तकनीक के मामले में जितनी तेजी से आगे बढ़ी है उतनी ही तेजी से जालसाजों का यहां नेटवर्क भी बढ़ा है. यह सभी को मालूम है कि कोई भी चीज के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए इंटरनेट सबसे उपयोगी है. स्थिति यह है कि जिले में रोजाना औसतन 13 से 15 लोग किसी न किसी तरह साइबर ठगी के शिकार हो रहे हैं. यह वे लोग हैं जो शिकायत दर्ज कराने पुलिस के पास पहुंचते है. न जाने कितने लोग ऐसे भी होंगे. जो पुलिस तक जाते ही नहीं होंगे. सबसे ज्यादा मामला इस बीच त्योहार हुआ है. दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट की टीम ने दीपावली त्योहार के आसपास का रिकॉर्ड निकलवाया तो इनमें से अलग-अलग तरह की वारदातें शामिल रही. पंद्रह दिन के अंतराल में 67 से अधिक केस सामने आए. उन केसेस को पड़ताल करने पर जानकारी हुई कि इंटरनेट पर सर्च करने पर लोग ठगी का शिकार हुये है. इसमें 70 प्रतिशत पुरुष ही सिर्फ शामिल है. आइए आपको बताते है कैसे हो रहा हाई-टेक तरीके से फ्राड....

प्रयागराज ब्यूरो । जयंतीपुर, धूमनगंज के राजीव चंद्रा एक अस्पताल में डॉक्टर को दिखाने के लिए इंटरनेट पर कुछ ढूंढ रहे थे। उनको परिवार के किसी सदस्य का इलाज कराना था। इस बीच साइबर ठगों ने कॉल आना शुरू हो गया। पहले उनसे बीमारी व दिखाने संबंधित अच्छे से जानकारी ली। उनको लगा कि सही जगह पर बात कर रहे है। उसके बाद बात करते-करते झांसे में ले लिया। फिर एक मोबाइल एप डाउनलोड कराकर उनका मोबाइल हैक कर लिया। इसके बाद उनके बैंक खाते से 22 हजार रुपये उडा दिये। उसके बाद मोबाइल फोन स्विच हो गया।

केस 02
धूमनगंज निवासी सुभाष पांडेय अपनी तन्हाई दूर करने के लिए इंटरनेट से दोस्त बनाओ एप व तमाम चीजों की जानकारी ले रहे थे। तभी उनके पास एक नंबर से महिला मैसेज आना शुरू हो गया। उसने बताया कि वह यूके से है। दोनों के बीच धीरे-धीरे दोस्त गहरी हो गई। उसने बताया कि पति अब नहीं रहा। उसका काफी प्रॉपर्टी व कैश कीमती सामान है। वह लेकर इंडिया आना चाहती है। वह विश्वास में आ गए। यूके से पार्सल लेकर आने के नाम पर 1.35 लाख रुपये की चपत लगा दिया था। उनके मोबाइल पर फोन आया कि आपका पार्सल यूके से आया है और मुंबई कस्टम विभाग ने पकडा है। उसे छुडाने के लिए दो लाख रुपये जुर्माना भरना होगा। पीडित विश्वास में आकर 133500 रुपये जमा कर दिये। बाद में 50 हजार जमा करने को कहता रहा लेकिन पीडित ने जमा नहीं किया। इसके बाद दूसरे नंबर से फोन आया कि दिल्ली एयरपोर्ट से बोल रही हू आपकी यूके वाली दोस्त हमारे कस्टडी में है। इसके पास 58 लाख का डिमांड ड्राफ्ट है। एक लाख जुर्माना भरना होगा। जिसमें इसने 50 दे दिया है। शेष दे दो साइबर ठगी का शिकार होने पर पीडित ने नंबर के आधार पर केस दर्ज कराया है।

केस 03
अभी हाल ही में छोटा बघाड़ा के दिग्विजय पांडेय ने कर्नलगंज थाने में साइबर ठगी का मुकदमा दर्ज कराया है। उन्होंने वाई-फाई का रिचार्ज न होने पर कस्टमर केयर नंबर पर इंटरनेट पर ढूंढना शुरू किया। एक नंबर भी मिल गया। उन्होंने उस नंबर पर कॉल किया। उनको नहीं पता था कि नंबर फर्जी व साइबर शातिरों का है। साइबर ठग ने फोन पे पर रुपये लौटाने का झांसा दिया। इसके बाद दो बार में कुल 98 हजार रुपये आनलाइन ट्रांसफर कर लिये। कुछ देर बाद उन्होंने उसी नंबर पर कॉल किया। वह नंबर स्विच ऑफ तक हो गया। इंटरनेट से फर्जी नंबर तक गायब हो गया। वेबसाइट तक नहीं दिखाई पड़ी।

