ट्रैफिक रूल्स की अनदेखी, क्षमता से अधिक बैठा रहे स्कूली बच्चे
आगरा(ब्यूरो)। पिछले दिनों देहात क्षेत्र मेें हादसा होने पर संबंधित विभाग की ओर से कार्रवाई शुरू कर दी गई, लेकिन कुछ दिनों में ही मामला ठंडे बस्ते में चला गया। अब सुरक्षित ट्रैफिक के नियमों का पालन कराने के लिए भी जिम्मेदार मौजूद नहीं हैं। स्कूल की छुट्टी होने पर शहर में मानकों को ताक पर रख चालकों को वाहन दौड़ाते देखे जा सकते हैं। इससे संबंधित विभाग की सुस्ती का अंदाजा लगाया जा सकता है।
पुलिस के सामने से निकलती है वैन
शहर में अधिकतर प्राइवेट स्कूलों मे संचालित होने वाले स्कूली वाहन और बसों के मानक पूरे हैं। जिनकी फिटनेस एक्सपायर है उनको नोटिस दिया जाता है। फिटनेस पूरी कराने के प्रोसेस चल रहे हैं, लेकिन, समस्या इन वाहनों से ज्यादा उन प्राइवेट वाहनों से है जो स्कूली बच्चों की सुरक्षा का एक भी मानक पूरे करे बिना ही सड़कों पर दौड़ रहे हैं। क्षमता से ज्यादा बच्चों को भरकर यह वाहन पुलिस के सामने से ही निकल जाते हैं लेकिन, इनको रोकने की हिम्मत ट्रैफिक पुलिस नहीं करती है।
शहर में ऑटो रिक्शा की भरमार
स्कूलों की छुट्टी होते ही शहर की सड़कों पर स्कूली वैन और ऑटो रिक्शा की भरमार हो जाती है। ऐसा कोई चौराहा या स्कूल के आसपास की रोड नहीं जिस पर बच्चों को लादे वाहन फर्राटा भरते हुए न दिखें। लेकिन, इन वाहनों पर कार्यवाई के नाम पर परिवहन विभाग का आंकड़ा 10 प्रतिशत भी नहीं है। परिवहन विभाग के आंकड़ों के अनुसार पिछले एक सप्ताह में चार से पांच ही स्कूली वैन का चालान काटा गया है जो स्कूली बच्चों के अलावा अन्य कार्य कर रहीं थीं।
शहर में 15 साल पुराने वाहनों पर पूरी तरह से रोक लगाई गई है, ऐसे में देहात के इलाकों में पुरानी स्कूल वेन दौड़ रहीं हैं। पुलिस की सख्ती के बाद भी बच्चों की जान से खिलवाड़ किया जा रहा है। कई स्कूलों में तो जुगाड़ के ऑटो भी दौड़ रहे हैं। इनको बंद हुए सालों हो चुके हैं। इस पर ना तो पुलिस का ही ध्यान है और ना ही स्कूल उनको रोक रहा है। इसको लेकर कई बार पेरेंट्स शिकायत करते हैं, तो उसे सुना नहीं जाता है।
बच्चों के स्कूल जाने के सोर्स
-स्कूल की खुद की बस, जिसे उनके कंडक्टर और ड्राइवर चलाते हैं। इसमें ज्यादातर नई बसें हैं। इनकी फिटनेस ठीक है।
-ट्रांसपोर्टर से आउट सोर्स पर बसें चलती हैं। इसमें बसों के फिटनेस को लेकर शिकायत रहती हैं।
-पेरेंट्स खुद ड्रॉप करते हैं या फिर ऑटो, ई-रिक्शा या अन्य वाहन करके स्कूल भेजते हैं। ये पेरेंट्स पर डिपेंड हैं।
-बच्चे खुद साइकिल या बाइक से स्कूल जाते हैं लेकिन हेलमेट का प्रयोग करने में लापरवाही बरतते हैं।
-बस में कैमरा होना चाहिए
-जीपीआरएस ट्रैकर
-फायर सेफ्टी उपकरण
-वाहन में मेडिकल किट
-बस के परमिट होने चाहिए
-बस की फिटनेस सर्टिफिकेट
-प्रदूषण वैधता प्रमाणपत्र
-व्हीकल ड्राइविंग लाइसेंस
-एक पुरुष और महिला हेल्पर होना चाहिए
-साइड की तीन पाइप, जिससे बच्चा सिर बाहर नहीं निकाल पाए।
-वाहन में सीट बेल्ट की व्यवस्था होनी चाहिए।
-बस के पीछे स्कूल के नाम और नंबर लिखे होने चाहिए।
-स्पीड गर्वनर होना चाहिए, जो ओवर स्पीड नहीं होने देता है।
-बस की वैधता होनी चाहिए।
-ड्राइवर का पुलिस वेरिफिकेशन हो। रूल्स की अनदेखी करने वाले वाहन चालकों पर समय-समय पर कार्रवाई की जाती है, इसके अलावा सड़क सुरक्षा सप्ताह के अंतर्गत स्कूल और कॉलेजों में बच्चों को ट्रैफिक रूल्स से अवेयर किया जाता है।
अरुण चंद, पुलिस उपायुक्त ट्रैफिक