- बंगाली परिवार द्वारा 1923 में की गई थी बारवारी की शुरुआत- प्रसिद्ध काली मंदिर दक्षिणेश्वर की थीम पर आधारित है इस बार का पंडाल

प्रयागराज ब्यूरो । इस वर्ष शाहगंज क्षेत्र में दुर्गा पूजा का आयोजन विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यह बारवारी का 101वां वर्ष है। यह न केवल एक त्योहार है, बल्कि एक ऐतिहासिक यात्रा का प्रतीक भी है। इस बारवारी की शुरुआत 1923 में एक बंगाली परिवार द्वारा की गई थी और अब तीसरी पीढ़ी इस परंपरा को आगे बढ़ा रही है। समिति के द्वारा हर साल नई थीम पर पांडाल बनाकर भक्तों को आकर्षित किया जाता है।
दो माह से मेहनत कर रहे कारीगर
शाहगंज बारवारी द्वारा इस बार का पंडाल प्रसिद्ध काली मंदिर दक्षिणेश्वर की थीम पर आधारित है, जिसे तैयार करने में लगभग 58 कारीगर दो माह से मेहनत कर रहे हैं। सभी कारीगर कोलकाता के मिदनापुर से आए हैं, ताकि वे अपनी कला के माध्यम से माता के पंडाल को खूबसूरत बना सकें।
बता दें कि दक्षिणेश्वर काली मंदिर हुगली नदी के किनारे एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। पंडाल की सजावट में स्थानीय संस्कृति और कला का समावेश किया गया है। पिछले साल का पंडाल पुरी के श्रीजगन्नाथ मंदिर पर आधारित था, जिसे बांग्ला वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा सर्वश्रेष्ठ ट्रॉफी से सम्मानित किया गया था।

सीसीटीवी कैमरे से होगी निगरानी
आयोजन समिति ने इस बार पंडाल में आने वाले श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए विशेष प्रबंध किए हैं। पुलिस और स्थानीय लोग मिलकर इस क्षेत्र को सुरक्षित बनाने में जुटे है। पंडाल के अंदर और उसके चारों ओर सीसीटीवी कैमरे भी स्थापित किए गए हैं, जिससे किसी भी प्रकार की अप्रिय घटना से बचा जा सके। समिति ने सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए पूरे क्षेत्र में निगरानी सुनिश्चित की है, ताकि श्रद्धालु बिना किसी चिंता के माता दुर्गा की भक्ति कर सकें।
इकोफ्रेंडली है माता का पंडाल
इस बार के पंडाल को पर्यावरण के अनुकूल बनाने पर भी जोर दिया गया है। सभी सामग्रिया इंको फ्रेंडली रखी गई हैं। जिससे पर्यावरण को भी सुरक्षित रखा जा सके। इस बार श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का मुख्य केंद्र पंडाल में विराजित लगभग 12 फीट ऊंची माता की प्रतिमा होगी। पंडाल की सजावट के साथ-साथ विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाएगा।

इस साल हमारी बारवारी का 101वां वर्ष पूरा हो रहा है, जिसके उपलक्ष्य में हमने पंडाल को प्रसिद्ध दक्षिणेश्वर काली मंदिर की प्रेरणा से सजाया है। यह आयोजन खास है, क्योंकि 1923 में शुरू हुई यह परंपरा अब तक चलती आ रही है। और मैं आशा करता हूं कि यह आगे भी जारी रहेगी। मैं तीसरी पीढ़ी का सदस्य हूं, और इस साल की थीम दर्शकों को पसंद आएगी। हमने पंडाल को इकोफ्रेंडली बनाने की भी कोशिश की है।
संजीव, समिति सदस्य

Posted By: Inextlive