सरहद पार बैठे दुश्मन देश को बर्बाद करने की साजिश सोशल मीडिया पर भी रच रहे हैं. उनके जरिए सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर युवाओं को गुमराह व बर्बाद करने वाले वीडियो पोस्ट किए जा रहे हैं. ऐसे वीडियो में बालकों व युवाओं को बम बनाने से लेकर तमंचा बनाने तक की ट्रेनिंग दी जाती है. डेमो के तौर पर ऐसे वीडियो में छोटी-छोटी बात पर तमंचा निकालने व बम बनाकर मारने जैसे सीन दिखाए जाते हैं. इश्क और प्यार व अश्लील वीडियो भी उनके जरिए परोसी जा रही है. उन्हें पता होता है कि मोबाइल या लैपटॉप से युवा व बालक इन वीडियो तक आसानी से पहुंच जाते हैं. उनकी मनोदशा चेंज होने लगती है. इसे 'नोमो फोबियाÓ बीमारी नाम दिया गया है.

प्रयागराज (ब्‍यूरो)। जिले में इन दिनों कई नाबालिग छात्रों के द्वारा बमबाजी व सुसाइड की घटनाएं सामने आई हैं। पुलिस द्वारा किए गए खुलासे में इन घटनाओं के पीछे मोबाइल का बड़ा रोल सामने आया था। आरोपित बालक व युवा मोबाइल पर ही यूट्यूब से बम बनाने की ट्रेनिंग लिए थे। युवाओं को बर्बाद कर रहे मोबाइल को लेकर दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने मनोचिकित्सक से बात की। काल्विन स्थित मन केन्द्र के मनोचिकित्सकों द्वारा जो बातें बताई गईं वह बेहद चौंकाने वाली थीं। डॉक्टरों ने कहा कि इंस्टाग्राम व यूट्यूब जैसे प्लेटफार्म पर देश के युवाओं को बर्बाद करने के इरादे से कई ग्रुप एक्टिव हैं। तमंचा चलाने, बम बनाने, उसे चलाने, नशा करते हुए एक्शन मारने व बात-बात पर गोली बम चलाने जैसे वीडियोज सोशल मीडिया पर उपलब्ध हैं। ऐसे वीडियो को पोस्ट करने के पीछे की मंशा युवाओं का माइंडसेट चेंज करना होता है। वे कहते हैं कि ज्यादातर युवा व बालकों के हाथ में एंड्रायड मोबाइल है। इसके चलते ऐसा कंटेंट उनकी रीच में हो जाता है। इंटरनेट पर एक बार गलती से कोई गलत कंटेंट आपने सर्च कर लिया या देख लिया तो ज्यों आप दोबारा वहां पहुंचते हैं, सिमिलर कंटेंट के लिंक अपने आप सामने आने लगते हैं। इससे यूथ का झुकाव होता है और उन्हें ऐसे कंटेंट में मजा आने लगता है। धीरे-धीरे वह नोमो फोबिया के शिकार हो जाते हैं। इस बीमारी के शिकार युवा हों या बालक व बालिकाएं, उनसे मोबाइल छीनने या देखने से मना करने पर एग्रेसिव हो जाते हैं।

12 मरीज हर माह पहुंचते हैं मोबाइल रिएक्शन सेंटर
11 छात्र बमबाजी में पकड़े थे, यूट्यूब से सीखे थे बम बनाना
06 बमबाजी की घटनाएं इसी माह दिए थे अंजाम

गलत ग्रुप में रात भर देखता था वीडियो
मोबाइल एरिक्शन सेंटर के डॉक्टर कहते हैं कि पिछले महीने की बात है। तेलियरगंज से एक नाबालिग को लेकर उसके परिजन आए थे। बालक का पिता डाक घर में ऑफिसर हैं। वह बालक विदेश से संचालित एक ऐसे ग्रुप से जुड़ गया था जिसमें बालकों व युवाओं का माइंडवास करके गलत रास्तों पर चलने के लिए प्रेरित किया जाता था। गुप रात एक डेढ़ बजे के बाद चलता था, लिहाजा वह रात भर जगकर गु्रप पर चैट व वीडियो देखा करता था। उसे रात में मोबाइल देखने से परिजनों द्वारा मना करने पर वह घर के सामानों को तोडऩा, फेकना, किताबें फाडऩे जैसी हरकतें किया करता था। काउंसिलिंग बाद उसका उपचार भी चल रहा है।

मोबाइल छीनने पर काटी थी नस
कौंधियारा की एक करीब 17 साल की बालिका को लेकर उसके मां बाप सेंटर आए थे। उन्होंने बताया था कि बालिका से मोबाइल लेने या चलाने से मना करने पर वह हाथ का नस काट लेती है। दो बार वह उसका इलाज करा चुके थे। काउंसिलिंग व जांच पड़ताल के बाद मालूम चला कि वह बालिका भी नोमो फोबिया से ग्रसित है। पूछताछ में डॉक्टर को परिजनों से पता चला था कि वह बालिका मोबाइल पर मार-काट वाले वीडियो देखा करती थी।

ऐसे होगा बचाव
बच्चों से मोबाइल को थोड़ी-थोड़ी देर के लिए दूर करें और उनकी एक्टिविटी वॉच करें
उनके मोबाइल को बहाने से लें और उनके दोस्त, उनकी तस्वीरें एवं वीडियो को चेक करें
मोबाइल से दूरी पर वह कोई अवांटेड रिस्पांस देते हैं तो समझिए कि वह नोमो फोबिया की ओर बढ़ रहा है।
तत्काल सेंटर लाकर काउंसिलिंग और इलाज के लिए चिकित्सीय परामर्श लें

मोबाइल पर ऐसा कंटेंट भी है जो किसी का कॅरियर बना सकता है तो ऐसा भी है जो बर्बादी का रास्ता दिखा सकता है। अभिभावकों को इसे लेकर थोड़ा सतर्क और सजग रहने की जरूर है। मोबाइल दिलाना जरूरी है तो दिलाएं लेकिन नजर भी रखें। रिलेशन हेल्दी रखें ताकि बच्चा मोबाइल चेक करने पर रीएक्ट न करे।
डॉ। राकेश पासवान मनोचिकित्सक मोबाइल एडिक्शन सेंटर

Posted By: Inextlive