...सब जग होरी, बिरज में होरा
अखिल कुमार
आज बिरज में होरी रे रसिया।
अपने-अपने भवन सौ निकसी, कोई श्यामल कोई गोरी रे रसिया।
आज बिरज में होरी रे रसिया।
ब्रज में हरि होरी मचाई। इत ते निकरीं सुघर राधिका, उत ते कु?वर कन्हाई।
मथुरा: कैसा देश निगोरा, जगत होरी बिरज होरा। तरह-तरह के होरी के गानों से सोमवार को पूरा ब्रजमंडल झूम रहा था। मौका था बांकेबिहारी के दरबार में रंगभरनी एकादशी का होली महोत्सव। कोई चौरासी कोस की परिक्रमा लगाकर बिहारी की चौखट पर खड़ा था तो कोई वृंदावन की पंचकोसी परिक्रमा लगाकर अपने ईष्ट के साथ होली खेलने को बेचैन हो रहा था। मंदिर परिसर में तो हजारों की संख्या में श्रद्धालु बांकेबिहारी की एक झलक के लिए दीवाने हुए जा रहे थे। बांके बिहारी की जै, राधे-राधे के जयकारों से पूरा ब्रजमंडल रंगभरनी एकादशी के दिन तरह-तरह के रंगों में सराबोर था। परिक्रमा मार्ग पर अबीर-गुलाल के खूशबू गलियों में बिखर रही थी तो वहीं आसमान भी आज आसमानी से हरा, लाला, नीला, पीला हो रहा था। कुछ ऐसा की दृश्य बांकेबिहारी समेत वृंदावन के मंदिरों का था।
श्वेत पोशाक पहनकर बिराजमान हुए बांकेबिहारी
रंगभरनी एकादशी पर ब्रज में होली की धूम है। मथुरा से लेकर वृंदावन तक आस्था के अद्भुत रंग बिखर रहे हैं। वृंदावन के विश्व प्रसिद्ध श्रीबांकेबिहारी मंदिर में जन-जन के आराध्य ठाकुर बांकेबिहारी ने श्वेत पोशाक धारण कर, रजत सिंहासन पर विराजमान होकर भक्तों को दर्शन दिए। श्रद्धालु एक ओर कान्हा की सुंदर छवि देखकर भाव विभोर हो रहे थे। वहीं, सेवायत पिचकारियों में रंग भरभर कर श्रद्धालुओं को होरी के रंगों में सराबोर कर रहे थे। रंगभरनी एकादशी पर ठाकुर बांकेबिहारी ने सोने-चांदी की पिचकारी से भक्तों पर रंग बरसाए। इस परंपरा के बाद मंदिर में रंग वाली होली का शुभारंभ हो गया। बता दें कि रंगभरनी एकादशी पर मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर होली के भव्य आयोजन हो रहे हैं। जन्मभूमि में प्रवेश के लिए सुबह से ही भक्तों की कतार लग गई। मंदिर परिसर में रंगों की बरसात हो रही है, जिससे सतरंगी छटा छाई हुई है। बांकेबिहारी मंदिर के सेवायत आचार्य प्रह्लाद वल्लभ गोस्वामी के अनुसार रंगभरनी एकादशी पर श्रीबांकेबिहारी के लिए शुद्ध केसर का रंग बनाया गया है। सेवायत सबसे पहले स्वर्ण रजत निॢमत पिचकारी से श्वेत वस्त्र धारण किए हुए ठाकुरजी के ऊपर रंग डालते हैं, इसके बाद होली का परंपरागत शुभारंभ होता है। उन्होंने बताया कि मंदिर में टेसू के रंगों के साथ-साथ चोवा, चंदन के अलावा अबीर गुलाल से होली खेली जाती है। यह होली रंगभरनी एकादशी से शुरू होकर पूॢणमा की शाम तक होती है।
आस्था के साथ मान रहे नियम
