कानून की बारीकियों से खेलता रहा अतीक
प्रयागराज (ब्यूरो)। राजनीति में सक्रिय होने के बाद उसका कद इतना बड़ा हो गया कि उसका खुद का लीगल सेल खड़ा हो गया। विद्वान वकीलों के दम पर उसने कानून की बारीकियों से खेलना शुरू कर दिया। इसका सबसे बड़ा गवाह है उमेश पाल अपहरण कांड। इसमें करीब दो सौ बार डेट लगी। गवाह जोडऩे और बदलने के नाम पर डेट ली जाती रही। इस मामले में कोर्ट ने सख्ती तब दिखायी जब हाई कोर्ट का आदेश हुआ और केस डेली बेस पर सुना जाने लगा।
हत्या तक के केस में नहीं हुई सजा
चकिया निवासी अतीक अहमद के खिलाफ दर्ज हुआ पहला मामला हत्या का था। यह खुल्दाबाद थाने में दर्ज हुआ था। 1979 में दर्ज इस केस का क्राइम नंबर 401 था। सितारे साथ दिए तो वर्ष 1989 में अतीक अहमद विधायक बन गया था। इसके बाद तो उसकी रफ्तार और तेज हो गई। राजनीति में सफलता मिली तो वह विधायक बनने के बाद उसके तेवर और कलेवर का रंग और भी चेंज हो गया। एक के बाद एक अतीक दहशत भरी वारदात को अंजाम देने लगा। अपराध की दुनिया में बढ़े उसके कदम को देखते हुए पहली बार वर्ष 1992 में उसके गैंग को सूचीबद्ध करते हुए गैंग नंबर आईएस 227 नाम पुलिस के द्वारा दिया गया। इस आईएस 227 गैंग का पुलिस के जरिए सरगना बताया गया था। गैंगेस्टर एक्ट के साथ अतीक के खिलाफ कई बार गुण्डा एक्ट की भी कार्रवाई पुलिस के द्वारा की गई।
पुलिस की मानें तो अतीक पर कुल 183 मुकदमे अब तक दर्ज हो चुके हैं। इसमें से 82 मुकदमे निस्तारित किये जा चुके हैं। कुछ में एफआर लग गयी तो कुछ में वह साक्ष्य न होने के चलते बरी हो गया। अतीक पर करीब 101 केस अब बताए जा रहे हैं। वर्ष 1993 में हुए लखनऊ गेस्ट हाउस कांड में नाम आने के बाद अतीक की आपराधिक शाख और तेजी से बढ़ गई। अतीक के कानूनी दांव पेंच की जाल के आगे दर्ज एक भी मुकदमें में उन्हें सजा नहीं हो सकी। अतीक के खिलाफ लोग केस तो दर्ज कराते थे मगर कभी उन पर लगाए गए आरोप साबित नहीं हो सके थे। इसके पीछे उसके थिंक टैंक व खुद अतीक के मास्टर माइंड का होना कारण माना जा रहा है। अतीक अहमद के खिलाफ गवाह उमेश पाल अपहरण कांड का पहला ऐसा केस है जिसमें अतीक की हर चाल नाकामयाब हो गई। नतीजा यह रहा कि केस सजा तक जा पहुंचा और अतीक सहित उसके दो अन्य साथियों को सश्रम आजीवन कारावास की सजा हो गई।