'विश्व में हिन्दी को प्रतिष्ठा दिलाने का श्रेय राजर्षि टण्डन कोÓ.
प्रयागराज ब्यूरो । हिंदी साहित्य सम्मेलन के तत्वावधान में मंगलवार को हिंदी संग्रहालय में भारतरत्न राजर्षि पुरूषोत्तम दास टंडन की 141वीं जयन्ती श्रद्धापूर्वक मनाई गई। मुख्य अतिथि जगद्गुरु शंकराचार्य वासुदेवानंद सरस्वती और हिंदी साहित्य सम्मेलन के प्रधानमंत्री विभूति मिश्र ने दीप प्रज्ज्वलन करके प्रोग्राम की शुरुआत की। साहित्यकार चारुमित्र पाठक ने कहा कि टण्डन जी यूपी एसेम्बली के अध्यक्ष रहे। पहले इलाहाबाद के कम्पनी बाग और लखनऊ में बैठकें होती थी जिसमें उन्होंने आठ बार अध्यक्षता की थी। उनका हिंदी को आफिशियल रूप में स्थापित करने का सपना आज साकार हो रहा है। देवरहा बाबा ने दी थी उपाधि
टण्डन जी ने हमेशा भाषा की मर्यादा बनाए रखी और एक संत की तरह जीवन व्यतीत किया जिसकी वजह से देवरहा बाबा ने उन्हें राजर्षि की उपाधि दी। साहित्यकार राजेन्द्र शुक्ल ने कहा कि आज केन्द्र और राज्य सरकार को हिंदी साहित्य सम्मेलन को आगे बढानें की आवश्यकता है। हिंदी साहित्य सम्मेलन के प्रधानमंत्री विभूति मिश्र ने कहा कि राजर्षि टण्डन जी का भारतीय संस्कृति और भारतीय भाषा के साथ राजनीति में गहरा लगाव था। वासुदेवानंद सरस्वती ने कहा कि आज विश्व में हिंदी की जो प्रतिष्ठा हुई है उसका श्रेय टंडन जी को ही है। स्वतंत्रता के बाद से आज तक राजर्षि की उपाधि प्राप्त करने वाले अकेले टण्डन जी ही हैं दूसरा कोई नहीं है। संचालन पूर्व कार्यालय अधीक्षक शेषमणि पाण्डेय और आभार डॉ रामकिशोर शर्मा ने ज्ञापित किया। पद्माकर मिश्र, एमपी तिवारी, कुन्तक मिश्र, राजकुमार शर्मा, अंजनी शुक्ल, डॉ शेषनारायण शुक्ला, प्रदीप श्रीवास्तव, दुर्गानंद शर्मा, किण्ठमणि मिश्र, पवित्र तिवारी, कमलेन्द्र तिवारी, कृष्ण कुमार पाण्डेय, सौरभ पाण्डेय के अलावा कई हिन्दीप्रेमी उपस्थित रहे।