पंडालों में रखे केले के पेड़ का होता है खास महत्व
प्रयागराज (ब्यूरो)। कर्नलगंज बारवारी के मेंबर ज्वाय मुखर्जी बताते है कि मां दुर्गा को प्रकृति से जोड़कर देखा जाता है। जिससे विश्व में शांति रहे। मां दुर्गा का पूजन सप्तमी से शुरू होती है। पूजा मंडप में सर्वप्रथम श्री गणेश जी के बगल में जो केले का पेड़ लाल बार्डर की साड़ी में लिपटा आकार दिखाई देता है। उसको कोलाबोऊ यानी केले का पत्नी के नाम से पुकारा जाता है। वास्तव में वो नहीं होता है। ये मां दुर्गा का एक विशेष रूप होता है। जिसे नवगृह या दूर्गा जी का नव रूप का वर्णन किया गया है। इन नव रूप को नव पत्ता के साथ जोड़ा गया है। जिसे नव पत्तिका भी बोला जाता है। इसको ही नव पत्रिका वासिनय: नव दुर्गा नम: कहते है।
दुर्गा पूजा पंडालों में अष्टमी पर हुई संधि पूजा
महाअष्टमी पर दुर्गा पूजा पंडालों में संधि पूजा की गई। इस बार संधि पूजा का मुर्हूत रात 11 बजे के बाद था। ज्वाय चटर्जी बताते है कि संधि पूजा की कथा भगवान श्रीराम के लंका विजय से जुड़ी है। भगवान श्रीराम जब लंका विजय के लिए निकलते है, तो उनको शक्ति की आवश्यकता होती है। इसके लिए वह आदि शक्ति मां भगवती की उपासना करते है। पूजा के लिए वह 108 नील कमल लाते है और उसी से पूजा करते है। मां का आवाह्न करने के बाद जब वह आंखे खोलते है, तो उसमें एक फूल गायब रहता है। इस पर वह अपनी आंख मॉं को अर्पित करने की तैयारी करते है। इतने में मां प्रगट होती है और फूल को लेने की बात बताते हुए भगवान श्रीराम को शक्ति प्रदान करती है। बुधवार की रात में दुर्गा पूजा पंडालों में पूरे विधि विधान के साथ संधि पूजा की गई।