अगर आपके बच्चे के व्यवहार में अचानक बदलाव आ रहा है और वह चिड़चिड़ा हो रहा है तो आपको ध्यान देने की जरूरत है. क्योंकि ऑनलाइन गेमिंग की आदत बच्चों को आक्रामक बना रही है साथ ही गेम खेलने के दौरान निकलने वाला डोपामिन हारमोन बच्चों को ऑनलाइन गेमिंग का आदी बना रहा है. ऐसे में आपके बच्चे को सही काउंसिलिंग व आपके समय की जरुरत है. ऐसा न होने पर बच्चा कोई भी गलत कदम उठा सकता है.

आगरा। मनोवैज्ञानिक काउंसलर डॉ। पूनम तिवारी का कहना है कि पिछले तीन से चार सालों में ऐसे मरीजों की संख्या बढ़ी है जो जिद्दी व चिड़चिड़ेपन का शिकार हो रहे हैं। मनोचिकित्सकों के पास पहुंचने वाले हर 15 फीसद बच्चों में अस्सी फीसद बच्चे वीडियो गेम से ही प्रभावित होकर हिंसक स्वभाव के हो रहे हैं। उनका कहना है कि इन दिनों पेरेंट्स की भी जागरूकता बढ़ी है और वे अपने बच्चों को समझ कर काउंसिलिंग कराने पहुंच रहे हैं।


होमवर्क करने में अनाकानी
ऑनलाइन गेमिंग के कारण चिड़चिड़ेपन का शिकार हो रहे बच्चे एडीएचडी (अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिस्ऑडर) बीमारी का शिकार हो रहे हैं। डॉ। पूनम तिवारी का कहना है कि यह बीमारी एक सामान्य बौद्धिक क्षमता वाले बच्चों को ज्यादा हो रही है। इसका कारण ऑनलाइन गेमिंग ही निकल रहा है। इस बीमारी के कारण कोई भी बच्चा ठीक तरह से होमवर्क नहीं कर पा रहा है। वहीं अकेले रहने वाले बच्चों पर इसका अधिक असर नजर आ रहा है।

बच्चों में डोपामिन हारमोन से गेम का नशा
मनोवैज्ञानिक डॉ। अंशुल चौहान बताते हैं कि इस समय कई ऐसे ऑनलाइन गेम आए हैं, इसमें एक के बाद एक लेवल खुलती जाती है। ऐसे गेम्स को बच्चे एक चुनौती की तरह लेते हैं और अगले लेवल पर जाना खुद की उपलब्धि मानते हैं। डॉ। अंशुल के मुताबिक ऐसे बच्चों में डोपामिन हारमोन के कारण गेम का नशा हो जाता है और वे गेम से दूर होने पर आक्रामक स्वभाव के हो जाते हैं।

बच्चों को मोबाइल दूर रखने के टिप्स
डॉ। अंशुल चौहान बताते हैं कि कई शहरों में अधिकतर देहात की अपेक्षा इलाज के लिए अलग से काउंसलर नियुक्त किया गया है। जहां ऐसे बच्चों को ई-फास्टिंग के तरीके बताए जा रहे हैं। वे कहते हैं कि पहले बच्चों को कुछ देर के लिए मोबाइल से दूर रहना सिखाया जाता है, इसके बाद धीरे -धीरे और दूरी बढ़ाई जाती है। वहीं बच्चों को मोबाइल से दूर रखने के टिप्स भी दिए जा रहे हैं।


इन बातों का रखें ध्यान
-बच्चों को एक घंटे से अधिक मोबाइल देने से रखें परहेज
-बच्चों से बात कर कम्यूनीकेशन रखने की कोशिश करें, समझाएं
-मोबाइल गेम रियल गेम का विकल्प नहीं हो सकते इसलिए उन्हें बाहर खेलने जरूर भेजें
-अपनी अपेक्षाएं न थोपे, समझने की कोशिश करें
-स्वभाव में बदलाव लगता है, तो बच्चों को अकेला न छोड़ें

डॉ। पूनम तिवारी, मनोवैज्ञानिक : आजकल के पेरेंट्स बच्चों की शरारत को देखते हुए उनको शांत करने के लिए मोबाइल थमा देते हैं, इससे बच्चे धीरे-धीरे मोबाइल ऑनलाइन गेम के आदी हो जाते हैं, जो बाद में बड़ी समस्या बन जाती है।

डॉ। केसी गुरनानी, मनोचिकित्सक: बच्चों को ऑनलाइन गेम से दूर रखने के लिए पेरेंंट्स को उन्हें फिजीकल गेम से जोडऩा चाहिए, बच्चों से बात कर कंयूनीकेशन रखें, मोबाइल गेम रियल गेम का विकल्प नहीं होता है। अपनी अपेक्षाएं न थोपे, उनको समझने की कोशिश करें।

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Posted By: Inextlive