आगरा. ब्यूरो तनाव सिर्फ बड़ों को नहीं होता है छोटे भी इसका शिकार आसानी से हो जाते हैं. इनकी मुस्कुराहट बरकरार रखने के लिए थोड़ी सी जहमत आपको ही उठानी पड़ेगी. 2-3 साल तक के बच्चों से लेकर 15-16 साल की उम्र पार करने तक उन्हें किसी भी वजह से टेंशन हो सकती है. एक्सपर्ट्स टेंशन को समझने और उससे उबरने के तरीके बताते हैं.

काउंसलिंग से मिल रही लडऩे की ताकत
पारिवारिक परिस्थितियों को देखकर बच्चों के दिमाग पर भी इसका गहरा असर पड़ता है। मनोचिकित्सक के पास एक ऐसा बच्चा आया जो बात-बात पर घबराता था, खान-पान पर ध्यान नहीं, स्कूल से आते ही पेरेंट््स के बारे में पूछता था और दोस्तों के साथ भी खेलने नहीं जाता था। हर वक्त अपनी मां से चिपका रहता और रोने लगता। पहले वह हंसता-खेलता था लेकिन अब उसका सारा फोकस अपने पिता पर आ गया था। हालात बिगड़ते देख उसे साइकायट्रिस्ट के पास ले जाया गया। वहां उसकी और उसके पैरंट्स की काउंसलिंग की गई। तब जाकर उसे हालात से लडऩे की ताकत और हिम्मत मिली।


टेंशन से रुक रहा मेंटल डवलपमेंट
टेंशन एक तरह की मानसिक बीमारी है। यह मन की स्थिति और परिस्थिति के बीच असंतुलन और कोऑर्डिनेशन में कमी के कारण होता है और इसका दिलो दिमाग पर गहरा असर पड़ता है। टेंशन में शरीर बीमार और एनर्जी का लेवल काफी कम लगता है। टेंशन के कारण फिजिकल और मेंटल डवलपमेंट में भी रुकावट आती है। अगर दो हफ्ते या उससे ज्यादा लगातार उदासी बनी रहे और किसी भी काम में मन न लगे तो समझना चाहिए कि टेंशन हावी होने लगी है।


क्यों होती है बच्चों को टेंशन
मनोवैज्ञानिक रचना सिंह ने बताया कि पेरेंट्स का बर्ताव, अक्सर बच्चों में अपने भाई-बहनों को अधिक अटेंशन मिलने के कारण देखा जाता है। दूसरे भाई-बहन के जन्म के बाद पेरेंट्स का अटेंशन नवजात शिशु पर अधिक हो जाता है और पहले बच्चे को मिलने वाला अटेंशन कम हो जाता है। नवजात शिशु के पास जाने के लिए भी उसे कई तरह की हिदायतें दी जाती हैं और जरा-सी लापरवाही पर उसे डांट दिया जाता है। इस तरह दूसरे बच्चे को मिलने वाले ज्यादा अटेंशन और प्यार के कारण उसमें हीन भावना आ जाती है। उसका मन उदास रहने लगता है। इसके अलावा भाई-बहन के साथ एक कॉम्पिटिशन भी रहता है। ऐसे में बच्चे टेंशन का शिकार हो जाते हैं।

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गेम्स से बच्चों को टेंशन से लाएं बाहर
टेंशन में बच्चों को भी कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए और उससे बाहर आने के लिए उपाय खुद करने चाहिए। इन बातों का ध्यान रख बच्चे खुद भी टेंशन को मात दे सकते हैं। टेंशन की स्थिति में किसी से बात करना बहुत जरूरी है। यदि आप भी किसी बात को लेकर परेशान हैं तो उसे अपने पेरेंट्स या किसी और से शेयर करना चाहिए। गेम्स बच्चों को टेंशन से फौरन बाहर लाते हैं। बच्चों को बाहर जाकर फि़जि़कल एक्टिविटी वाले गेम खेलने चाहिए। यदि आपको स्वीमिंग पसंद है तो वह जरूर करनी चाहिए। इन्डोर गेम्स में चेस, लूडो, कैरम आदि गेम्स टेंशन बस्टर साबित होते हैं।