केस 04
ओमगायत्री नगर की श्वेता तिवारी साइबर ठगों के जाल में फंसकर 27 हजार रुपये गवां बैठीं थी। वह कोटेक महेंद्रा बैंक की क्रेडिट कार्ड कुछ जानकारी ले रही थी। इतने ही देर में कॉल तक आने शुरू हो गया। वह नहीं समझ पाई। उनको लगा बैंक वाले ही होंगे। क्रेडिट कार्ड की जानकारी मांगी और ओटीपी पूछकर उनके बैंक खाते से रुपये ट्रांसफर कर लिए। उसके बाद उस नंबर पर कॉल करने पर रिंग ही नहीं जा रहा था। यहां तक कि ट्रू कॉलर पर बैंक तक का नाम शो कर रहा था।

केस 05
धूमनगंज के जागृति विहार आवास योजना निवासी आर तिवारी के पास एक दिन फोन आया कि उसके बेटे को डा। संजीव शर्मा को दिखाने के लिए जस्ट डायल के द्वारा सर्च किया गया था। डा। को दिखाने के लिए पहले पांच रुपये का भुगतान कराया। फिर पीडिता के मोबाइल पर एक लिंक भेजा गया। ऐप इंस्टाल करने पर खाते से 24399 रुपये कट गये। उस नंबर पर जब दोबारा कॉल किया गया तो फोन स्विच बताया। पुलिस बताती है कि उन्होंने इंटरनेट ने फर्जी वेबसाइट सर्च कर लिए। जिसके चलते उनको पास फर्जी कॉल आना शुरू हो गया। जबकि ट्रू कॉलर पर फ्रॉड लिखकर भी आ रहा था। फिर भी उनके चंगुल फंस गए।


इन बातों का रखें ध्यान क्या है वेबसाइट असली/नकली की पहचान
पहली चीज यदि यही हो सकती है, आप हमेशा वेबसाइट पर नजऱ डालेंगे तो उसके एड्रेस के शुरुवात में द्धह्लह्लश्चह्य:// में स् का अर्थ सुरक्षित है और यह इंडीकेट करता है कि वेबसाइट डेटा को स्थानांतरित करने के लिए एन्क्रिप्शन का उपयोग करती है, यह इसे हैकर्स से बचाती है। यदि किसी भी वेबसाइट के द्धह्लह्लश्च:// में स् का उपयोग नहीं करती है तो इसमें कोई गारंटी नहीं है की वेबसाइट सुरक्षित है। आपको कभी भी द्धह्लह्लश्च:// से शुरू होने वाली साइट में व्यक्तिगत जानकारी दर्ज नहीं करनी चाहिए। कुछ इंटरनेट ब्राउजऱ है जैसे ष्द्धह्म्शद्वद्ग, स्नद्बह्म्द्गद्घश3 आपको असुरक्षित वेबसाइटों के बारे में चेतावनी देने में मदद करते हैं। जब कोई वेबसाइट सुरक्षित है तो उसके बगल में एक ताला(द्यशष्द्म) का चिन्ह दिखाई देता है और नहीं है तो 'हृशह्ल स्द्गष्ह्वह्म्द्गÓ करके लिख के आता है।


2- डोमेन का नाम और आयु देखें
स्कैमर्स लोगों के पसंदीदा वेबसाइट की नक़ल करते हैँ। जैसे ्रद्वड्ड5शठ्ठ.ष्शद्व की तरह और स्कैमर्स आप पर भरोसा करते हैं कि आप पते और डोमेन नाम पर स्किमिंग कर रहे हैं, इसलिए यदि आप किसी अन्य पृष्ठ से किसी वेबसाइट पर रीडायरेक्ट किए जाते हैं तो एड्रेस बार को दोबारा जांचना हमेशा उचित होता है। स्कैमर्स हमेशा फेस्टिवल सेल्स के दौरान या फिर किसी ऑनलइन सेल्स के समय ऑफिसियल वेबसाइट की तरह डमी वेबसाइट बनाते है। उस समय यह वेबसाइट वास्तविक दिखनेवाली वेबसाइट की तरह दिखती है। डोमेन की आयु देखने के लिए द्धह्लह्लश्चह्य://2द्धशद्बह्य.स्रशद्वड्डद्बठ्ठह्लशशद्यह्य.ष्शद्व पर जा के वेबसाइट कितने समय से सक्रीय है यह देख सकते है।

