अंगदान को लेकर अभी समाज में कम जागरुकता है. लोगों को अंगदान करने के लिए मोटिवेट करने के लिए न्यूरोलॉजिस्ट अहम भूमिका निभा सकते हैैं. ब्रेन डेड हो चुके लोग यदि अपना अंगदान करें तो वह आठ से दस लोगों को नया जीवन दे सकता है. न्यूरोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया और न्यूरोलॉजिकल सोसायटी ऑफ आगरा के तत्वाधान में हो रहे 70 वें अधिवेशन के दौरान एम्स के न्यूरोसर्जरी विभाग के प्रो. दीपक गुप्ता ने बताईं.


आगरा (ब्यूरो)। उन्होंने कहा कि हमने बीते पांच महीने में एम्स में पांच बच्चों ने अंगदान किया है। इनकी उम्र 18 महीने, दो साल के करीब है। इन बच्चों की किडनी, लीवर सहित अन्य अंगों से दूसरे बच्चों को नया जीवन मिल सका। इसी तरह से यदि हम अंगदान की इस प्रक्रिया को अपनाएं तो कई और लोगों को नया जीवन मिल सकता है। डॉ। गुप्ता ने बताया कि भारत में अंगदान कानून के तहत राष्ट्रीय अंग और ऊतक ट्रांसप्लांट संस्थान (नोट्टïो) और राज्य अंग और ऊतक ट्रांसप्लांट द्वारा अंगदान कराया जाता है। पहले से ही हजारों जरूरतमंदों की अंग की डिमांड सरकार के पास दर्ज रहती है। यदि किसी मरीज का ब्रेन डेड हो जाता है। या फिर मरीज वेंटीलेटर पर है तो डॉक्टर को एपनीया टेस्ट के माध्यम से मरीज ब्रेन डेड घोषित करना होता है। इसके लिए वेंटीलेटर हटाने के बाद दो बार ऑक्सीजन दी जाती है और ब्लड टेस्ट कराए जाते हैैं। इसके बाद अंगदान किए जा सकते हैैं। सुरक्षित छज्जा, सुरक्षित बच्चा
डॉ। गुप्ता ने बताया कि छोटे बच्चों को सिर में चोट लगने से बचाना चाहिए। उन्होंने बताया कि एम्स में 60 प्रतिशत बच्चे गिरकर सिर में चोट लगने के कारण आते हैैं। हर महीने 15 से 20 परसेंट बच्चे बालकनी में गिरने से आते हैैं। इनमें से दो से चार बच्चों की मौत हो जाती है। इसलिए बच्चों के सिर में चोट लगने से बचाना जरूरी है। इसके लिए छोटी-छोटी सावधानियां बरतकर बचा जा सकता है। बालकनी को सुरक्षित करें। घर में बच्चे हैैं तो बालकनी की दीवार ऊंची करा दें। बालकनी में कोई कुर्सी या स्टूल इत्यादि न रखें। हो सके तो बच्चे को बालकनी में न जाने दें। दरवाजे को बंद रखें।

भारत में अंगदान कानून ब्रेन डेड लोगों को अंगदान करने की अनुमति देता है। यदि एक व्यक्ति अंगदान करे तो आठ से दस लोगों को नया जीवन मिल सकता है।- डॉ। दीपक गुप्ता, प्रोफेसर, न्यूरोसर्जरी विभाग, एम्स

Posted By: Inextlive