आपका बच्चा भी समझता है खुद को 'सुपरहीरो'
आगरा(ब्यूरो)। कानपुर में शुक्रवार को एक बच्चे ने स्कूल की पहली मंजिल से छलांग लगा दी। वह खुद को अपने फेवरेट कार्टून करेक्टर सुपर मैन समझता था। बच्चे के पेट और हाथ-पैरों में गंभीर चोटें आईं हैं। यह पूरी घटना स्कूल के सीसीटीवी में कैद हो गई है। इसी को ध्यान में रखते हुए दैनिक जागरण आईनेक्टस की टीम ने पैरेंट्स और स्कूल शिक्षकों से बातचीत करते हुए एक इंन्वेस्टीगेट किया। जिसमें काफी सामने आया कि बच्चों का जीवन संवारने के लिए पेरेंट्स को घर से ही पहल करनी होगी।
टीवी के इन प्रोग्राम के करेक्टर को कॉपी करते हैं बच्चे
वर्तमान समय में बच्चों को फिजिकल एक्टिविटी कम हो गई है। इनमें कहीं न कहीं पेरेंट्स की ही गलती है। वह बच्चे को शांत बैठाने के लिए फोन देने के बजाय उसका दिमाग क्रि एटीविटी और इन्डोर गेम पर लगाएं। इससे उससे दिमाग की एक्ससाइज भी होगी। इन दिनों बच्चे छोटा भीम, मोगली, लिटिल सिंघम, वीर दि रोबो ब्वॉय, सुपर मैन, स्पाइडर मैन आदि कार्टून को कॉपी करने की कोशिश करते हैं। बच्चे गेम के मैन हीरो से इन्सपायर होकर खुद की एक्टिविटी उस कार्टून करेक्टर की तरह कर लेते हैं।
ऑनलाइन गेम खेलने की आदत भी खतरनाक
ऑनलाइन गेमिंग की लत बच्चे को इस कदर प्रभावित करती है कि बच्चा चिड़चिड़ेपन का शिकार हो जाता है। इस तरह के बच्चे एडीएचडी (अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिस्ऑर्डर) बीमारी का शिकार हो रहे हैं। डॉ। पूनम तिवारी का कहना है कि यह बीमारी एक सामान्य बौद्धिक क्षमता वाले बच्चों को ज्यादा प्रभावित करती है। इसका कारण ऑनलाइन गेमिंग ही है। इस बीमारी के कारण कोई भी बच्चा ठीक तरह से होमवर्क नहीं कर पा रहा है। वहीं अकेले रहने वाले बच्चों पर इसका अधिक असर नजर आ रहा है।
मनोवैज्ञानिक डॉ। अंशुल चौहान बताते हैं कि इस समय कई ऐसे ऑनलाइन गेम आए हैं, इसमें एक के बाद एक लेवल खुलती जाती है। ऐसे गेम्स को बच्चे एक चुनौती की तरह लेते हैं और अगले लेवल पर जाना खुद की उपलब्धि मानते हैं। डॉ। अंशुल के मुताबिक ऐसे बच्चों में डोपामिन हारमोन के कारण गेम का नशा हो जाता है और वे गेम से दूर होने पर आक्रामक स्वभाव के हो जाते हैं।
बच्चों के साथ इस बात का रखें खास ख्याल
-बच्चों को एक घंटे से अधिक मोबाइल देने से रखें परहेज
-बच्चों से बात कर कम्यूनीकेशन रखने की कोशिश करें, समझाएं
-मोबाइल गेम रियल गेम का विकल्प नहीं हो सकते इसलिए उन्हें बाहर खेलने जरूर भेजें
-अपनी अपेक्षाएं न थोपे, समझने की कोशिश करें
-स्वभाव में बदलाव लगता है तो बच्चों को अकेला न छोड़ें
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