छोड़कर विदेश, शहर में दे रहे स्वच्छता का संदेश
सोशल सर्विस से इंडिया आने की चाह
आनंद राय ने बताया कि जब वह नासा में मार्स मिशन के लिए काम कर रहे थे, तब वह काफी व्यस्त रहते थे। पास के ही चर्च में एक संस्था जरूरतमंदों के लिए काम करती थी। संस्था के साथ जुड़कर वह भी जरूरतमंदों के लिए काम करने लगे। जब वह वहां पर इंडियंस को देखते तो वह सोचते कि सुपरपावर अमेरिका में लोगों को मदद की जरूरत है तो इंडिया में तो वाकई में गरीबी है और यहां से ज्यादा लोगों को मदद की जरूरत है। इसके बाद मैैंने अपने बॉस को यह बताया तो उन्होंने रोकने की कोशिश की। लेकिन बाद में कॉन्ट्रैक्ट पूरा होने के बाद इंडिया में अपने शहर आगरा वापस आ गए। इसके बाद अचानक से जॉब क्विट करने से बाद काफी चुनौतियां सामने आईं। फिर मैैंने एक कंस्ट्रक्शन साइट पर रह रहे मजदूरों के बच्चों के लिए काम करना शुरू किया। बाद में काम पूरा होने पर मजदूर चले गए।
ऐसे हुई राइजिंग इंडिया की शुरूआत
आनंद राय ने बताया कि एक बार उनके विदेशी दोस्त ने आगरा के कुछ फोटो दिखाए। उनमें से एक फोटो सड़क किनारे गंदगी की फोटो भी थी। इसके बाद आगरा के मेरे सोशल सर्विस करने वाले साथियों को मैैंने कहा कि मैैं गंदगी पर काम करना चाहता हूं। इस पर साथी राजी हुए और अगले रविवार से ही हमने यह कार्य शुरू कर दिया। पहले रविवार को मेरे साथ विकास सिंघवी, प्रमोद यादव सहित हम चार साथी संजय प्लेस में एक गंदे स्थान का फोटो खींचा। इसके बाद गंदगी को साफ करके गेरू से दीवार को रंग दिया। इसके बाद हमने गंदगी की फोटो, इसके बाद में सफाई के बाद की फोटो फेसबुक वॉल पर पोस्ट किया। इसके बाद हमने सबको आमंत्रित किया कि आप भी हमारे साथ अपने शहर को साफ कर सकते हैैं। हमें ऐसा लग रहा था कि लोग अपने घर में झाड़ू नहीं लगाना चाहते तो ओपन में सबके सामने आकर कैसे शहर की सफाई करेंगे। लेकिन इसके विपरीत कई लोग हमारे साथ जुड़े और शहर के विभिन्न स्थानों को साफ करके पेंट करने लगे। इसी के साथ 2014 में इंडिया राइजिंग की शुरूआत हुई। धीरे-धीरे शहर में इस काम की चर्चा होने लगी।
साइंटिस्ट बनने का बचपन से था सपना
आनंद राय बताते हैैं कि वह बचपन से ही साइंटिस्ट बनना चाहते थे। मेरे पिता मुझे डॉ। एपीजे अब्दुल कलाम के बारे में बताते थे। उस वक्त आज की तरह इंटरनेट भी नहीं था। तब मैैं केवल सुनकर महसूस करता था। जब में फिफ्थ क्लास में था तब आगरा में मेरी मुलाकात एक अमेरिकी वैज्ञानिक से हुई। इसके बाद मेरी साइंटिस्ट बनने की इच्छा और प्रबल हो गई। इसके बाद मैैंने अपनी पढ़ाई, केमिस्ट्री, जूलॉजी और बॉटनी से ग्रेजुएशन किया और ऑर्गेनिक केमिस्ट्री में मास्टर्स किया। इसके बाद मैैं पीएचडी करने के लिए बनारस हिंदू विश्वविद्यालय चला गया। यहीं पर मैैंने डिपार्टमेंट ऑफ फार्मोकोलॉजी में लर्निंग, मेमोरी पर स्ट्रेस का प्रभाव विषय पर रिसर्च किया। इसके बाद अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिलवेनिया में मेरा सेलेक्शन हो गया। वहां जाकर रिसर्च करने का मौका मिला। यहीं से मेरा नासा का सफर शुरू हुआ। वहां पर मार्स मिशन पर जाने वाले एस्ट्रोनॉट्स पर पडऩे वाले मानसिक प्रभाव पर रिसर्च किया।
साइकिल चलाकर देते हैैं पर्यावरण बचाने का संदेश
आनंद राय साइकिल से सफर करते हैैं। वह बताते हैैं कि हम जितना हो सके पर्यावरण को बचाएं। इसलिए मैैं साइकिल चलाता हूं और यंगस्टर्स के साथ अन्य लोगों को भी साइकिल चलाने और पर्यावरण को बचाने का संदेश देता हूं।
मेरा बचपन का सपना साइंटिस्ट बनने का था। मैैं नासा के मार्स मिशन में काम करने तक पहुंचा। इसके बाद में अपने देश और शहर के काम करने के लिए आया। मैैं संतुष्ट हूं कि अपने हाथों से सड़क से एक कंकड़ तो साफ कर ही पा रहा हूं
- आनंद राय, को-फाउंडर, इंडिया राइजिंग