मंदिर सेवायत शशांक गोस्वामी ने बताया कि धूलैड़ी वाले दिन ठाकुरजी भक्तों पर रंग नहीं डालते बल्कि स्वर्ण सिंघासन पर गुलाबी पोशाक पहनकर राजा बनकर बैठते हैं और अपने भक्तों को होली खेलते देखते हैं। इसी दिन सुबह मंदिर के सेवायतों के द्वारा क्षेत्र में चौपाई (भ्रमण) निकाली जाती है। समाज गायन के साथ बधाई गीत होते हैं। ठाकुर श्रीबांकेबिहारी मंदिर के साथ ही राधावल्लभ, राधादामोदर, राधाश्याम सुंदर, राधारमण मंदिर, राधा गोपीनाथ, राधासेनह बिहारी, मदन मोहन मंदिर, यशोदानंदन धाम, गोदाहरिदेव दिव्य देश आदि मंदिरों में टेसू के रंगों से होली खेली जा रही है।
बांकेबिहारी ने जलेबी का लगाया भोग
होलीपर्व के दौरान ठाकुरजी को चाट, जलेबी, ठंडाई का विशेष भोग अवश्य लगाया जाता है। इसके अलावा पकौड़ी, दालपकौड़ी, दहीबड़ा, गुजिया, सोंठ बड़ा गुजिया, पानी की टिकिया, सोंठ-दही-चटनी की टिकिया, खाजा, समोसा, आलूगोला आदि बिहारीजी को अॢपत किए जाते हैं। इनके संग केसर, बादाम, काजू, पिस्ता, पोस्त, खरबूजाबीज, सौंफ, कालीमिर्च, गुलकंद, दूध मिश्रित ठंडाई भगवान को भोग धराई जाती है।
श्रद्धालुओं ने की वृंदावन की परिक्रमा
रंगभरनी एकादशी पर वृंदावन की परिक्रमा होती है। इस दिन लाखों भक्त गुलाल उड़ाते हुए वृंदावन परिक्रमा करते हैं। इसी भाव से सोमवार को वृंदावन की पंचकोसीय परिक्रमा देने के लिए श्रद्धालुओं का भारी जनसैलाब उमड़ पड़ा। परिक्रमाॢथयों ने श्रद्धा, भ?ित और विश्वास के साथ वृंदावन की परिक्रमा दी।
---
खास है ब्रज की होली
यूं तो होली का त्योहार देशभर में मनाया जाता है किंतु ब्रज की होली का खास महत्व है। यहां त्योहार नहीं होली महोत्सव मनाया जाता है। ऐसा महोत्सव जिसमें लोगों के इष्ट आराध्य कृष्ण कन्हाई भी शामिल होते हैं। हर ओर उड़ता अबीर गुलाल और हवा में छाई गर्माहट, पेड़ों से फूटने वाली कोपलों की शीतलता में घुलकर पूरे ब्रज में जैसे भाव और रस का संचार कर देती है।
पूरे माह उठता है रंग-गुलाल
दुनिया में होली सिर्फ एक दिन मनाई जाती है, लेकिन ब्रज में फाल्गुन आते ही हवा में अबीर, गुलाल उडऩे लगते हैं और ब्रज के गलियारों से लेकर मंदिर तक फाग गूंजने लगता है। बसंत पंचमी के दिन से ही तैयारियां शुरू हो जाती हैं। हर चौराहे पर डांढा गढ़ता और फागों का सिलसिला शुरू हो जाता है।
कुछ खास दिन
-ब्रज के हर मंदिर में होली का उत्सव बसंत पंचमी से शुरू हो जाता है और होली तक मंदिरों में बसंती रंगों की बौछार होने लगती है, और भक्त ब्रज रस में सराबोर हो होली के रंगों में रंग जाते हैं। इस पूरे सवा महीने के कार्यक्रम में ब्रज के विभिन्न क्षेत्रों में होली के पर्व पर विशेष आयोजन किए जाते हैं।
बुलाय गयी राधा प्यारी
