शाइस्ता को पकडऩे का एक और 'मौका
प्रयागराज (ब्यूरो)माफिया अतीक और अशरफ के 40वें पर पुलिस की निगाह टिक गई है। फरार शाइस्ता को पकडऩे का एक मौका दोनों का चालीसवां है। पुलिस मानकर चल रही है कि दोनों का चालीसवां मनाया जरुर जाएगा। ऐसे में पुलिस ने अपने सूत्रों के पेंच कस दिए हैं।
मुस्लिमों में किसी की मौत होने पर चालीसवां किया जाता है। इस मौके नात रिश्तेदार जुटते हैं। मृतक आत्मा की शांति के लिए कुरान का पाठ किया जाता है। साथ ही लोगों को भोजन कराया जाता है। ऐसे में लंबे समय से फरार चल रही शाइस्ता को पकडऩे के लिए पुलिस एक बार फिर कमर कसे हुए है। माना जा रहा है कि अतीक और अशरफ का चालीसवां जरुर मनाया जाएगा। ऐसे में पुलिस अतीक के करीबियों को ट्रेस करने में लगी है। चलीसवां कराने के लिए शाइस्ता के अलावा कोई रिश्तेदार जिम्मेदारी उठा सकता है। शाइस्ता भी चालीसवें में दुआ करने के लिए आ सकती है। ऐसे में प्रयाग के अलावा कौशाम्बी में सूत्रों को दौड़ा दिया गया है।
गुनाहों की माफी मांग जाती है 40वें में
मृतक आत्मा की शांति और जीवित रहते हुए उसके द्वारा किए गए गुनाहों की माफी 40वें में मांग जाती है। घरवालों के अलावा नात रिश्तेदार इक_ा होकर दुआ करते हैं। ताकि मृतक ने अपने जीवन में जो भी गुनाह किए हों उनकी माफी हो सके।
40वें पर है कुराख्वानी का रिवाज
मृतक के 40वें पर कुरान का पाठ किया जाता है। कुरान का पाठ कोई भी कर सकता है। अक्सर लोग कुरान के पाठ के लिए कोई जानकार को या धर्म गुरु को बुलाते हैं। मदरसों में पढऩे वाले बच्चों से भी कुरान पढ़वाया जाता है। इसे कुरानख्वानी कहते हैं। साथ ही नात रिश्तेदारों और पहचान वालों को दावत भी दी जाती है।
इमाम हुसैन की शहादत के 40वें दिन चेहल्लुम मनाया जाता है। ऐसे में 40वें को रिवाज के तौर पर लिया जाता है। माना जाता है कि 40वें पर माफी मिलने से मृतक को जन्नत मिलती है। ऐसे में घरवालों का प्रयास होता है कि मृतक की याद में 40वां जरुर कराया जाए। हालांकि उलमा का कहना है कि कुराख्वानी कभी भी कराई जा सकती है। मौत के बाद मृतक की याद में कुरानख्वानी के लिए किसी विशेष दिन की जरुरत नहीं है। मगर 40वें को ज्यादा महत्व दिया जाता है।