ज्वॉइंट्स में दर्द होने हो और इंटरनल या एक्स्टरनल ब्लीडिंग होने लगे ब्रश करते वक्त अक्सर खून आने लगे चोट लगने पर खून बहना बंद न हो तो सावधान हो जाएं. ये हीमोफीलिया के लक्षण हो सकते है. ये आनुवांशिक बीमारी है. इसकी सही समय पर पहचान करके इसका उपचार किया जाता है. हीमोफीलिया के बारे में जागरुकता के लिए हर साल 17 अप्रैल को हीमोफिलिया डे मनाया जाता है.

आगरा। सरोजिनी नायडू मेडिकल कॉलेज की ब्लड एंड ट्रांसफ्यूजन डिपार्टमेंट की हेड ऑफ द डिपार्टमेंट डॉ। नीतू चौहान बताती हैं कि हीमोफिलिया के मरीजों में फैक्टर 8 और फैक्टर 9 की कमी होने से खून जमने की क्षमता कम हो जाती हैैं। ऐसे में खरोंच लगने पर खून ज्यादा बहने लगता है। नांक में हल्की उंगली डालने से ही ब्लीडिंग शुरु हो जाती है और ये बंद नहीं होती है। दांत निकालते समय और रूट कैनाल थेरेपी में अत्यधिक खून बहना, जोड़ों में सूजन या असहनीय पीड़ा होने, बच्चों के दांत टूटने व नये दांत निकलने में मसूड़े से लगातार खून आने की समस्या होने लगती है।

एपीटीटी और पीटीटी से जांच कराएं
मेडिसिन विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ। अजीत सिंह चाहर बताते हैैं कि हीमोफिलिया के मरीजों की पहचान करने की पुष्टि के लिए हम एपीटीटी और पीटीटी जांच कराते हैैं। यदि ये ज्यादा हो जाए तो ये हीमोफिलिया होता है। उन्होंने बताया कि एसएन में हीमोफिलिया के मरीज की पुष्टि हो जाती है, तो हम उसका रजिस्ट्रेशन कर देते हैैं। इसके बाद प्रत्येक मरीज को एक रजिस्ट्रेशन नंबर मिल जाता है। इसके बाद हम लखनऊ से इन मरीजों के लिए फैक्टर मंगाते हैैं और उन्हें ब्लड बैैंक से फैक्टर की डोज इंजेक्शन के जरिए लगाई जाती है।

सर्जरी करने से पहले फैक्टर की डोज लगाना जरूरी
डॉ। अजीत बताते हैैं कि जब किसी हीमोफिलिया मरीज की सर्जरी करनी पड़ती है तो पहले हम उसके फैक्टर की डोज लगाते हैैं। जब स्थिति सामान्य हो जाती है। इसके बाद ही मरीज की सर्जरी की जाती है। उन्होंने बताया कि कई बार मरीजों ज्यादा ब्लीडिंग होने मरीजों को खून की कमी हो सकती है।

हीमोफिलिया के प्रकार
डॉ। नीतू चौहान ने बताया कि खास सावधानियां बरत कर और हीमोफीलिया प्रतिरोधक फैक्टर के जरिये इस बीमारी को नियंत्रित किया जाता है। इस बीमारी में आंत या दिमाग के हिस्से में होने वाली ब्लीडिंग से जान भी जा सकती है। यह बीमारी दो प्रकार की होती है। जिन लोगों में खून जमाने वाले फैक्टर आठ की कमी होती है उन्हें हीमोफीलिया ए होता है और जिनमें फैक्टर नौ की कमी होती है उन्हें हीमोफीलिया बी होता है। मरीज में जिस फैक्टर की कमी होती है। उसे इंजेक्शन के जरिये नस में दिया जाता है, ताकि ब्लीडिंग न हो। इसके मरीजों के लिए सही समय पर इंजेक्शन लेना, नित्य आवश्यक व्यायाम करना, दांतों के बारे में शिक्षित करना, एचआईवी, हेपेटाइटिस बी व सी जैसी बीमारियों से बचाना आवश्यक है ।


इसलिए मनाते हैं दिवस
हीमोफीलिया के साथ-साथ अन्य अनुवांशिक खून बहने वाले विकारों के बारे में जागरूक करने के लिए प्रत्येक वर्ष 17 अप्रैल को विश्व हीमोफीलिया दिवस मनाया जाता है।

ये हैं फैक्ट
नेशनल हेल्थ पोर्टल पर चार अप्रैल 2019 को प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रत्येक 10000 पुरुषों में से एक पुरुष के इस बीमारी से ग्रसित होने का जोखिम होता है। महिलाएं आनुवांशिक इकाइयों के वाहक के तौर पर भूमिका निभाती हैं। अस्सी फीसदी से ज्यादे मामले हीमोफीलिया ए के ही पाए जाते हैं ।

-डॉ। नीतू चौहान, एचओडी, ब्लड बैैंक, एसएनएमसी
हीमोफिलिया के मरीजों में फैक्टर 8 और फैक्टर 9 की कमी होने से खून जमने की क्षमता कम हो जाती हैैं। ऐसे मरीजों की पहचान कर उनके लिए इन फैक्टरों के इंजेक्शन लगाए जाते हैैं।


-डॉ। अजीत सिंह चाहर, मेडिसिन डिपार्टमेंट, एसएनएमसी

हीमोफीलिया एक आनुवांशिक रोग है। इसमें मरीज को ब्लीडिंग अत्यधिक होने लगती है। इसकी सही समय पर पहचान कर उन्हें फैक्टर की डोज देकर ब्लीडिंग को रोका जा सकता है।

Posted By: Inextlive