634 आजादी के परवानों को एक साथ नीम के पेड़ पर दी गई थी फांसी
- 1857 क्रांति के बाद अंग्रेजों ने संगम नगरी में खेला था दमन का क्रूर खेल
- आजादी के मतवालों को पकड़ने के लिए इलाहाबाद में तैनात किए गए थे चार कमिश्नर प्रयागराजआजादी के मतवालों ने अपने जीवन की आहुति देकर हमको आजादी दिलाई थी। भारतवर्ष के इतिहास में कई ऐसी घटनाएं दर्ज हैं। जो आजादी के संघर्ष की दास्तान को आज भी बया करते हैं। छोटे बच्चों से लेकर युवाओं ने भी आजादी के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। इसके बाद ही हमें ये आजादी मिली। संगम नगरी प्रयागराज में आजादी के संघर्ष की अनगिनत कहानियां है। जो आज भी हमारे लिए प्रेरणा देती है। 1857 की क्रांति के बाद अंग्रेजों के दमन का सिलसिला तेज हो गया था। संगम नगरी प्रयागराज भी आजादी के संघर्ष का केन्द्र बिन्दु बन गया था। ऐसे में यहां भी अंग्रेजों ने जुल्म ढाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
4 कमिश्नर, 3 घंटे 40 मिनट सुनवाईआजादी के संघर्ष के बीच प्रयागराज में भी आजादी के मतवाले अपने ही मस्ती में थे। अंग्रेज शासन को जड़ से उखाड़ने के लिए संघर्ष जारी रहा। 1857 के विद्रोह को प्रयागराज में दबाने के लिए अंग्रेजों ने चार कमिश्नरों को नियुक्त कर दिया। इन चारों ने कमिश्नरों ने 3 घंटे 40 मिनट की लगातार सुनवाई के बाद एक साथ 634 लोगों को फांसी की सजा सुनाई। इसके बाद चौक स्थित नीम के पेड़ पर इन लोगों को एक साथ फांसी के फंदे पर लटका दिया गया। अंग्रेजों के इस क्रूरता भरे कदम ने पूरे शहर की जनता में आक्रोश भर दिया। पूरे शहर में आजादी के परवानों ने प्रयागवालों के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन और बलवा शुरु कर दिया। भारत भाग्य विधाता संस्था के चेयरमैन वीरेन्द्र पाठक बताते हैं कि उसके बाद अंग्रेजों ने जो दमन का चक्र शुरू किया। उसने पूरे शहर को हिला कर रख दिया। अंग्रेजों को विरोध करने वालों को खुले आम फांसी पर चढ़ाने का सिलसिला शुरू हो गया।
14 अगस्त को तीन सपूतों ने दी थी कुर्बानीअंग्रेजों के इस दमनकारी नीति के विरोध में सिटी के स्टूडेंट्स भी खुल कर विरोध प्रदर्शन और आन्दोलन शुरू करने लगे। हीवेट रोड के रहने वाले द्वारिका प्रसाद स्टूडेंट्स का नेतृत्व करते हुए मार्च निकाल रहे थे। स्टूडेंट्स को रोकने के लिए पूरी बटालियन ने उन्हें जानसेनगंज चौराहा रोक लिया। लेकिन वह रूकने को तैयार नहीं हुए। अंग्रेजों ने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरु कर दी। जिसमें वह शहीद हुए। 14 अगस्त का दिन प्रयागराज के लिए काफी महत्वपूर्ण रहा है। महात्मा गांधी के अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान प्रयागराज में भी जबर्दस्त विरोध प्रदर्शन चल रहा था। उसी दौरान करारी में एक डाकखाने को लूट लिया गया। उसकी जांच के लिए अंग्रेज आफिसर अपने सिपाहियों के साथ पहुंचा। उसकी जीप कीचड़ में फंस गई। अंग्रेज अधिकारी लोगों ने जीप निकालने के लिए बोला तो वहां मौजूद आंदोलनकारी लल्लन मिश्र ने सभी को मना कर दिया। जिस पर अंग्रेज अधिकारी ने उन्हें गोली मार दी और वह शहीद हो गए।
कटवा दिया ऐतिहासिक नीम का पेड़ नीम के पेड़ पर 634 लोगों को एक साथ फांसी देने की घटना के चश्मदीद गवाह बालकृष्ण भट्ट अपनी पुस्तक में बताते हैं कि उनकी उम्र उस समय 10 वर्ष की थी। वह उस घटना के चश्मदीद गवाह थे। घटना के बाद शहर की जनता ने नीम के पेड़ की टहनियों को काटकर घर ले जाने लगे। और उसकी पूजा करने लगे। इस बात की जानकारी होने पर अंग्रेजों ने ऐतिहासिक नीम के पेड़ को कटवा कर उसे जला दिया। उसके बाद लोगों ने उसी स्थान पर उसी नीम के पेड़ के अंश को वहां लगा दिया। वो अंश आज भी विशालकाय पेड़ के रूप में मौजूद है।