भारतीय संस्कृति सीखने के लिए हमें जाना होगा सात समंदर पार- डॉ. सदानंद
आगरा(ब्यूरो)। वह विदेश मंत्रालय के भारतीय सांस्कृतिक समन्वय परिषद के कार्यक्रम के तहत त्रिनिदाद भारतीय शास्त्रीय संगीत का प्रचार-प्रसार करने गए थे। उन्होंने इस 11 माह की अवधि में 174 विदेशियों का भारतीय शास्त्रीय संगीत से परिचय कराया और उन्हें इसे सिखाया। डॉ। सदानंद ने बताया कि वहां पर प्रवासी भारतीय अपनी संस्कृति से बहुत प्रेम करते हैैं। इस कारण वह शास्त्रीय संगीत भी सीखना चाहते थे। उन्होंने बताया कि त्रिनिदाद में रह रहे प्रवासी भारतीय हमसे ज्यादा भारतीय संस्कृति के करीब हैैं। वहां पर स्कूलों में पहला पीरियड धर्म का लगता है प्रत्येक दिन हवन करके ही स्कूल का दिन प्रारम्भ होता है। एक वर्ष में विद्यार्थियों को लगभग सौ से ज्यादा वैदिक मंत्रों को कंठस्थ कराया जाता हैैं। इसके साथ ही वहां त्योहारों पर मंदिरों में पूजा करने के बाद में अपने माता-पिता और गुरुओं की आरती करते हैैं। उन्होंने कहा कि हमारे देश में रह रहे लोग पश्चिमी सभ्यता की ओर बढ़ रहे हैैं वहीं त्रिनिदाद में रह रहे प्रवासी भारतीय अपनी संस्कृति को सहेजे हुए हैैं। ऐसा प्रतीत होता है कि आने वाले समय में हमें अपनी संस्कृति सीखने के लिए त्रिनिदाद जैसे देशों में जाना पड़ेगा।
समुद्र में बना दिया मंदिर
डॉ। ब्रह्मïभट्टï ने बताया कि 175 साल पहले ब्रिटिशर्स भारतीयों को बेहतर जीवनयापन का लालच देकर त्रिनिदाद, गयाना, पोर्ट ऑफ स्पेन ले गए थे। वहां पर उन्हें मंदिर नहीं बनाने दिया गया। तो भारतीयों ने वहां पर समुद्र में ही मंदिर बना दिया। मैैं खुद उस मंदिर में पूजा अर्चना करके आया हूं। उन्होंने कहा कि शास्त्रीय संगीत को उन प्रवासी भारतीयों में ज्यादा सीखने की ललक है। डॉ। ब्रह्मïभट्टï ने कहा कि पुराने समय में संगीत जैसी कलाओं को राजाश्रय प्राप्त था। इस कारण वह फल-फूल रहीं थी। अब लोकतंत्र हैै तो अब इस विधा को लोकाश्रय मिलना चाहिए तभी हमारे प्राचीन भारतीय संगीत व संस्कृति को संरक्षण एवं बल मिल सकता है।