स्टील प्लेट से बनते हैं 'पांटूनÓ...
प्रयागराज ब्यूरो ।संगम की रेती पर 2025 में बसाए जाने वाले महाकुंभ की तैयारियां अब जोर पकडऩे लगी हैं। मेला में श्रद्धालुओं को आवागमन के लिए गंगा और यमुना नदी पर बनाये जाने वाले पांटून यानी पीपा पुल को लेकर तमाम बातें और कमेंट सामने आते रहते हैं। आज दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने ग्राउंड जीरो से की है पांटून के निर्माण से जुड़ी यह स्टोरी। पुल में लगने वाले पीपा का निर्माण कैसे होता है? यह कितना सुरक्षित होता है? एक पीपा बनाने में कितना वक्त लगता है? क्या मॅटिरियल और कितना यूज होता है। इसकी लाइफ क्या होती है। यह जानने के लिए आपको यह पूरी खबर पढऩी होगी।
पीपा क्यों होता है इतना मजबूत
2019 के कुंभ में कुल 22 पांटून पुल का निर्माण किया गया था। महाकुंभ में आठ अधिक यानी 30 पांटून पुल बनाए जाएंगे। करीब चार हजार हेक्टेयर में बसाए जाने वाले महाकुंभ में इस पांटून पुल का निर्माण गंगा नदी में होगा। महाकुंभ की तैयारी प्रशासनिक लेवल पर शुरू कर दी गई है। नदी के दोनो तरफ आबाद होने वाले मेले के एक छोर को दूसरे से कनेक्ट करने के लिए पांटून यानी पीपा पुल का निर्माण किया जायेगा। इसमें इस्तेमाल होने वाले पीपे का निर्माण परेड ग्राउंड में चल रहा है। पीडब्लूडी विद्युत यांत्रिक खण्ड को इसके निर्माण की जिम्मेदारी सौंपी गई है। पांटून का निर्माण परेड में दो स्थानों पर चल रहा है। एक का नाम कांट्रैक्टर जीआईएस प्लेस तो दूसरे स्थान को वर्कशॉप के नाम से विभाग जानता है। इसे बनाने के लिए करीब सौ वर्कर काम कर रहे हैं। विभाग के टेक्निकल एक्सपर्ट बताते हैं कि पांटून को बनाने में स्टील प्लेट का इस्तेमाल किया जाता है। यह दो तरह की प्लेट होती है। बाहरी हिस्से में 12 एमएम और उसके अंदर 06 एमएम की प्लेट का प्रयोग किया जाता है। पानी पर तैरने वाले प्रति पांटून के अंदर 06 एमएम स्टील प्लेट से एक्सपर्ट 08 रिंग और पांच सेल का निर्माण करते हैं। इसी रिंग के ऊपर 12 एमएम की चादर लगाकर चारों तरफ वेल्डिंग कर दी जाती है। बताते हैं कि पांटून के दोनों सिरे पर लगाए जाने वाले एनी कैप को भी 12 एमएम की प्लेट से ही बनाया जाता है।
स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया से आपूर्ति
माघ मेला और महाकुंभ के मद्देनजर फिलहाल 1645 पांटून के निर्माण का कार्य चल रहा है। इसमें वर्कशॉप में 645 और कांट्रैक्टर प्लेस पर एक हजार पांटून बनाए जा रहे हैं। अब यह भी बताते चलेंकि पांटून में लगाई जा रही स्टील प्लेट स्टील अथारिटी ऑफ इंडिया से मंगाई जा रही है। इसलिए प्लेट की क्वालिटी काफी उम्मदा और अच्छी है। इस तरह एक पांटून को बनाने में करीब चार लाख 85 हजार हजार रुपये का कुल खर्च आता है। इसी लागत से इन दिनों पांटून का निर्माण कार्य चल रहा है।
पांटून यानी पीपा का निर्माण हुआ शुरू
01
हजार पीपा बन रहा कांट्रैक्टर बेस में
645
पांटून परेड वर्कशॉप में हैं निर्माणाधीन
02
तरह के स्टील प्लेट का होता है यूज
12
एमएम प्लेट का प्रयोग बाहरी हिस्से पर
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एमएम प्लेट से अंदर बनाई जाती है रिंग
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रिंग का प्रयोग होता है एक पांटून के अंदर
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सेल रिंग के अंदर एक्सपर्ट करते हैं फिट
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एमएम प्लेट से बनता है पीपा का एनी कैप
5.269
मीट्रिक टन एक पांटून का होता है वजन
4.85
लाख खर्च होते हैं एक पीपा के निर्माण पर
10
टन लोड इमरजेंसी में सहने की है क्षमता
दस टन का भार सहने की क्षमता
बनकर तैयार होने के बाद एक पांटून का वजन जानकर आप चौंक जाएंगे। एक्सपर्ट बताते हैं कि एक पांटून का वजन 5.269 एमटी होता है।
पांटून निर्माण के वक्त उसे दस टन का वजन सहने की क्षमता के अनुरूप डिजाइन किया जाता है, यानी अचानक भीड़ बढऩे पर पीपा पुल दस टन भार सह सकता है।
सुरक्षा और अधिक लोड अचानक न बढ़े इसलिए बनाए गए पांटून पुल की भार क्षमता पांच टन ही लिखकर बोर्ड लगाया जाता है।
पांटून पुल के निर्माण में लगाई जाने वाली लकडिय़ां साखू, सागौन और शीशम की ही होती हैं। इनका प्रयोग मजबूती को देखकर किया जाता है।
यही वजह है कि लोडेड ट्रक गुजरने के बावजूद पांटून पुल नहीं टूटता
ऐसे पानी में तैरते हैं पांटून
एक सवाल के जवाब में एक्सपर्ट ने यह भी बताया कि आखिर 5.269 मीट्रिक टन वजह का यह पांटून गंगा के पानी में लोड बढऩे पर भी क्यों नहीं डूबता। वह बताते हैं कि यह पांटून अपने वजह के अनुपात में पानी को नीचे से हटाता है। ऐसे में पांटून भार से पानी उसी वेग के साथ पांटून को ऊपर की ओर धक्का देता रहता है। यह एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है। जिसके तहत पानी पर पांटून पुल इतना वजन होने के बावजूद तैरता रहता है। पांटून में एयर भरी रहे इसके लिए डिजाइन करते वक्त थोड़ी जगह ढक्कन के आकार की खोल दी जाती है।
पांटून निर्माण में वैज्ञानिक विधि को ध्यान में रखते व टेक्निकल फार्मूले का प्रयोग किया जाता है। डिजाइन करते वक्त उसके वजन और भार क्षमता का विशेष ध्यान दिया जाता है। इसमें लगाई जाने वाली प्लेटें स्टील की होती हैं। मौजूदा समय में जो पांटून बनाए जा रहे उसकी लागत चार लाख 80 हजार से भी अधिक है।
अनामिका त्रिपाठी
सहायक अभियंता विद्युत यांत्रिक खण्ड