3- कंटेंट पर गौर करे
यदि वेबसाइट का कंटेट कोई विश्वसनीय नहीं लग रहा हो, व्याकरण में गलतिया हो, स्पेलिंग में गलतिया हो तो यह एक संकेत भी हो सकता है। वैध वेबसाइटों वाली कंपनियां निश्चित रूप से कभी-कभार टाइपो एरर हो सकता हैं लेकिन फिर भी एक पेशेवर वेबसाइट पेश करने में प्रयास करती हैं। कंपनी अपने बारे में जानकारी देने में हिचक रही है, कंपनी से संपर्क करने के कई तरीके खोजें जैसे फ़ोन, ईमेल, लाइव चाट जैसे विकल्प मौजूद नहीं है तो सावधानी बरते। यदि इनमे से कोई भी विकल्प प्रदान कर रही हो और ठीक तरीके से जवाब देने में सक्षम नहीं है तो भी आगे बढऩे से पहले पुन: विचार करे।

4- नकली सौदे(डिस्काउंट) से दूर रहे
कभी खुदरा विक्रेता अतिरिक्त सामान उतारने या नए उत्पादों के लिए जगह बनाने के लिए पुराने माल पर भारी छूट देता है। बताई गयी छूट असली है या नहीं इसकी भी जाँच करे। छूट को बाकि दूसरे इ-कॉमर्स वेबसाइट से तुलना करके देखे की वाकई इतनी छूट पर प्रोडक्ट उपलब्ध हो सकता है या नहीं। इसमें संभावना अधिक है कि आप अपकेद्वारा खरीदे गए सामान या आपके द्वारा खर्च किए गए धन को कभी नहीं देख पाएंगे।

5- सुरक्षित भुगतान विकल्पों का उपयोग करें
इ-कॉमर्स वेबसाइट पर कभी भुगतान करते समय क्रेडिट-डेबिट कार्ड, पेपाल, जी-पे/फ़ोन-पे(भारत में) जैसे विकल्पों का चुनना जरुरी है। यदि किसी वेबसाइट के लिए आपको वायर ट्रांसफऱ, मनी ऑर्डर जैसे अन्य असुक्षित विधि का भुगतान करने करें।

6- वायरस और पॉप अप विज्ञापन से बचे
वेबसाइट विज्ञापन या पॉप-अप की बाढ़ यह संकेत देती है तो यह सुरक्षित नहीं है। विज्ञापन स्वयं किसी समस्या का संकेत नहीं हैं, लेकिन यदि सामग्री से अधिक विज्ञापन हैं या आपको वेबसाइट पर पुनर्निर्देशित करने के लिए कई विज्ञापनों पर क्लिक करना है, तो यह संदेह का कारण है। कई मुफ्त रिसोर्सेज हैं जो आपको वायरस, फि़शिंग, मैलवेयर और ज्ञात स्कैम साइटों के लिए त्वरित स्कैन करने देते हैं। दुर्भावनापूर्ण वेबसाइटों से खुद को बचाने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप अपने सभी उपकरणों पर एंटीवायरस सॉफ़्टवेयर स्थापित करें और इसे अद्यतित रखें।

7- असली जानकारी प्राप्त करे
कभी किसी वेबसाइट का डिज़ाइन या फिर भारी डिस्काउंट आपको आकर्षित कर सकती है। इसलिए अपने पर काबू रखके वेबसाइट के बारे में पहले जानकारी प्राप्त करे फिर आगे बढे। यदि आपको बड़ी संख्या में नकारात्मक समीक्षाएं(ह्म्द्ग1द्बद्ग2ह्य) मिलती हैं, तो यह दूर जाने का एक स्पष्ट संकेत है। नकली वेबसाइटों द्वारा आपको मूर्ख बनाने के सभी तरीकों से खतरा महसूस करने के बजाय, यह महसूस करें कि क्या देखना है।

Posted By: Inextlive