, जो वोटरों की समस्या को लेकर जूझ सके। यही वजह है कि कांग्रेस के हाथ को उसके मूल और भी छोड़ते चले गए।

Posted By: Inextlive