एक पहलÓ में दिखा रंगकर्मी के जीवन का आइना
प्रयागराज (ब्यूरो)। नाटक के कथानक के अनुसार गांव से आया एक लड़का जिसका सपना फिल्म में एक्टर बनना है वो थिएटर से जुड़कर निर्देशक के मार्गदर्शन में रंगकर्म की बारीकियों को सीखता है। इसके बाद नाट््य जगत को छोड़ फिल्मों में काम करने के लिए मुंबई चला जाता है। जब वह एक कामयाब एक्टर बन जाता है उसके कुछ साल के बाद वापस आकर अपने नाट््य गुरु से मिलता है तब उसे पता चलता है कि उसके नाट््य गुरु ने अपने बेटे के प्रवेश के लिए रखी फीस के दो लाख रूपये उस लड़के के पिता के इलाज में लगा दिया था। यह काम उस नाट््य गुरु ने इसलिए किया क्योंकि उसका शिष्य जिसको उसने अथक परिश्रम से अभिनय के क्षेत्र में तैयार किया था उसे अभिनय न छोडऩा पड़े। आज भी वह नाट््य गुरु अपने शिष्य की सभी फिल्मो को देखता है। नाट््य गुरु का कहना है कि थिएटर को सीढिय़ों की तरह प्रयोग करना गलत है, क्योंकि थिएटर संपूर्ण आत्म समर्पण और बलिदान मांगता है। मंच पर शोभित ब्रिज कुशवाहा, गौतम नाथ त्रिपाठी एवं विशाल कुमार उपाध्याय की भूमिका को दर्शकों सराहना मिली। संचालन मधुकांक मिश्र ने किया।