मथुरा से सैंतालीस किमी दूर बसे राधारानी के गांव बरसाना में राधारानी मंदिर के परिसर में लठामार होली से एक दिन पहले लड्डू होली का आयोजन किया जाता है। लड्डू होली पर बरसाना गांव में नंदगांव के कान्हा स्वरूप हुरियारे होरी खेलने आते हैं। इस दिन लोग एक दूसरे को जमकर लड्डू बांटते हैं और लुटाते हैं।
-अगले दिन शाम चार बजे के बाद मनाई जाने वाली लठामार होली में एक दिन पहले बरसाना आए कृष्ण स्वरूप हुरियारों को बरसाना की लंहगा और ओढऩी में सजी हुरियारिनें जी भरकर लाठियां भांजती हैं, वहीं नंदगांव के हुरियारे फाग गा-गाकर गोपी स्वरूपा हुरियारिनों को खूब छकाते और उकसाते हैं। आसमान गुलाल और रंग में नहा उठता है।
-नंदगांव के कृष्ण कन्हाई बरसाने की राधा गोरी मथुरा से 54 किमी दूर श्री कृष्ण के गांव नंदगांव में बरसाने की लठामार होली के एक दिन बाद ही लट्ठमार होली मनाई जाती है। इस दिन बरसाने के हुरियारे नंदगांव में अपना एक झंडा लेकर जाते हैं जिसे बरसाने की हुरियारिनें रोक देती हैं, गोप जबरन घुसते हैं और बस यहीं से इन पर प्रेम में पगी लाठियां बरसने लगती हैं। प्रेमपूर्वक बदला लेने की भावना लिए हुरियारों और हुरियारिनों के बीच की इस मनोहारी नोकझोंक और वार्तालाप नंदगांव में ही देखने को मिलता है।
-मथुरा के श्री कृष्ण जन्मस्थान में मनाई जाने वाली होली की अपनी अलग ही पहचान है। समाज गायन के बाद होने वाली श्यामा श्याम की होली में भक्त भी भावविभोर हो नाच उठते हैं और पूरा वातावरण अबीर और गुलाल के उड़ते बादलों से ढक जाता है। इसके अलावा मथुरा के द्वारिकाधीश मंदिर में भी होली की उमंग अपने चरम पर रहती है।
-रंगभरनी एकादशी के दिन वृंदावन के बांकेबिहारी मंदिर समेत सभी मंदिरों में भव्य होली का आयोजन होता है। ठाकुर जी श्री बांकेबिहारी श्वेत पोशाक में श्रद्धालुओं के साथ होली खेलते हैं। रंगभरनी एकादशी के बाद से ही वृंदावन की कुंज गलियों में रंगों की बौछार शुरू हो जाती है, जो धुलेड़ी वाले दिन तक चलती है। चौड़े-चौड़े कलशों में भरा टेसू के फूलों का कुनकुना पानी जब पिचकारियों में भरकर भक्तों पर डाला जाता है तो होली का एक अप्रतिम उत्सव देखने को मिलता है। चारों ओर वातावरण में उड़ता अबीर-गुलाल और हवा में बहती फूलों की मादक खुशबू में जैसे मन डूब जाता है।
-ब्रज में होरा की तर्ज पर ब्रज के भिन्न-भिन्न स्थानों पर लठामार होली के बाद रंग खेलनी होली यानि की धुलेड़ी वाले दिन मथुरा से लगभग 22 किमी। दूर बल्देव के दाऊजी मंदिर में हुरंगा का आयोजन किया जाता है। इस दिन कृष्ण के बड़े भाई बल्देव जी का डोला निकाला जाता है। हुरंगा में गांव की महिलाएं, गांव के ही पुरूषों पर पोतना (फटे कपडों का अंटा लगाकर बनाया गया) फटकारती हैं और हुरियारे अपना बचाव करते हुए गीत गाते हैं।