हेल्द और हैप्पीनेस चाहिए तो भारतीय संस्कृति अपनाएं
आगरा(ब्यूरो)। पर्यावरण एक्टिविस्ट डॉ। शरद गुप्ता ने कहा कि शहर का पर्यावरण अच्छा हो, शुद्ध हवा मिले, इसके लिए प्रशासन को अहम रोल निभाना होगा। सर्दी का मौसम आते ही सीओपीडी और अस्थमा के पेशेंट की संख्या बढ़ जाती है। कई बार ऐसा होता है कि पॉल्यूशन का लेवल बढऩे के कारण ट्रीटमेंट भी प्रॉपर रेस्पॉन्स नहीं करता। मरीज को इसकी जानकारी नहीं होती है। मरीज समझता है उसे सर्दी के चलते जुकाम और खांसी हो रही है। जबकि दिक्कत पॉल्यूशन के चलते होती है। अधिकरी तो अपने कमरे में एयर प्यूरीफायर लगा लेते हैं, उन्हें जमीनी हकीकत का कुछ नहीं पता होता। हाल ही में मैंने एक आरटीआई से जब पेड़ काटने की अनुमति के संबंध में जानकारी मांगी तो बताया गया कि विभिन्न आदेश में करीब 1.50 लाख पेड़ काटने का आदेश दिया गया है। एक पेड़ को काटने पर 10 पेड़ लगाने होते हैं। इस तरह 15 लाख पौधे लग जाने चाहिए थे। जब जिले के हरित क्षेत्र की मैपिंग की गई तो सरकारी आंकड़े के अनुसार 3 परसेंट हरियाली कम हो गई। इससे साफ होता है कि सिर्फ कागजों में पेड़ लगाए जाते हैं। उपजाऊ जमीन पर विकास कार्य नहीं कराए जाएं, जबकि खेती में यूज न होने वाली जमीन पर प्रोजेक्ट लगाए जाएं।
हालात भयावह, रेगिस्तान की ओर बढ़ रहे हम
पर्यावरण एक्टिविस्ट डॉ। देवाशीष भट्टाचार्य ने बताया कि वर्ष 2019 में 19 लाख लोग देश में मारेे गए थे, ये विश्व स्वास्थ्य संगठन का आंकड़ा है। अमूमन भारत में 15 से 20 लाख लोगों की हर वर्ष पॉल्यूशन के चलते मौत हो रही है। पॉल्यूशन के चलते बीमार होने वालों की कितनी बड़ी संख्या है, इसका तो कोई आंकड़ा ही नहीं है। अभी हाल ही में डेनमार्क में पूरे एक दिन का शोक मनाया गया था। क्योंकि वहां का सबसे बड़ा ग्लेश्यिर पिघल गया था। वह भी पॉल्यूशन और ग्लोबल वार्मिंग के चलते ही हुआ था। स्थिति की भयावहता को समझना होगा। अगर एक से दो डिग्री सेल्सियस धरती का तापमान बढ़ गया तो समुद्र किनारे कई शहर टापू डूब जाएंगे। इसमें मुंबई समेत इंडिया के कई शहर शामिल हैं। आगरा में प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण सड़क पर हो रखे गड्ढे हैं। ये धूल तो उड़ाते रहते हैं, लेकिन यहां पानी का छिड़काव नहीं होता है। कमिश्नर कह दें या फिर शासनादेश आ जाएं, जिम्मेदार अधिकारियों पर इसका कोई असर नहीं होता। शहर से हरियाली रातों-रात समाप्त होती जा रही है। आज पेठा सिर्फ नूरी दरवाजा तक सीमिति नहीं है। आज ये कारोबार शहरभर में फैल चुका है। एक अंदाज के मुताबिक दो हजार से ढाई हजार भट््िठयां जलती हैं पेठा की। ये भट्ठियां जलती हैं, लकड़ी, कोयला और चमड़े की कतरन से। शहर में चमड़े की कतरन का अंबार है। इनका डिस्पोजल दो ही तरीके से होता है। कतरन या तो यमुना में जाती है या फिर पेठा इकाई की भट्ठी में ये कतरन जलती है। केमिकल ट्रीटिड चमड़ा जब जलता है तो उससे निकला धुआं सामान्य से 10 से 20 गुना अधिक खतरनाक होता है।
सड़कों पर से कम करना होगा गाडिय़ों का बोझ
डॉ। संजय चतुर्वेदी ने कहा कि पॉल्यूशन के प्रमुख कारक व्हीकल पॉल्यूशन पर आज कोई भी बात नहीं कर रहा है। अगर हमें व्हीकल पॉल्यूशन को कम करना है तो सड़कों पर गाड़ी की ट्रिप्स को कम करना होगा। जब आप पैदल राहगीर और नॉन मोटराइज्ड व्हीकल को सही जगह देंगे तो आप गाडिय़ों का नंबर कम करने की सोच सकते हैं। किसी को 200 मीटर दूर भी जाना है तो वह गाड़ी उठाकर चल देता है। हमारी जो प्लानिंग है, वह कार सेंट्रिक प्लानिंग है। साइकिल ट्रैक एक अच्छी पहल थी। इसको मेेंटेन करना चाहिए था। लेकिन इस ट्रैक पर अब जगह-जगह कंडे सूख रहे हैं। सस्टेनेबल डेवलपमेंट होना चाहिए। विकास में सोसाइटीज का इंवॉल्मेंट होना चाहिए। कंस्ट्रक्शन के साथ इंडोर पॉल्यूशन भी वजह है। चर्चा में ये सुझाव आए सामने - यमुना की सफाई, दिल्ली से इटावा तक नदी की सफाई हो