ये लक्षण हैं तो करा लें जांच
अगर इनमें से कोई भी लक्षण दिखें तो उन्हें गंभीरता से लें। यहां ध्यान रखने वाली बात यह है कि ये लक्षण किसी और बीमारी के भी हो सकते हैं। इसलिए पैरंट्स को पूरी तरह से जांच करा लेनी चाहिए।
-पढ़ाई का बोझ, एग्ज़ाम्स की टेंशन
-मानसिक और शारीरिक टॉर्चर
-पेरेंट्स का बिजी रहना
-घर में टेंशन का माहौल
-पॉकेट मनी का असर
-लुक्स को लेकर टेंशन
-गैजेट्स पर अधिक वक्त बिताना

कैसे कम होगी टेंशन
-यदि आपका बच्चा टेंशन में है तो इसे फौरन दूर करने के उपाय खोजें। बच्चों में टेंशन की दस्तक सुनते ही इन बातों पर अमल करें

साथ बिताएं वक्त
-पेरेंट्स को अपने बच्चों के साथ वक्त बिताना चाहिए। बच्चे अपने पेरेंट्स के सबसे ज्यादा करीब होते हैं और उनके साथ कुछ क्वॉलिटी टाइम बिताना चाहते हैं। बच्चों के बड़े होने तक पेरेंट्स को उन्हें वक्त देना चाहिए.

चलो दोस्त बन जाएं
-कुछ पेरेंट्स बच्चों को छोटी-छोटी गलतियों पर उन्हें डांट देते हैं। उनकी कोई भी बात सुने बिना केवल अपने फैसले थोपते रहते हैं। इससे बच्चों के मन में पेरेंट्स के लिए एक डर का भाव पैदा हो जाता है.

प्रेशर न डालें
अक्सर पेरेंट्स बच्चों को सबसे आगे रखने की कोशिश में लगे रहते हैं। इसी उम्मीद के चलते वे बार-बार बच्चों को अव्वल आने के लिए कहते रहते हैं जिससे बच्चा टेंशन का शिकार हो जाता है.

करो अपने मन की
बच्चों को फ्र डम देना भी जरूरी है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उन्हें बेवजह कुछ भी करने की छूट दे दी जाए। बच्चों को फ्रीडम देने का मतलब है कि वे अपने करियर में जो भी करना चाहे उसे समझें और सही दिशा देने में मदद करें.
मनी मैनेजमेंट
बच्चों को मनी मैनेजमेंट भी सिखाना चाहिए। पेरेंट्स को बच्चों की पॉकेट मनी का हिस्सा तय कर देना चाहिए। यह हिस्सा न तो बहुत कम हो न ही बहुत ज्यादा। पॉकेट मनी को सही जगह खर्च करने और सेविंग की सीख भी आप ही उन्हें दे सकते हैं.


बनाएं खुशहाल माहौल
यदि बच्चा टेंशन में है तो उसके आसपास के माहौल को खुशहाल बनाकर टेंशन को घटाया जा सकता है। सबसे पहले ध्यान रखना चाहिए कि घर में माहौल सौहार्दपूर्ण रहे.

मनोचिकित्सक के पास जाएं
-अक्सर लोग टेंशन के लिए मनोचिकित्सक के पास नहीं जाते क्योंकि वह मनोचिकित्सक के पास जाने को पागलपन से जोडऩे लगते हैं। यह गलत धारणा है। मनोचिकित्सक से सलाह करना पागलपन नहीं है।


बच्चों को भी टेंशन होती है, अगर, बच्चों में पढ़ाई का बोझ, एग्ज़ाम्स का टेंशन, मानसिक और शारीरिक टॉर्चर, पैरंट्स का बिजी रहना, घर में टेंशन का माहौल टेंशन पैदा करता है। जरुरी है कि पेरेंट्स बच्चों के बदलते व्यवहार पर नजर रखें।
डॉ। रचना सिंह, मनोवैज्ञानिक आगरा कॉॅलेज


बच्चों में टेंशन भी बड़ों में टेंशन की तरह होता है, लेकिन उनके कारण कुछ अलग हो सकते हैं। बच्चों के आसपास अलग-अलग तरह का माहौल होता है जिसका उन पर सही-गलत असर पड़ता है। घर, स्कूल, ट्यूशन, प्ले ग्राउंड आदि कहीं से भी तनाव हो सकता है।
डॉ। पूनम तिवारी, आरबीएस कॉलेज


बदलते परिवेश में बच्चों पर खान पान पर भी असर पड़ रहा है, अक्सर बच्चे चिड़चिड़ा व्यवहार, या किसी भी चीज के लिए जिद करना, अच्छे खान-पान का असर बढ़ता है।
सुरभि उपाध्याय, डायटीशियन

Posted By: Inextlive