अकबर इलाहाबादी नहीं, अकबर प्रयागराजी कहिए जनाब
प्रयागराज (ब्यूरो)। जिसने भी मंगलवार को उच्चतर शिक्षा सेवा चयन आयोग की वेबसाइट को सर्च किया, वह हतप्रभ रह गया। क्योंकि वेबसाइट ह्वश्चद्धद्गह्यष्.शह्म्द्द के अबाउट अस विंडो में अबाउट इलाहाबाद का लिंक दिया गया है। इसे क्लिक करते ही जो पेज खुलता है उसमें प्रयागराज के हिंदी साहित्य के इतिहास के बारे में बताया गया है। इसमें अकबर इलाहाबाद की जगह अकबर प्रयागराजी लिखा गया है। इसी तरह तेग इलाहाबादी और राशिद इलाहाबादी की जगह तेग प्रयागराजी और राशिद प्रयागराजी लिखा गया है। ऐसा कैसे हुआ इसके बारे में फिलहाल कुछ कहा नहीं जा सकता है। क्या बोले साहित्यकारउच्चतर शिक्षा आयोग द्वारा किया गया बदलाव अनुचित है। अकबर इलाहाबादी का नाम बदलना इतिहास खत्म करने के समान है।डॉ। कीर्ति कुमार सिंह, वरिष्ठ कथाकार
यह गलत निर्णय है। इससे रचनाकारों की भावनाएं आहत हुई हैं। इस तरह से किया गया बदलाव समझ के बाहर है। इस बारे में आयोग ही बता सकता है। संध्या नवोदिता, साहित्यकारकिसी के नाम के साथ इस तरह से छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए। ऐसा करने से पहले सोचना चाहिए था। ऐसा क्यों हुआ यह जानने का विषय है।शैलेंद्र मधुर, कवि
नाम ही रचनाकार की पहचान होती है। नाम बदलना रचनाकार की हत्या करने के समान है, जिसे कोई स्वीकार नहीं करेगा। अकबर इलाहाबादी ही उनकी पहचान है। जिला का नाम भले बदलकर प्रयागराज किया गया हो पर इतने बड़े शायर का नाम नहीं बदलना चाहिए।इम्तियाज अहमद गाजी, शायर जिले का नाम हुआ है प्रयागराजइलाहाबाद का नाम प्राचीनकाल में प्रयागराज था। इसकी धार्मिक व पौराणिक महत्व को खत्म करने के लिए मुगल शासकों ने प्रयागराज का नाम बदलकर इलाहाबाद कर दिया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अक्टूबर 2018 में इलाहाबाद का नाम बदलकर पुन: प्रयागराज कर दिया है।
कौन थे अकबर, तेग व राशिदअकबर इलाहाबादी का जन्म 16 नवंबर 1846 में बारा कस्बे में हुआ था। उनका बचपन का नाम सैयद अकबर हुसैन था। अकबर के पिता सैयद तफच्जुल हुसैन उन्हें व्याकरण और गणित की पढ़ाई में आगे बढ़ाना चाहते थे, लेकिन 14 वर्ष की उम्र में अकबर को अंग्रेजी पढऩे का शौक जगा।
उन दिनों अरबी, फारसी जानने वालों की खासी तादाद थी, लेकिन अंग्रेजी जानने और पढऩे वालों की संख्या नाम मात्र की ही थी.उन्होंने 1867 में वकालत की परीक्षा पास की, इसके दो वर्ष बाद ही वे नायब तहसीलदार हो गए। 1881 में उन्हें मुंसिफ का पद मिला। उनकी योग्यता और ईमानदारी को देखकर सरकार काफी प्रभावित हुई और वह 1888 में सदर उल सदूर पद पर नियुक्त कर दिए गए। 1892 में अदालत खफीफा के जज नियुक्त हुए और 1894 में डिस्ट्रिक सेशन जज तक का सफर तय किया। 1898 में सरकार ने उन्हें खान बहादुर की पदवी से नवाजा। नौकरी से सेवानिवृत्ति के बाद 1910 में उनकी पत्नी का निधन हो गया। इसके कुछ ही दिनों बाद उनका जवान बेटा हाशिम भी इस दुनिया से रुखसत हो गया। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अपनी शायरी के माध्यम से जोरदार मुखालफत की। वहीं, तेग इलाहाबादी का असली नाम मुस्तफा जैदी है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढऩे वाले तेग देश का विभाजन होने पर पाकिस्तान चले गए। कराची में बैठकर शायरी करने वाले तेग अपने नाम के आगे इलाहाबादी लिखते थे। इसी प्रकार राशिद इलाहाबादी का जन्म जनवरी 1944 को प्रयागराज के लालगोपालगंज कस्बे के रावन में हुआ था। इनकी काव्य संग्रह मु_ी में आफताब को उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी ने सम्मानित किया है।हमको इस बारे में पता भी नही है। आयोग की तरफ से ऐसा कोई बदलाव भी नहीं किया गया है। जो सेक्शन वेबसाइट मेंटनेंस का काम करता है उनसे जानकारी मांगी जा रही है। जो भी दोषी पाया जाएगा उस पर नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।
वंदना त्रिपाठी, सचिव, उच्चतर शिक्षा सेवा चयन आयोग प्रयागराज