ऐसे सीन आपको आगरा में रेलवे स्टेशन बस स्टैैंड और मॉन्यूमेंट्स के पास देखने को मिल जाएंगे. इसका कारण छब्बी यानि कमीशन है. कहावत तो अतिथि देवो भव: है लेकिन यहां खेल दूसरा ही चल रहा है.

आगरा(ब्यूरो)। टूरिस्ट से टैक्सी, मयूरी और ऑटो चालक हमेशा अच्छा-खासा पैसा वसूलने की जुगत में बने रहते हैैं। फिर चाहे इसके लिए उन्हें होटल महंगा दिलाना पड़े या फिर कीमतें ऊंची कराकर खाना महंगा खिलाना पड़े। इसके लिए वो टूरिस्ट पर दबाव डालने में भी नहीं हिचकते। शायद यही कारण है कि अब आगरा डोमेस्टिक टूरिस्ट के फुटफॉल के मामले में पिछड़ रहा है। यूपी में आगरा का स्थान सातवां हो गया है।

सीन-1
हां, भाईसाहब कहां जाओगे, होटल दिला देंगे बहुत अच्छा। खाना खाना है क्या? बहुत बढिय़ा होटल है। पास में ही है। मात्र 20 रुपए में आपको छोड़ दूंगा। नहीं भाईसाहब मेरा घर आगरा में ही है मुझे भगवान टॉकीज जाना है। तुरंत ऑटो वाला बोलता है कि आप बाहर से ऑटो ले लीजिए।

सीन-2
ताजमहल देख लिया। मैैं आपको आगरा किला और एत्माद्दौला दिखा दूंगा। इससे पहले बढिय़ा जगह पर खाना भी खिला दूंगा और बाद में पेठा दिलाकर बस स्टैैंड भी छोड़ दूंगा। प्राइवेट बस केवल 300 रुपए में आपको दिल्ली छोड़ देगी।

कमीशन का रहता है खेल
होटल, रेस्टोरेंट, पेठा आदि से इन लपकों को मोटा कमीशन मिल जाता है। इस कारण वह मात्र 20 रुपए में टूरिस्ट को कहीं भी छोडऩे को तैयार हो जाते हैैं। क्योंकि टूरिस्ट का एक ग्रुप भी इनके जाल में फंस गया तो सीधा एक हरी पत्ती(500 का नोट) तैयार हो जाता है। इसके साथ ही कोई मोटी पार्टी फंस गई जो हैैंडीक्राफ्ट आइटम भी लें तो छब्बी का खेल हजारों रुपए में जाकर बैठता है। पेठा भी दिलाना हो तो ये चालक इन्हीं दुकानों पर टूरिस्ट को लेकर पहुंचते हैं, जहां पर नकली पेठा मिलता है। इसमें उन्हें अच्छी खासा कमीशन मिलता है। ये रेट 40 से 50 फीसद तक होती है। जिसे कस्टमर जाने के बाद चालक दुकानदार से कैश ले लेते हैं।

बाद में ठगा महसूस करते है टूरिस्ट
अगर किसी टूरिस्ट को पंछी पेठा खरीदना है तो वह खरीद नहीं सकता जब तक कि वह खुद पंछी पेठा की दुकान के बारे में न जानता हो। अगर टैक्सी चालक या फिर ऑटो और मयूरी चालक के चक्कर में पड़ गया तो निश्चित तौर पर उसे पंछी पेठा नहीं कोई और ही पेठा खरीदना पड़ेगा।

किराया कम मिले तो भी चलता है
ऑटो और मयूरी चालक टूरिस्ट को लपकते हैं। अगर टूरिस्ट उन्हें किराया न के बराबर भी दे तो उन्हें कोई एतराज नहीं होता है, बशर्ते वे खरीदारी करें तो। चालक भांप लेते हैं कि टूरिस्ट खरीदने के चक्कर में है तो किराए को लेकर वे कोई आपत्ति दर्ज नहीं करते। उनकी कोशिश सिर्फ ये रहती है कि टूरिस्ट उनके वाहन में बैठ जाए।
सातवें नंबर पर पहुंचा आगरा
इस साल टूरिज्म डिपार्टमेंट द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार डोमेस्टिक टूरिस्ट के आगमन के मामले में यूपी में मथुरा से भी पीछे छूट गया है। पहले नंबर पर 7.6 करोड़ सैलानी के साथ वाराणसी पहले नंबर पर है। मथुरा में 6.52 करोड़ टूरिस्ट का पूरे साल में फुटफॉल है। प्रयागराज और अयोध्या भी आगरा से आगे निकल गए हैैं। इसके पीछे कारण आगरा में टूरिस्ट के साथ व्यवहार और प्रचार प्रसार की कमी है। होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन के प्रेसिडेंट राकेश चौहान बताते हैैं कि आगरा के टूरिज्म का प्रचार प्रसार नहीं किया जाता है। आगरा में कीठम जैसी रामसर साइट है। बटेश्वर घाट, शहर में प्राचीन महादेव के मंदिर हैैं। इन सबके बारे में कभी प्रचार नहीं किया गया। इस कारण भी यहां पर टूरिस्ट कम हो रहा है। आगरा आने के रास्तों में गेट बनाने चाहिए। लेजर फाउंटेन बनाना चाहिए। ताकि आगरा में नाइट टूरिज्म को बढ़ावा मिले लेकिन इन मांगों को कभी माना नहीं जाता है।

यूपी टूरिज्म द्वारा जारी किए गए आंकड़े
शहर साल 2022 में टूरिस्ट्स
वाराणसी - 7.16 करोड़
मथुरा- 6.52 करोड़
प्रयागराज - 2.60 करोड़
अयोध्या - 2.39 करोड़
गोरखपुर- 1.98 करोड़
झांसी - 1.65 करोड़
आगरा - 1.01 करोड़
आगरा के टूरिज्म का प्रचार प्रसार करने की जरूरत है। आगरा में बटेश्वर के घाट, प्राचीन शिव मंदिर जैसे धार्मिक स्थल हैैं। इनके बारे में कोई प्रचार प्रसार नहीं होता है।
- राकेश चौहान, प्रेसिडेंट, होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन

टूरिस्ट के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए। जो लोग टूरिस्ट को ठगने का काम करते हैैं उन पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
- तेजवीर सिंह, होटल संचालक

मैैं ताजमहल देखने आया था। मुझे पंछी का पेठा खरीदना था लेकिन ई-रिक्शा वाले ने उसकी नकल का कोई दूसरा पेठा दिला दिया। यह महंगा भी था और क्वॉलिटी भी खराब थी।
- हरीश घोड़के, टूरिस्ट

मैैं जैसे ही स्टेशन से बाहर आया तो कई लोग मुझ पर झपट गए। कहने लगे ताजमहल दिखा देंगे, होटल दिला देंगे। यह देखकर मेरे दोस्त डर गए। टूरिस्ट से सहज व्यवहार करना चाहिए।
- रोशन आपले, टूरिस्ट

Posted By: Inextlive