आगरा .ब्यूरो आज विश्व पर्यावरण दिवस है. पानी से लेकर हवा धरा से हरियाली तक को संवारने सजोने और संरक्षण का दिन है. पर्यावरण संरक्षण को लेकर पिछले कई वर्षों से सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं ने विभिन्न अवेयरनेस प्रोग्राम चलाए. इसका शहर और शहरवासियों पर किस तरह असर पड़ा है? क्या पर्यावरण संरक्षण को लेकर आम लोगों में जागरूकता आई है? कुछ ऐसे ही सवालों के जवाब तलाशने का दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने प्रयास किया गया.

इलेक्ट्रिक व्हीकल का बढ़ा यूज
शहर में प्रदूषण में वाहनों से निकलने वाला धुआं प्रमुख वजह बनता है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से लोगों ने इलेक्ट्रिक व्हीकल को तरजीह देना शुरू कर दिया है। परिवहन विभाग के आंकड़ों से इसकी तस्दीक करते हैं। वर्ष 2019 में जहां सिर्फ 2071 इलेक्ट्रिक (बीओवी-बैट्री ऑप्रेटेड व्हीकल) व्हीकल्स की बिक्री हुई। 2023 में अब तक 3575 इलेक्ट्रिक्ट व्कीकल्स की ब्रिकी हो चुकी है। यहां तक कि शहर में पब्लिक ट्रांसपोर्ट में लगी बसें भी इलेक्ट्रिक हैं। यानी अब इलेक्ट्रिक व्हीकल को लोग लगातार तरजीह दे रहे हैं। इससे न तो धुआं निकलता है और न ही तेज आवाज होती है। जिससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होता।

इलेक्ट्रिक व्हीकल्स के रजिस्ट्रेशन की स्थिति
कुल रजिस्ट्रेशन 15505
वर्ष वाहन
2023 3575
2022 5303
2021 1515
2020 1015
2019 2071

नोट::परिवहन की वेबसाइट के अनुसार 4 जून तक के आंकड़े।

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शहर में ग्रीनरी का स्तर स्थिर
हाल के दिनों में शहर में ग्रीनरी बढ़ी है। जी-20 के दौरान शहर में बड़ेस्तर पर वर्टिकल गार्डन लगाए गए। छोटे-छोटे पार्क बनाए गए। इसकी देखभाल भी हो रही है। ये वर्टिकल गार्डन न सिर्फ शहर को खूबसूरती प्रदान कर रहे हैं, बल्कि पॉल्यूशन के लेवल को कम करने में भी मददगार साबित हो रहे हैं।


साल हरित क्षेत्र किमी
2011 6.84 परसेंट 276.00
2013 6.78 परसेंट 273.00
2015 6.75 परसेंट 273.00
2017 6.73 परसेंट 272.00
2019 6.50 परसेंट 262.60
2021 6.50 परसेंट 262.62


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पेट्रोल-डीजल नहीं, सीएनजी वाहनों का चलन
अब पेट्रोल-डीजल से अधिक सीएनजी वाहनों को तरजीह दी जा रही है। लोडिंग वाहनों में भी सीएनजी व्हीकल्स की डिमांड अधिक है। शहर में 52301 वाहन रजिस्टर्ड हैं, जो सीएनजी से चलते हैं। इन वाहनों में ट्रक से लेकर कार तक शामिल हैं।
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जेनरेटर का यूज हुआ कम
शहर में बिजली सप्लाई का नेटवर्क दुरुस्त होने का फायदा शहर के पर्यावरण को भी हुआ। पहले जहां घंटों बिजली गुल रहने के चलते जेनरेटर का यूज करना पड़ता था। अब शहर में बिजली नेटवर्क दुरुस्त होने से और टीटीजेड में जेनरेटर के इस्तेमाल पर रोक लगने से पर्यावरण को फायदा हुआ।
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प्लांटेशन को लेकर अवेयरनेस भी आई
शहर में पर्यावरण को लेकर लोगों में अवेयरनेस भी आई है। आंकड़े भी इस ओर इशारा करते हैं। वन विभाग की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019 में ग्रीनरी की स्थिति 262.60 किमी थी, जो वर्ष 2021 में भी करीब इतनी ही रही।


पौधरोपण की स्थिति
वर्ष पौधरोपण
2018 20 लाख
2019 28 लाख
2020 38 लाख
2021 45 लाख
2022 51 लाख
2023 47.50 लाख टारगेट

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आठ वर्षों में सबसे कम एक्यूआई
पर्यावरण संरक्षण का असर शहर में एक्यूआई लेवल पर भी देखने को मिला। अप्रैल में जो एक्यूआई लेवल पिछले वर्षों में मॉडरेट और पुअर कंडीशन रहा। इस बार ये एक्यूआई लेवल ग्रीन जोन के साथ सेटिसफेक्ट्री कंडीशन में रहा। पर्यावरणविद ब्रज खंडेलवाल ने बताया कि इस बार पिछले वर्षों की अपेक्षा एक्यूआई का स्तर सामान्य कंडीशन में रहा है।


वर्ष एक्यूआई
2023 88
2022 253
2021 165
2019 111
2018 192
2017 209
2016 151

नोट::सीपीसीबी की वेबसाइट के अनुसार 15 अप्रैल के आंकड़े।

शहर में जेनरेटर की बिक्री पर बहुत असर पड़ा है। इसको इस तरह समझा जा सकता है कि पहले जहां शहर में 100 जेनरेटर की बिक्री होती थी, अब वह सिर्फ 5 से 10 तक सिमट कर रह गई है। इनका भी इस्तेमाल अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों में एग्रीकल्चर आदि में हो रहा है।
अमित अग्रवाल, जेनरेटर कारोबारी

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पर्यावरण को लेकर लोगों को कुछ हद तक अवेयरनेस तो आई है। इसे तरह देखा जा सकता है कि मेरे आसपास मिलने वालों में अधिकतर लोग इलेक्ट्रिक व्हीकल का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसके साथ ही पॉलिथिन पर प्रतिबंध का भी असर दिख रहा है। लोग घरों से थैला लेकर निकलते हैं। पानी की बोतल साथ लेकर चलते हैं। जगह-जगह पेड़ लगाए जा रहे हैं। पालीवाल पार्क में हरियाली में काफी बढ़ोत्तरी नजर आ रही है। इसका असर भी दिखा है। इस बार एक्यूआई लेवल सामान्य रहा।
डॉ। देवाशीष भट्टाचार्य, पर्यावरणविद्
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शहर के पर्यावरण में बदलाव तो दिख रहा है। गर्मियों में एयर क्वालिटी इंडेक्स का जो लेवल गंभीर स्थिति में रहता था, वह इस बार अप्रैल से जून तक सामान्य दिख रहा है। इसके साथ ही आम लोगों में भी पर्यावरण बचाने को लेकर जागरूकता आई है। इसके साथ ही जगह-जगह पेड़-पौधे लगाए जा रहे हैं। इसका भी शहर को फायदा मिल रहा है।
ब्रज खंडेलवाल, पर्यावरणविद्

Posted By: Inextlive