'तेज धमाका हुआ और लपटों ने कोच को घेर लिया'. 'कोच में लगी ट्यूबलाइट ब्लिंक कर रही थी तभी धमाके के साथ चिंगारी उठी और आग फैल गईÓ. 'धमाके जैसी तेज आवाज आई धुआं दिखा ट्रेन से उतरते ही देखा तो कोच लपटों में घिरा हुआ थाÓ. ये उन पैसेंजर्स के दौरान कहीं बातें हैं जिन्होंने चंद घंटे पहले ही जलती ट्रेन में मौत को मात दी थी. पातालकोट एक्सप्रेस की लपटें भले ही बुझ गईं हों लेकिन एक बड़ा सवाल छोड़ गई हैं कि आखिर पातालकोट सुलगी कैसे?

आगरा। (ब्यूरो) ट्रेन में आग लगने की सूचना मिलते ही आगरा रेल मंडल और जिला प्रशासन में खलबली मच गई। रेलवे अधिकारियों की ओर से रेस्क्यू टीम को तत्काल मौके पर रवाना कर दिया गया। पुलिस प्रशासन ने भी मौके की ओर दौड़ लगा दी। फायर टेंडर पहुंच गईं। इससे पहले ही बड़ी संख्या में क्षेत्रीय ग्रामीणों ने पैसेंजर्स की मदद के लिए मोर्चा संभाल लिया था। हादसे में झुलसे पैसेंजर्स को एसएन मेडिकल कॉलेज में एडमिट कराया गया।

लपटों के साथ दौड़ती रही ट्रेन
जनरल कोच में सफर कर रहे हीरेंद्र ने बताया कि अचानक से तेज आवाज आई थी। ऐसा लगा जैसे कि कोई धमाका हुआ है। कोच में अफरातफरी मच गई। पैसेंजर्स ने ट्रेन रोकने के लिए चेन पुलिंग की। लेकिन करीब 20 मिनट तक ट्रेन दौड़ती रही। लपटों के साथ ट्रेन चलने से आग तेजी से फैली। जैसे ही ट्रेन की रफ्तार धीमी पड़ी पैसेंजर्स ने कूदना शुरू कर दिया। ट्रेन के पहिये जब तक पूरी तरह थमते, करीब दो दर्जन से अधिक पैसेंजर्स कूद चुके थे। प्लेटफॉर्म नहीं होने के चलते कोच के प्लेफॉर्म और जमीन में काफी दूरी थी। ऐसे में चलती ट्रेन से कूदने से कई पैसेंजर्स चोटिल हुए।

ट्यूबलाइट फटी है
पैसेंजर गौरव ने बताया कि वह अपने दोस्त हिमांशु के साथ ट्रेन के जनरल कोच में बैठे थे। वह भोपाल जा रहे थे। आगरा कैंट स्टेशन से ही वह ट्रेन में सवार हुए थे। ट्रेन को स्टेशन छोड़े हुए अभी 15 मिनट का समय ही हुआ था कि तभी पैसेंजर्स में अफरातफरी की स्थिति बन गई। पैसेंजर्स चिल्ला रहे थे ट्यूबलाइट फट गई है। कोच से बाहर निकलने पर एक पैसेंजर ने बताया कि पहले ट्यूबलाइट ब्लिंक कर रही थी। अचानक से ये ट्यूबलाइट फटकर गिर गई। तेज हवा से ट्रेन में लपटें तेजी से फैलीं।


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चिंगारी को मिली हवा
पातालकोट एक्सपे्रेस में भीषण आग की वजह चिंगारी को हवा मिलना रहा। ट्रेन में किसी कारण उठी चिंगारी को तेज हवा का साथ मिलता रहा। जब इसने विकराल रूप धारण किया तो आननफानन में ट्रेन रोकने की कवायद की गई। काफी दूर तक चिंगारी के साथ ही ट्रेन दौड़ती रही, इस दौरान उसे तेज हवा का साथ मिलता रहा। जिसने चिंगारी को भड़काकर भीषण लपटों में बदल दिया।

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जान बची पर सामान नहीं
पातालकोट एक्सप्रेस में आग की घटना में पैसेंजर्स की जान बच गई हो, लेकिन उनका सामान नहीं बच सका। ट्रेन में सफर करने वाले सैकड़ों पैसेंजर्स का सामान जलकर खाक हो गया। ग्वालियर के लिए ट्रेन पकडऩे वाले रोहित ने बताया कि बहन की शादी है। वह अपनी मां और बहन के साथ शॉपिंग करने के लिए आगरा आए थे। कोच से लपटें उठती देख वह मां और बहन के साथ ट्रेन से उतर गए। लेकिन 50 हजार के जो कपड़े खरीदे थे, वह सामान नहीं उतार सके। आंखों के सामने लपटों में घिरे कोच में पूरा सामान जलकर खाक हो गया।


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पत्नी और दो बच्चों संग ट्रेन से कूद गया

