आगरा ब्यूरो सितंबर अंत और अक्टूबर के पहले सप्ताह में जोधपुर झाल पहुंचने वाले ग्रेटर फ्लेङ्क्षमगो के समूह इस साल पानी की कमी से मई में वापसी की उड़ान भर चुके हैं. पिछले साल तक यह जून अंत तक टिके थे. इस साल केवल दो समूह ही झाल पर रुके थे.जोधपुर झाल को पिछले साल वेटलैंड बनाने की मंजूरी मिल गई थी. इस स्थान को पक्षी विहार के रूप में भी विकसित किया जाएगा.

बायो डावर्सिटी रिसर्च एंड डवलपमेंट सोसायटी कई सालों से पक्षियों पर नजर रख रही है

2018 से तैयार किए गए रिकॉर्ड के आधार पर जानकारीआगरा ब्यूरो सितंबर अंत और अक्टूबर के पहले सप्ताह में जोधपुर झाल पहुंचने वाले ग्रेटर फ्लेङ्क्षमगो के समूह इस साल पानी की कमी से मई में वापसी की उड़ान भर चुके हैं। पिछले साल तक यह जून अंत तक टिके थे। इस साल केवल दो समूह ही झाल पर रुके थे।
जोधपुर झाल को पिछले साल वेटलैंड बनाने की मंजूरी मिल गई थी। इस स्थान को पक्षी विहार के रूप में भी विकसित किया जाएगा। मिली है कि 2021 में सबसे अधिक पांच समूह जोधपुर झाल पर पहुंचे थे, इनमें ग्रेटर फ्लेङ्क्षमगों की संख्या 500 से ज्यादा थी। पिछले साल संख्या कम हुई और लगभग 30 ग्रेटर फ्लेङ्क्षमगो ही झाल पर पहुंचे। इस साल दो समूह पहुंचे। एक समूह में पांच व दूसरे में छह पक्षी थे। सोसायटी के अध्यक्ष व पक्षी विज्ञानी डॉ। केपी ङ्क्षसह के अनुसार जोधपुर झाल पर ग्रेटर फ्लेङ्क्षमगो के अनुकूल हेबिटाट मौजूद है। यहां बारिश का पानी काफी मात्रा में जमा हो जाता है और मिट्टी में नमक की मात्रा भी उपस्थित है। इन्हें यहां भरपूर भोजन उपलब्ध हो रहा था। जोधपुर झाल के अलावा ग्रेटर फ्लेङ्क्षमगो सबसे ज्यादा कीठम के पीछे नगला अकोस, चुरमुरा और नगला जौहरी के बीच में रुकता है। इस साल सोसायटी द्वारा पानी रोकने के इंतजाम नहीं किए गए। वर्षा का जल भी एकत्र नहीं हुआ। इस वजह से पक्षी ऊपर से ही गुजर गया।

सोसायटी करती थी पानी का इंतजाम
ग्रेट फ्लेङ्क्षमगो को साफ पानी चाहिए होता है। आगरा नहर के पानी में प्रदूषक तत्व होते हैं, इसलिए सिकंदरा टर्मिनल से पाइप लगाकर झाल पर पानी भरा जाता था। पानी की मोटाई ज्यादा नहीं रखी जाती थी, जिससे धीरे-धीरे पानी रिसता रहे और प्रदूषक तत्व न पहुंचे।

राजहंस के रूप में भी जाना जाता है ग्रेटर फ्लेङ्क्षमगों
फ्लेङ्क्षमगो को पक्षी जगत के परिवार फोनीकोप्टेरिडे में वर्गीकृत किया गया है। इसका वैज्ञानिक नाम फोनीकोप्टेरस रोजेअस है, ङ्क्षहदी में इसे राजहंस के रूप में जाना जाता है। यह जलीय पक्षियों की वैडर श्रेणी के अंतर्गत आता है। भारत मे फ्लेङ्क्षमगों की दो प्रजातियां लेशर एवं ग्रेटर पाई जाती हैं। फ्लेङ्क्षमगो दलदही एवं स्वच्छ पानी की झीलों को आवास के लिए पसंद करता है। इनकी ऊंचाई पांच फीट तक होती है। गर्दन लंबी और चोंच की विशेष बनावट के साथ सफेद रंग के शरीर पर गुलाबी पंख होते हैं।

उत्तर भारत में सर्दियों के प्रवास पर आता है ग्रेटर फ्लेङ्क्षमगो
ग्रेटर फ्लेङ्क्षमगो गुजरात के राजहंस नल सरोवर पक्षी अभयारण्य, खिजडिय़ा पक्षी अभयारण्य और थोल पक्षी अभयारण्य से सर्दियों में उत्तर भारत की तरफ आते हैं। जोधपुर झाल, कीठम व भरतपुर के अलावा, धनौरी वेटलैंड, ओखला बर्ड सेंचुरी, हरियाणा व राजस्थान के भी कई हिस्सों में पहुंचते हैं।

Posted By: Inextlive