ताजनगरी में ऐसी कई महिलाएं है जिन्होंने अपने संघर्ष की बदौलत नई पहचान बनाई है. सिकंदरा क्षेत्र में रहने वाली सरिता जिनका संघर्ष दूसरों के लिए नजीर है. बेटी के दिल में छेद होने के बाद उसके इलाज के लिए कमर कस ली.

आगरा(ब्यूरो)। एमजी रोड पर ई-रिक्शा चलाकर बेटी के इलाज को बड़ी रकम जमा की, आज बेटी पूरी तरह स्वस्थ्य है, लेकिन सरिता अब जीवन यापन के लिए ई-रिक्शा चला रहीं हैं।


लगातार मेहनत कर कराया इलाज
केके नगर के सुंदर नगर की रहने वाली सरिता को जब पता कि उनकी बेटी के दिल में छेद है तो उन्होंने किसी से मदद मांगने की बजाय ई रिक्शा की स्टेरिंग थाम ली। ई-रिक्शा चलाने से होने वाली कमाई को बच्ची के इलाज के लिए खर्च किया। सरिता का संघर्ष उन लोगों के लिए नजीर है, जो हालातों से हार मान लेते हैं। लगातार मेहनत के बाद सरिता ने अपनी बेटी के इलाज को रकम जमा की, इलाज के बाद राहत मिलने पर अब सरिता जीवन यापन के लिए ई-रिक्शा चला रहीं हैं।

परिवार की आय बढ़ाने को उठाया कदम
सरिता बताती हैं कि पति अमित उपाध्याय मजदूरी करते हैं। उनकी आमदनी से केवल घर ही चल पाता है। छह माह की बेटी गायत्री का इलाज नहीं हो पा रहा था। लोगों से गुहार लगाने की जगह उन्होंने परिवार की आय बढ़ाने की ठानी। वर्ष 2016 में खुद के लिए ई-रिक्शा किराए पर लिया और चलाने लगीं। पहले लोगों ने टोका लेकिन अब सभी सामान्य हैं। शहर में ई-रिक्शा के जरिए एक अलग से पहचान बन चुकी है।


आसान नहीं था यह सफर
जगदीशपुरा में रहने वाली सोनम ने बताया कि पांच साल पहले मेरी बेटी के दिमाग में समस्या आ गई, डॉक्टर ने ऑपरेशन के लिए वोला था। इससे आर्थिक समस्या खड़ी हो गई। काफी सोचने के बाद ई-रिक्शा चलाने का मन बनाया, शुरुआत आसान नहीं थी। ई-रिक्शा चलाना सीखा तो दिक्कतें आईं, लेकिन हार नहीं मानी। भाई ने ई-रिक्शा चलाना शिखाया, तब लोग कमेंट करते थे, बाद में आदत पड़ गई। आज में परिवार में पति का सहयोग कर रही हूं, साथ ही दूसरी महिलाओं को भी किराए पर ई-रिक्शा देकर मदद करती हूं।


मजदूरी छोड़ थामी ई-रिक्शा स्टेरिंग
लोहामंडी खतैना की रहने वाली किरन ने बताया कि वह आर्थिक स्थिति से जूझ रही थी। परिवार में पति की मौत के बाद पूरी जिम्मेदारी रही, लेकिन हिम्मत नहीं हारी, परिवार का पालन पोषण करने के लिए मजदूरी शुरू कर दी। इसके बाद एक दिन सोनम के ई-रिक्शा में बैठकर जा रहीं थी, तभी सोनम ने ई-रिक्शा चलाने की सलाह दी, मन में विचार आया कि मैं भी कर सकती हूं, तब सोनम ने मुझे रिक्शा चलाना सिखाया।


बच्चों को स्कूल भेज कर निभाई जिम्मेदारी
ताजगंज में रहने वाली मुमताज ने बताया कि पति की मौत के बाद परिवार के हालात सही नहीं थे लेकिन बच्चों को स्कूल भेजने का सपना पूरा करने के लिए ई-रिक्शा चलाना सीखा। आज बच्चे स्कूल जा रहे हैं। दूसरी महिलाओं को भी किराए पर ई-रिक्शा देती हैं।

Posted By: Inextlive