मत बनो सुपरहीरो, जिद और जरूरत में समझें अंतर
आगरा(ब्यूरो)। काउंसलर रूबी बघेल बताती हैैं कि जिन चीजों के बिना गुजारा मुश्किल है उसे हम जरूरत कहते हैैं। जैसे- रोटी, कपड़ा और मकान। लेकिन अब इससे आगे भी कई ऐसी चीजें हैैं जो समय-समय पर हमारी लाइफ में काम आती हैैं और जिन चीजों को हम अपने आराम या मन के मुताबिक खरीदते हैं उन्हें शौक कहा जा सकता है।
छोटी-छोटी जरूरतों को कंपेयर करेंरूबी ने बताया कि ऐसे कई पेरेंट्स आते हैैं जो अपने बच्चों की जिद से परेशान रहते हैैं। कई बार पेरेंट्स यह भी कहते हैैं कि कहीं बच्चा जो मांग रहा है उसकी उसे सच में तो जरूरत नहीं हैै। ऐसे पेरेंट्स को हम यही सलाह देते हैैं कि यदि किसी बच्चे को रबर की जरूरत है। तो वह बेसिक रबर देकर भी पूरी हो सकती है। लेकिन कोई फैंसी रबर से ही वह काम कर पाएगा तो यह शौक है। इसी प्रकार से छोटी-छोटी जरूरतों को कंपेयर करें। इसके बाद ही फैसला लें।
बच्चों में स्टेटस का भी रोल
रूबी ने बताया कि आजकल बच्चों को तकनीकी की जरूरत पड़ती है। कंप्यूटर उसकी पढ़ाई में शामिल हो चुका है। यदि बच्चा कंप्यूटर की डिमांड करता है तो उसे स्कूल में टीचर से वैरीफाई करें। इसके बाद में उसे एकदम से बहुत महंगा लैपटॉप या डेस्कटॉप न दे दें। केवल उसकी जरूरत के अनुसार ही कंप्यूटर खरीदें। बच्चे को प्राइवेट रूम में कंप्यूटर न देकर कंप्यूटर को ऐसी जगह पर रखें जहां से आप आते जाते कंप्यूटर स्क्रीन पर नजर रख सकें। रूबी ने बताया कि आजकल सोसायटी में स्टेटस सिंबल का काफी ट्रेंड चल रहा है। यह बच्चों में भी होता है। एक ही क्लास में किसी बच्चे के पास अच्छा पेंसिल बॉक्स होता है तो वह अन्य बच्चों के सामने शो-ऑफ करता है। इसलिए बच्चों को बेसिक चीजें ही दिलाएं। कई बार पेरेंट्स बच्चे को प्यार-प्यार में सब कुछ दिलाते हैैं उसकी हर जिद पूरा करते हैं। बच्चे की यही छोटी-छोटी जिद आगे चलकर बड़ा लाइफ में बड़ा रोल निभाने लगती हैैं। बच्चा टीन एज में आकर स्कूल जाने के लिए स्कूटर मांगने लगता है। पेरेंट्स उसे वह भी दिला देते हैैं। इसका परिणाम कई बार नकारात्मक होता है। इसलिए बच्चों की जरूरत और जिद में अंतर समझकर ही उन्हें कोई भी चीज दिलाएं।
कई बार वाकई में होती है जरूरत
काउंसलर रूबी ने बताया कि कई बार ऐसा होता है कि पेरेंट्स अपनी जिद पर अड़ जाते हैैं और बच्चे की जरूरत को नहीं समझ पाते हैैं। इसलिए यह भी देखें और समझे कि क्या जरूरत की चीज है और क्या नहीं। उन्होंने बताया कि अगर बच्चा अपनी फरमाइश आपके सामने रख रहा है तो उसे सिरे से खारिज न करें, इससे बच्चा आपके साथ अपने मन की बात शेयर करने से कतराएगा। आप बच्चे को डांटने की गलती न करें, बच्चे की फरमाइश को सुनें और कुछ देर बाद उसे प्यार से समझाएं, आप भी नाराजगी दिखाएंगे तो बच्चा जिद कर सकता है।
जिला अस्पताल की क्लिनिकल साइक्लॉजिस्ट ममता यादव बताती हैैं कि अपने बच्चों को बचपन से ही पैसे की अहमियत समझाएं। इसके साथ ही उन्हें सही और गलत में अंतर बताएं। इस तरह आप बच्चे को फरमाइश करने वाली बुरी आदत से बचा सकते हैं, जो माता-पिता बच्चे को बचपन में ही पैसे की अहमियत सिखा देते हैं। उन्हें बाद में परेशानी नहीं आती, अगर आपका बच्चा फरमाइशें नहीं भी करता है तो भी उसे उसकी जरूरत और शौक के बीच का फर्क जरूर समझाएं।
ऐसा देखने में आ रहा है कि पेरेंट्स बच्चों की जिद को भी जरूरत समझकर उनकी हर फरमाइश को पूरा कर देते हैैं। इससे कई बार बुरे परिणाम सामने आते हैैं। ऐसे में पेरेंट्स को बच्चे की जिद और जरूरत को समझना होगा।
- रूबी बघेल, काउंसलर
- ममता यादव, क्लीनिकल साइक्लॉजिस्ट