बारिश का पानी जमीन में जाए तो जाए कैसे?
आगरा(ब्यूरो)। शहर जिस तरह विकास की राह पर आगे बढ़ा, उसी तरह प्राकृतिक संसाधनों की कमी होने लगी। इसमें सबसे प्रमुख ग्राउंड वाटर है। शहर में ग्राउंड वाटर किस तरह विकराल स्थिति में पहुंच चुका है, इसका अंदाजा आंकड़ों से लगाया जा सकता है। कुंडौल स्थित डीएवी इंटर कॉलेज में ग्राउंड वाटर 52.85 मीटर पर पहुंच चुका है। अमरपुरा में ये वाटर लेवल 45.82 मीटर तक जा चुका है। शहर के अन्य एरियाज की भी कमोवेश ऐसी ही स्थिति है। शहर में तेजी से बढ़ रहा कंक्रीट का जाल भी इसकी वजह है। पहले सड़क किनारे फुटपाथ की जगह मिट्टी की होती थी या फिर ईंट से बना फुटपाथ भी होता था, तो बारिश का पानी उससे रिस कर जमीन में जाया करता था। जमीन इस पानी को सोख लेती थी। लेकिन विकास के दौर में सभी फुटपाथ पक्के हो गए हैं। इन्हें सीसी का बना दिया गया है या फिर सीमेंटेड इंटरलॉकिंग टाइल्स लगा दिए गए हैं, जिससे पानी तो छोडि़ए बारिश की एक बूंद भी जमीन में जाना मुमकिन नहीं है।
सड़क किनारे बनाए जा सकते हैं रेन वाटर हार्वेस्टिंग के पिट्स
सड़क किनारे रेन वाटर हार्वेस्टिंग के पिट्स (गड्ढे) बनाए जा सकते हैं। इससे बारिश के दौरान नालियों में बहने वाला पानी रेन वाटर हार्वेस्टिंग के इन पिट्स के जरिए जमीन में चला जाए। लेकिन शहर में इसको लेकर अनदेखी की जा रही है। अगर ताजनगरी में इस व्यवस्था को लागू किया जाए तो न सिर्फ बारिश का पानी बर्बाद होने से बचाया जा सकेगा, बल्कि शहर के ग्राउंड वाटर में भी इजाफा होगा।
शिवम द्विवेदी, एक्सईएन व नोडल, भूजल विभाग आगरा मैं न्यूजीलैंड गया था, वहां सड़क किनारे फुटपाथ मिट्टी का था। पहले शहर में भी सड़क किनारे फुटपाथ मिट्टी के या फिर ईंट के खरंजे होते थे, इससे पानी जमीन के अंदर पहुंच जाता था लेकिन अब तो कंक्रीट का जाल बिछा दिया है। बारिश का सब पानी नाले-नालियों में बहकर बर्बाद होता है।
डॉ। देवाशीष भट्टाचार्य, पर्यावरणविद् - 850 एमएम बारिश हर वर्ष शहर में होती है औसतन
इस एरिया में इतना पानी होगा स्टोर
एरिया - रिचार्ज हेतु उपलब्ध वर्षा जल
100- 80 हजार
200 -1.6 लाख
300 -2.4 लाख
500- 4 लाख
1000 -8 लाख
- अमरपुरा: 45.82 मीटर
- विजय नगर: 37.62 मीटर
- पीडब्ल्यूडी ऑफिस: 37.78 मीटर