- शहर में कंक्रीट का जंगल रोका जाए, पुराने मकान को तोड़कर अगर निर्माण करा रहे हो तो सही है। नई बिल्डिंग, नई कॉलोनी की अनुमति नहीं दी जाए।
- शहर की सीमा के अंदर सघन पौधरोपण किया जाए।
- अब नई सड़कें नहीं बनें। जो पुरानी सड़कें हैं उनका प्रॉपर मेंटिनेंस किया जाए। नई सड़क बनाने में ग्रीनरी को नुकसान पहुंचाया जाता है।
- बार-बार सड़कों की खुदाई नहीं होनी चाहिए।
- निर्माण के दौरान पानी का प्रॉपर छिड़काव होना चाहिए।
- जितने फायर टेंडर हैं, उनमें एक-दो आप अलर्ट मोड पर रखें। अन्य फाइर टेंडर से रोज शाम को शहर में पानी का छिड़काव कराएं। इससे पॉल्यूशन भी कम होगा। दमकल कर्मी भी अलर्ट रहेंगे।
- प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयों पर सिर्फ दिखावे की कार्रवाई न हो। बल्कि जो भी कार्रवाई हो, उसको लागू किया जाए।
- जो भी निर्माणदायी संस्था हैं, वह निर्माण के दौरान प्रभावी पानी का छिड़काव करें।
पर्यावरण के लिए सभी संगठित होकर करें पहल
सुप्रीम कोर्ट मॉनिटरिंग कमेटी के सदस्य, विशेष स्थाई सदस्य, टीटीजेड रमन जी ने कहा कि पर्यावरण को लेकर कार्य करने वाली शहर की सभी संस्थाओं और एक्टिविस्ट को संगठित होकर पहल करनी होगी। संयुक्त रूप से आवाज उठानी होगी। आखिर हर सरकार में आगरा को लेकर ही बेरुखी क्यों अपनाई जाती है। आखिर हमारे जनप्रतिनिधि क्या कर रहे हैं? सरकार को हम टैक्स देते हैं कि व्यवस्थाओं को सुचारू रखे। अगर कोई गलती करता है तो पैनलटी लगाई जाए। जिस तरह पिछले पांच साल में पौधरोपण हुआ है उस हिसाब से हर एक फुट पर पेड़ होना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं है। शहर में मास्टर प्लान जो बनता है सिर्फ लैंड यूज का बनता है, जबकि एक कॉम्प्रिहेंसिव मास्टर प्लान की जरूरत है। हवा में सबसे अधिक आरएसपीएम (रेस्पिरेबल सस्पेंड पार्टिकुल मैटर) बढ़ रहा है। वेस्टर्न कंट्रीज की तर्ज पर बनाए गए डेवलपमेंट प्रोजेक्ट भारतीय जमीन पर सक्सेस नहीं हो सकते। वेस्टर्न कंट्रीज में भौगोलिक हालात से लेकर मौसम तक काफी अलग होता है। हम शहरीकरण की ओर जाएंगे, ये बदलाव आने ही आने हैं। वेस्टर्न हमें ये देखना होगा कि हम जीडीपी की ओर जा रहे हैं या फिर हेल्द और हैप्पीनेस की ओर जा रहे हैं। अगर आपको हेल्द और हैप्पीनेस की ओर जाना है तो भारतीय संस्कृति की ओर लौटना होगा। पेड़ों को पूजना होगा। उनकी रक्षा करनी होगी।
नियमों को हो प्रॉपर पालन
दीनदयाल उपाध्याय ग्राम्य विकास संस्थान के डायरेक्टर मनोज राठौर ने कहा कि चमड़े की कतरन एक बड़ी समस्या है। हमने स्टूडेंट्स से सर्वे कराया, जिसमें पता लगा कि कतरन को जलाकर या फिर नालों और यमुना में बहाकर डिस्पोज कराया जाता है। इस ओर प्रशासनिक अधिकारियों को ध्यान देने की जरूरत है। सड़कों की धूल भी बड़ी समस्या है। मैं आवास विकास में रहता हूं। हाल ही में सड़क से स्प्रे मशीन के जरिए धूल हटाई गई तो क्षेत्र के हर घर में धूल भर गई। लोगों को बड़ी दिक्कत का सामना करना पड़ा। मेट्रो, पीब्ल्यूडी, नगर निगम या फिर कोई अन्य निर्माणदायी संस्था हो, निर्माण करे तो गाइडलाइन को फॉला करे। सिर्फ दिखावा नहीं करे। पानी का छिड़काव लगातार किया जाए।
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.तो मिल सकती है राहत
समाजसेवी सुमित के रमन ने बताया कि कोई भी प्रोजेक्ट डिले हो रहा है तो वह वायु प्रदूषण को एड ऑन कर रहा है। धूल के कण हों या अन्य कोई चीज हो, पानी का छिड़काव सॉल्यूशन बन सकता है। नियमित तौर पर हर जगह इसको पालन किया जाए तो कुछ राहत मिल सकती है। शहर में आज बड़े स्तर पर विकास कार्य तो किया जा रहा है, लेकिन निर्माण की गाइडलाइन को प्रॉपर फॉलो नहीं किया जा रहा है। इसके चलते पॉल्यूशन को लेकर समस्याएं सामने आ रहीं हैं।