आग का गोला तेजी से हमारी ओर आ रहा था। धुएं के चलते डिब्बे में चार फीट की दूरी पर बैठे बेटा-बेटी और पत्नी दिखाई नहीं दे रहे थे। मुझे पिक्चर बर्निंग ट्रेन के ²्श्य के याद आने के साथ मौत करीब आती दिखाई दे रही थी। मेरी आवाज बंद हो गई थी। किसी तरह पूरी दम लगाकर बेटे-बेटी को आवाज लगाई, धुएं के बीच बच्चों ने हाथ आगे बढ़ाए। उन्हें पकड़कर पूरी ताकत से दरवाजे की ओर दौड़ पड़ा। डर था कहीं बच्चों का हाथ से छूटा तो भीड़़ के नीचे दब जाएगा। ट्रेन धीमी होते ही दोनों बच्चों और पत्नी के साथ ट्रेन से नीचे कूद गया। हमारे ऊपर कई लोग कूदे, लेकिन चोट की परवाह किसे थी। शरद जैन कांपते हुए अपनी आंखों के सामने ट्रेन की जलती बोगी देख रहे थे। बच्चों और पत्नी सविता ने शरद का हाथ पकड़ आगे चलने की कहा तो, वह सकते की हालत से बाहर आए। परिवार की आंखों में मौत का खौफ साफ दिखाई दे रहा था।

जब मौत से हुआ सामना
पातालकोट की सामान्य बोगी में आग और धुएं के बीच दर्जनों यात्रियों ने मृत्यु को करीब से देखा। इसमें वर्धमान नगर, भोपाल के रहने वाले हौजरी व्यापारी शरद जैन, उनकी पत्नी सविता जैन, 11 वर्षीय बेटा हार्दिक और छह वर्ष की बेटी आर्वी भी हैं। शरद ने बताया कि वह 19 अक्टूबर को परिवार संग वृंदावन आए थे। बुधवार को आगरा कैंट से जनरल कोच में सवार हुए थे। गेट से लगे डिब्बे में खिड़की के साइड वाली सीट पर बैठे थे। बराबर वाली सीट पर पत्नी सविता और बच्चे थे। ट्रेन के कैंट स्टेशन से निकलने के बाद रफ्तार पकड़ रही थी। करीब 20 मिनट बाद अचानक जोरदार धमाका हुआ। अगले ही पल पूरी बोगी में धुआं भर गया। शरद बताते हैं, उनके समेत बोगी में बैठे सभी लोगों का दम घुटने लगा। खांसी आने लगी। धुआं इतना ज्यादा था कि बराबर में बैठा व्यक्ति भी नहीं दिखाई दे रहा था। इस बीच उनकी नजर बोगी की गैलरी में पड़ी तो, वह सहम गए। आग का एक गोला उनकी ओर तेजी से आ रहा था। बोगी में भगदड़ मच गई थी। लोग एक दूसरे पर गिरते-पड़ते भाग रहे थे। आग के रूप में मौत को अपनी ओर आता देख उन्होंने बेटे-बेटी और पत्नी को तेज आवाज लगाई। बच्चों ने उनकी आवाज पर अपने हाथ आगे बढ़ाए, उन्होंने बच्चों के हाथ कसकर पकड़ दरवाजे की और दौड़ लगा दी। कोच में मौजूद हर यात्री दरवाजे की ओर दौड़ लगा रहा था। धक्का-मुक्की के बीच उन्होंने बच्चों का हाथ नहीं छोड़ा। बच्चों का हाथ छूटने पर भगदड़ में दबने का डर था। पत्नी सविता ने बताया कि मौत को साक्षात सामने देख वह भी दहशत में आ गई थीं। उन्हें दोनों बच्चों की ङ्क्षचता सता रही थी। ईश्वर से प्रार्थना कर रही थीं कि किसी तरह ट्रेन रुक जाए और वह परिवार समेत नीचे उतर जाएं। ट्रेन के धीमी होते ही उसके रुकने की प्रतीक्षा किए बिना दंपती ने दोनों बच्चों के साथ कोच से छलांग लगा दी। इस दौरान सविता का बायां हाथ झुलस गया।

आंखों में घूम गया द बर्निंग ट्रेन फिल्म का ²श्य
शरद जैन ने बताया कोच में लगी आग की घटना ने उन्हें द बर्निंग ट्रेन की याद दिला दी। उन्होंने द बर्निंग ट्रेन फिल्म देखी थी। पातालकोट एक्सप्रेस में भी आग लगने पर फिल्म जैसा ही भगदड़ और चीख-पुकार का ²श्य था। यहां धमाके के साथ धुआं भी था।

भगवान ने बचाई जान
शरद जैन और सविता का कहना था कि मौत के इतने करीब आकर भी वह सकुशल हैं, यह ईश्वर का चमत्कार है। वह वृंदावन में ठाकुर जी के दर्शन करके घर आ रहे थे। ठाकुर जी की कृपा से उनकी जान बची।

माता-पिता से लिपटे रहे हार्दिक और आर्वी
कोच में आग में फंसे हार्दिक और आर्वी दहशतजदा थे। उन्हें सामान्य होने में आधा घंटा लगा। बेटी आर्वी मां सविता से लिपटी हुई थी। हार्दिक पिता हाथ पकड़े रहा।

Posted By: Inextlive