'सीजे को सीईसी की नियुक्ति से अलग रखना संविधान की मंसा के विपरीत'
प्रयागराज (ब्यूरो)। सेंटर फार कांस्टीट्यूशनल एण्ड सोसल रिफार्म के राष्ट्रीय अध्यक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता एएन त्रिपाठी ने चुनाव आयुक्त की नियुक्ति कानून को संवैधानिक भावना व मंसा के विपरीत माना और केंद्र सरकार से अपील की है कि चुनाव आयोग को स्वतंत्र व निष्पक्ष बनाये रखने के लिए चयन समिति में भारत के मुख्य न्यायाधीश को शामिल किया जाए। कानून संशोधन के जरिए चुनाव आयोग की निष्पक्षता सुनिश्चित की जाय।सुप्रीम कोर्ट है संविधान का संरक्षक
त्रिपाठी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अनूप बर्नवाल केस में आदेश दिया था कि जब तक कानून नहीं बन जाता चुनाव आयुक्त की नियुक्ति समिति में प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता व मुख्य न्यायाधीश रहेंगे। अब जब कानून बनाया गया है तो प्रधानमंत्री, विपक्षी या बड़े दल के नेता व प्रधानमंत्री द्वारा नामित कैबिनेट मंत्री की समिति बनाई गई है। जिससे समिति में दो के बहुमत होने के कारण सरकार अपनी मर्जी का चुनाव आयुक्त नियुक्त कर सकेगी। जिससे चुनाव आयोग की निष्पक्षता व निर्भीकता प्रभावित होगी। त्रिपाठी ने कहा कि कानून बनाने में सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश का पालन नहीं किया गया है। सुप्रीम कोर्ट संविधान की संरक्षक हैं। जिसकी गाइड लाइंस का अनुपालन किया जाना चाहिए था। त्रिपाठी ने कहा कि चेक एण्ड बैलेंस के लिए चयन समिति में भारत के चीफ जस्टिस को रखने से आयोग की निष्पक्षता पर आशंका व संदेह छंट जाते।अनजाने में हो गई थी बड़ी गलतीजैसे जनतंत्र के लिए स्वतंत्र, निष्पक्ष व निर्भीक न्यायपालिका जरूरी है वैसे ही चुनाव आयोग भी होना चाहिए। उन्होंने कहा संविधान निर्माताओं को लिखित संविधान बनाते समय संवैधानिक संस्थाओं के गठन की प्रक्रिया निश्चित करनी चाहिए थी। ऐसा न कर संसद पर छोड़ संविधान सभा ने अनजाने में बड़ी गलती की है। त्रिपाठी ने कहा कि प्रधानमंत्री सत्ता दल का नेता होता है वह पार्टी की नीतियों से आबद्ध रहता है। यही स्थिति विपक्षी या सबसे बड़े दल के नेता की भी होती है। मुख्य न्यायाधीश निष्पक्ष रहता है.जिसका समिति में रहना निष्पक्ष चयन प्रक्रिया के लिए जरूरी है। कानून बनाते समय इन पहलुओं पर विचार किया जाना चाहिए था। सोसल रिफार्म की बैठक में पूर्व शासकीय अधिवक्ता अरूण कुमार मिश्र, अरविंद कुमार मिश्र,ओ पी शर्मा, बीरेंद्र यादव,आदि मौजूद थे।