विश्व का दूसरा सौर मिशन है आदित्य एल-1
प्रयागराज ब्यूरो । वैज्ञानिकों ने आदित्य सौर मिशन पर विस्तृत चर्चा की। वैज्ञानिकों ने बताया कि आदित्य एल-1 विश्व का दूसरा और भारत का पहला सौर मिशन है। जिसके माध्यम से सूर्य के एल-1 प्वाइंट पर होने वाली गतिविधियों का पता लगाया जा रहा है। विश्व का पहला सौर मिशन नासा और इंसा कंपनी ने मिलकर 1995 मे बनाया था। जो की सूर्य के एल-1 प्वाइंट तक पहुंचने मे सफल हुआ था। आदित्य एल-1 में जितने भी उपकरण लगे है वो सारे उपकरण पूर्णरूप से स्वदेशी है। इन्हें भारत की विभिन्न कंपनियों मे भारतीय वैज्ञानिकों के द्वारा तैयार किया गया है।
सूरज की किरणों के प्रभाव की मिलेगी जानकारी
पूने आयूका से आये प्रो निशांत सिंह ने बताया की सूरज से आने वाली किरणों का पृथ्वी पर क्या प्रभाव पड़ेगा। इसी के साथ सूरज की मैग्नेटिक फील्ड पर क्या असर पड़ता है। उन्होंने बताया की जो हाई लेटिट्यूड वाले देश है जैसे कनाडा, रूस, डेनमार्क इन देशों मे इलेक्ट्रानिक चीजों पर प्रभाव पड़ सकता है। इनसे मोबाइल, सेटेलाइट जैसे इलेक्ट्रानिक उपकरण प्रभावित हो सकते है। इनके प्रभावित होते हीे संचार माध्यम पूरी तरह से ठप हो जाएगा। जिसके चलते इन देशों मे सारे काम रूक जाएंगे। तो इन खतरों से बचने और इनकी जानकारी पहले से हासिल करने के लिए आदित्य एल-1 को सूरज की सतह पर भेजा जा रहा हैै।अब नहीं करना पड़ता सूर्य ग्रहण का इंतजारएरीज से आये प्रो वैभव पंथ ने बताया की पहले सूरज की गतिविधियों को देखने के लिए सूर्य ग्रहण का इंतजार करना पड़ता था। क्योंकि तेज रोशनी होने के कारण सूरज की गतिविधियों को स्पष्ट रूप से नहीं देखा जा सकता था। मगर अब सूरज की गतिविधियों को देखने के लिए सूर्य ग्रहण का इंतजार नहीं करना पड़ता है। विजिबल कमीशन लाइव कोरोनों ग्राफ की सहायता से सूरज की गतिविधियों को देखा जा सकता है।इसी के साथ सूरज के केंद्र पर 150 लाख केल्विन ताप होता है। सूरज के केंद्र से सतह की दूरी 700 मेगा मीटर है जहां पर सूरज का ताप 6000 हजार केल्विन होता है। सतह से जैसे ही 2000 किमी दूरी पर पहुंचते ही सूरज का ताप 6000 हजार से केल्विन बढ कर के सीधे 10 लाख केल्विन तक पहुंच जाता है। इतनी तीव्रता से तापमान के बढने के पीछे के कारण को क्रोनोंग्राफ के माध्यम से पता लगाया जा सकेगा।छात्र भी हो सकेंगे लाभान्वित
आदित्य एल-1 से मिलने वाले सारे डाटा को वेबसाइट पर शेयर कर दिया जाएगा। जिससे ये डाटा पब्लिकली हो जाएगा। शोध करने वाले छात्रों को अध्ययन में काफी मदद मिलेगी।