Agra news: बुक्स और यूनिफॉर्म में ही हो गई जेब खाली, बढ़ी फीस भरने को है 'बेहाली'
आगरा(ब्यूरो)। न्यू सेशन के साथ ही पेरेंट्स अपने बच्चों के स्कूलों में प्रवेश के लिए सक्रिय हो गए हैं। वे स्कूलों में जाकर बच्चों के प्रवेश के लिए संपर्क करने में लगे हैं लेकिन मिडिल क्लास वाले पेरेंट्स के लिए अब अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाना आसान नहीं रह गया है। शहर में कुछ ऐसे स्कूल हैं जिनकी फीस पहले से ही अधिक है, वहीं पचास फीसदी से अधिक रुपए बढ़ाए गए हैं। स्कूल्स ने पिछले साल की फीस में इस बार सात हजार रुपए से अधिक इजाफा किया है। इसके साथ ही स्कूल में तमाम अन्य सुविधाओं के नाम पर भी फीस ली जाती है।
अप्रैल में बिगड़ा पेरेंट्स का बजट
प्रवेश के समय स्कूलों में 5000 रुपए से लेकर 35000 रुपए तक जमा कराए जा रहे हैं। इसके अलावा कॉपी, बुक्स व स्टेशनरी का खर्च अलग से लगता है। इसके खर्च भी 5000 से लेकर 10,500 रुपए तक बैठ रहे हैं। पहले माह में पढ़ाई का इतना अधिक खर्च आ जाने से बजट को लेकर पेरेंट्स टेंशन में है। उनकी समझ में नहीं आ रहा कि वे किस तरह से इस खर्च को मेंटेन करें। बुक्स के सेट शहर के कुछ बड़े स्कूल्स में दस से बारह हजार रुपए के हैं, वहीं डे्रस भी चार से पांच हजार रुपए तक खरीदी गई हैं। ऐसे में अप्रैल मंथ का वजट पेरेंट्स को बिगड़ता नजर आ रहा है।
निजी स्कूल हर साल दस फीसदी फीस बढ़ा रहे हैं। इसके पहले निजी स्कूलों द्वारा अपने हिसाब से फीस का निर्धारण हर वर्ष किया जाता था, अब पोर्टल पर दर्ज फीस के हिसाब से 10 फीसदी फीस बढ़ाने का अधिकार है। कई स्कूल इससे अधिक फीस बढ़ा रहे है तो उसे कराण बताने होंगे। 15 फीसदी फीस बढ़ाने के लिए जिला शिक्षाधिकारी कारण के साथ अनुमति ली जाती है। इससे अधिक बढाने पर शासन की अनुमति लेना जरुरी है। क्या कहता है कानून
अधिवक्ता हेमंत भारद्वाज के अनुसार उत्तर प्रदेश फीस नियम अधिनियम 2018 के अनुसार प्रदेश के प्राइवेट स्कूलों में वर्षिक समायोजन में सीपीआई में 5 फसदी जोड़कर फीस बढ़ाई जा सकती है। वर्तमान में सत्र में के लिए सीपीआई 6.69 फीसदी है, अधिनियम के अनुसार, स्कूल की फीस केवल 6.69 फीसदी प्लस 5 फीसदी यानी कुल मिलाकर 11.69 फीसदी तक बढ़ाई जा सकती है।
नहीं माने जा रहे समायोजन के आदेश
पेरेंट्स सुमन ने कहा कि बच्चों की पढ़ाई का बोझ लगातार बढ़ रहा है। स्टेशनरी, पाठय सामग्री पहले से महंगी हो गई है। फीस भी हर साल बढ़ जाती है। ऐसे में बच्चों को कैसे पढ़़ाया जाए। कोरोना के समय ली गई फीस के समायोजन के आदेश भी नहीं माने जा रहे। इस संबंध में प्रशासन के अधिकारियों ने साधी चुप्पी। आय के साधन नहीं बढ़ रहे, लेकिन बच्चों की पढ़ाई का बोझ हर साल बढ़ जाता है। कोरोना के बाद से लोगों की आर्थिक स्थिति प्रभावित हुई है। अप्रैल आते ही बच्चों की पढ़ाई की चिंता सताने लगती है।