91 वर्ष के रामसहाय पांडे ने जीता दिल
प्रयागराज (ब्यूरो)। उन्होंने बताया कि 1986 में उत्तर मध्य जोन कला केंद्र में हुई पहले दिन की परफारमेंस भी वह शामिल हुए थे। पांडे ने बताया कि वह अब तक 18 देशों में राई नृत्य कर चुके हैैं। इनमें दुबई, जापान, इजिप्त, जर्मनी, स्विजरलैैंड और हंगरी देशों के नाम शामिल हैैं। उन्होंने बताया कि वह 11 वर्ष की आयु से यह नृत्य कर रहे हैैं। लेकिन कोरोना ने वह दिन दिखाया जो कभी सपने में भी नहीं सोचा था। कोरोना ने मुझे मेरी कला से दूर कर दिया था। किसी कलाकार के लिए उसकी कला से दूर होना मौैत से भी बदतर है। कई पुरस्कारों से नवाजे जा चुके
राम सहाय पांडे को सन 1980 में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा नृत्य शिरोमणि के खिताब से नवाजा गया था। इसके बाद सन 1984 में उन्हें महादेवी वर्मा ने शिखर सम्मान से सम्मानित किया था। रामसहाय पांडे की टीम में चार महिलाएं हैैं। इनमें से 21 वर्षीय ज्ञानेश्वरी नायडू जो की सबसे कम उम्र की हैैं, ने बताया कि कोरोना के दौरान मार्च 2020 से सितंबर 2020 तक हालत इतनी खराब थी कि काम ही नहीं था। सभी कलाकार खुद को कोसते रहते थे कि क्यों कुछ और नहीं कर लिया। क्यों संस्कृति बचाने का जिम्मा हमने उठाया। ज्ञानेश्वरी नायडू ने बताया कि उन्होंने ऑनलाइन प्लैटफॉर्म पर डांस अकादमी में छोट-छोटे बच्चों को डांस सिखाकर गुजारा किया।
राजस्थान की टीम ने कच्ची घोड़ी नृत्य कर अपनी छाप छोड़ी
राजस्थान के प्रसिद्ध नृत्य कच्ची घोड़ी को परफॉर्म करने मंच पर उतरे बाबूलाल सोनी (67) और गणेश सोनी (30) ने बताया कि उनका पूरा 10 सदस्यों का ग्रुप किसान और मजदूर वर्ग से आता है। बाबुलाल सोनी ने उन सभी को इकट्ठा कर यह समूह बनाया है। वे लोग करीब 25 साल से अलग-अलग सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा ले रहे हैैं। गणेश सोनी जिनकी उम्र 30 वर्ष है उन्होंने बताया कि वह अपने पिता की मदद के लिए ग्रुप से जुड़े थे, उन्होंने बताया कि जब कोरोना की महामारी ने पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले लिया तो शुरुआती दिनों में उनके पास कुछ करने को नहीं था, लेकिन बात सिर्फ उनके परिवार की होती तो किसी तरह चल भी जाता पर बात थी पूरे ग्रुप के परिवार की जिसके भरण पोषण के लिए पिता ने अपने और मां के साथ ही मेरी बीबी तक के गहनों को गिरवी रख सबका भरण पोषण किया। इतना ही नहीं कुछ धरोहर जो खानदानी थी उसे बेंच भी दिया लेकिन अपने कलाकारों और कला को मरने नहीं दिया।