प्रसव के बाद में महिलाओं को प्रोक्टोलॉजी यानि मलाशय में परेशानी आने जैसी समस्याएं होने लगती हैैं. इसका कारण है कि सामान्य प्रसव के बाद महिलाएं पानी कम पीती हैं. उन्हें लगता है कि प्रसव के बाद पानी पीने से मोटे हो जाते हैं. इसलिए महिलाओं को कब्ज की समस्या हो रही है और प्रोक्टोलॉजी की समस्या बढ़ी है. यह बातें डॉ. निधि बंसल ने शुक्रवार को वल्र्डकॉन-2023 के पहले दिन कहीं. कलाकृति ऑडिटोरियम में इंटरनेशनल कांफ्रेंस ऑफ कोलो प्रोक्टोलॉजी वल्र्डकॉन-2023 का तीन दिवसीय आयोजन हो रहा है. इसमें देश-विदेश के सर्जन प्रतिभाग कर रहे हैैं.

आगरा(ब्यूरो)। कांफ्रेंस में डॉ। शांति कुमार चिवटे ने कहा कि प्रोक्टोलॉजी मलाशय और मलद्वार की लेजर समेत नई तकनीकी से सर्जरी में 20 प्रतिशत सर्जन ही प्रशिक्षित हैं। जबकि ये बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं। ऐसे में भारत में अगले तीन वर्ष में नई तकनीकी से 20 हजार सर्जन को प्रशिक्षित करना है। इससे मरीजों की सर्जरी सस्ती दर पर हो सकेगी और मरीज 24 से 48 घंटे में काम पर जा सकेंगे। आईएससीपी के प्रेसीडेंट इलेक्ट डॉ। प्रशांत रहाटे ने कहा कि पाइल्स, फिशर, फिस्टुला की समस्याएं बढ़ रही हैं। ऐसे केस में सामान्य तरह से सर्जरी करने पर मरीज को एक महीने तक घर पर रहना पड़ता है और सर्जरी भी महंगी है। जबकि लेजर विधि, एमआईपीएच स्टेप्लर विधि, चिवटे प्रोसीजिर, सिग्मोइडोस्कापी, एंडोसूचरिंग विधि से सर्जरी के 48 घंटे बाद मरीज काम पर लौट सकता है। सर्जरी में खर्चा 30 से 40 हजार आता था इसे 10 से 15 हजार रुपए तक ले जाना है। जिससे अधिक से अधिक मरीज इस तरह की सर्जरी करा सकें।


कोलोन के कैंसर का रोबोटिक सर्जरी से इलाज
डॉ। अश्विन तंगवेलु कोयंबटूर ने रोबोटिक सर्जरी से कोलोन के कैंसर की सर्जरी की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि दूरबीन विधि और रोबोटिक सर्जरी से छोटे टांके लगाकर कोलोन के कैंसर वाले हिस्से को निकाल दिया जाता है और उसे कनेक्ट कर दिया जाता है, जिससे मल को निकालने के लिए अलग से थैली लगाने की जरूरत नहीं होती है।

कोलाइटिस की भी बढ़ रही समस्या
आईएससीपी के सचिव डॉ। लक्ष्मीकांत लाडूकर ने बताया कि कोलाइटिस की भी समस्या बढ़ी है, पहले अमीबाइड कोलाइटिस देखने को मिलती थी लेकिन अब अल्सरेटिव कोलाइटिस और क्रान्स डिजीज मिल रहा है। इसके पीछे फास्ट फूड का सेवन करने के साथ ही अत्यधिक तनाव एक बड़ा कारण है।
ऐसे पहचानें कौन सी समस्या
डॉ। प्रशांत रहाटे ने कहा कि पाइल्स, फिशर, फिस्टुला की समस्या के लक्षण लगभग समान होते हैं, लेकिन इलाज अलग-अलग। सही समय पर समस्या का पता चलना और सही इलाज मिलने से मरीज 2-4 दिन में ठीक हो सकता है। लेकिन समस्या कुछ और इलाज कोई और परेशानी को जीवनभर के लिए बनाए रख सकता है।

पाइल्स: घाव के साथ ब्लीडिंग
फिस्टुला: छोटा छेद, जहां से पस निकलता है। यह छेद अंदर गहराई तक हो सकता है।
प्रोलेब्स: गुदा बाहर आ जाता है। मल करने में तकलीफ हमेशा ठीक से प्रेशर न हो पाने का एहसास।
यह रहे मौजूद
इस अवसर पर डॉ। शांतिकुमार चिवटे, डॉ। लक्ष्मीकांत लाडूकर डॉ। प्रशांत रहाटे, आयोजन समिति के डॉ। अनुभव गोयल, डॉ। हिमांशु यादव, डॉ। करन रावत, डॉ। जूही सिंघल, डॉ। प्रशांत लवानिया आदि उपस्थित रहे।
फास्ट फूड में मैदा और अजीनोमोटा के साथ ही प्रिजर्वेटिव का इस्तेमाल किया जाता है। इससे पाइल्स, फिशर की समस्या बढ़ रही है। इसके ग्रेड के हिसाब से इलाज किया जाता है।
- डॉ। अंकुर बंसल, आयोजन सचिव

युवा सर्जन को सर्जरी की नई तकनीकि सीखने व उसे अपनाने पर जोर देना चाहिए, जिससे मरीजों को आर्थिक व शारीरिक दोनों तरीके का लाभ मिल सके।
- डॉ। प्रशांत गुप्ता, प्रिंसिपल, एसएनएमसी

पाइल्स, फिशर, फिस्टुला की समस्याएं बढ़ रही हैं। ऐसे केस में सामान्य तरह से सर्जरी करने पर मरीज को एक महीने तक घर पर रहना पड़ता है। नई विधि से दो दिन में मरीज काम कर सकेगा।
- डॉ। प्रशांत रहाटे, इलेक्ट प्रेसिडेंट, आईएससीपी

Posted By: Inextlive