'विरामचिह्नों के अभाव मे भाषा और साहित्य गतिहीन
प्रयागराज (ब्यूरो)। आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी की पुण्यतिथि पर आयोजित शैक्षिक संगोष्ठी मे अध्यक्षता कर रहे हिन्दी साहित्य सम्मेलन के प्रधानमन्त्री विभूति मिश्र ने बताया, हम लोग विरामचिह्नो के महत्व को ठुकुराते आ रहे हैं, जबकि उनके अभाव मे भाषा और साहित्य की गति ठहर जाती है। वाक्य-प्रवाह को बनाये रखने के लिए विरामचिह्न एक अनुशासन है। मुख्य अतिथि चौधरी महादेव प्रसाद महाविद्यालय मे हिन्दी-विभाग की प्राध्यापक डॉ सरोज सिंह ने कहा, शिक्षक अपने को समर्थ मानता है, इसलिए व्याकरण के प्रमुख अंग विरामचिह्नादिक की उपेक्षा करता आ रहा है। यदि वही अध्यापक अपने विद्यार्थियों को व्याकरण-बोध कराये तो उनका हित हो सकता है। इसकी शुरुआत प्राथमिक शाला से करनी होगी। स्पेशल गेस्ट सीएमपी की हिन्दी-विभागाध्यक्ष डॉ आभा त्रिपाठी ने कहा, यदि विद्यार्थियों को विरामचिह्नो के प्रति सजग और जागरूक नहीं किया जायेगा तो आगे चलकर प्रतियोगितात्मक परीक्षाओं मे उन्हें असहजता का सामना करना पड़ेगा।
विरामचिन्हों की उपयोगिता से इंकार नहीं
मेरी लुकस में हिन्दी के प्रवक्ता डॉ धारवेन्द्र प्रताप सिंह ने बताया, विद्यालयों मे इसके प्रति विरक्ति है, जो कि घातक है। मीडिया में सबसे अधिक विरामचिह्नो की दुर्गति की जा रही है। उर्वशी उपाध्याय ने कहा, समाचारपत्रों में विरामचिह्नो की उपयोगिता न के बराबर है। प्रूफरीडर और विद्यार्थी विनय तिवारी ने कहा, मैं सीख रहा हूँ और प्रूफ-पठन के समय सजग भी रहता हूँ। अध्यापक वीरेन्द्र त्रिपाठी ने बताया, 'बोलते और लिखते समय उपयुक्त विरामचिह्नो के प्रयोग करने पर मुझे प्रसन्नता होती है और गर्व भी होता है। केशव सक्सेना ने कहा, 'विरामचिह्नो की उपयोगिता से इन्कार नहीं कर सकते हैं.Ó साहित्यकार डॉ प्रदीप चित्रांशी ने संचालन और आभार-ज्ञापन किया। इस अवसर पर ज्योति चित्रांशी, कृष्णकुमार केसरवानी, डॉ कृष्णकुमार केसरवानी आदि उपस्थित थे।