स्कूल्स में नहीं काउंसलर्स
आगरा(ब्यूरो)। वे विशेष समस्याओं वाले बच्चों को विशिष्ट समाधान प्रदान करने में भी हेल्प करते हैं। एक काउंसलर्स की भूमिका स्कूल्स में अहम रोल अदा करती है लेकिन इसके बाद भी शहर में अधिकतर स्कूल्स बिना काउंसलर्स के चल रहे हैं।
क्या है स्कूल साइकोलजी?स्कूल मनोवैज्ञानिक छात्रों के साथ काम करते हैं, सोशल, फीलिंग और व्यवहार संबंधी समस्या से जूझ रहे बच्चों को काउंसलिंग के बाद उचित सलाह देते हैं। सीखने में आने वाली समस्याओं का आंकलन करके और सीखने में सुधार के लिए बेहतर स्टडी की प्लानिंग का निर्धारण करने मेें हेल्प करता है।
चाइल्ड फीलिंग्स को समझना
चाइल्ड काउंसलिंग बच्चों के व्यवहार को बेहतर करने में हेल्प करती है, कुछ बीमारियों, विकारों, मानसिक तनाव, अवसाद या चिंता से पीडि़त बच्चों, किशोरों पर केंद्रित है। चाइल्ड काउंसलिंग से बच्चे को अपने मुद्दों को अधिक स्पष्ट रूप से समझने और स्थितियों, भय, भ्रम, भावनाओं को बेहतर ढंग से समझने में हेल्प मिलती है और सबसे ऊपर, शांतिपूर्ण और खुशहाल जीवन जीने के लिए मन को कंट्रोल करने में भी हेल्प करती हैं।
अधिकर स्कूल्स में नहीं काउंसलर
आगरा कमिश्नरेट में सीबीएसई स्कूल की संख्या 154 है। इसमें से इंटर मीडिएट स्कूल्स की संख्या 101 है, वहीं हाईस्कूल की संख्या 53 है। सिटी कॉर्डिनेटर रामानंद चौहान ने बताया कि अधिकतर सीबीएसई स्कूल में काउंसलर्स है लेकिन जहां काउंसलर्स नहीं है वहां भी उनकी नियुक्ति के प्रयास किए जाएंगे। दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने जब स्कूल में काउंसलर्स होने के संबंध में पेरेंट्स से बात की तो पता चला कि शहर और देहात में बने अधिकतर स्कूल्स में काउंसलर्स नहीं हैं।
स्कूल मनोवैज्ञानिक बच्चों के बीच पनप रही टेंशन को सॉल्व करने में हेल्प करता है। इसके कुछ उदाहरण हैं, स्कूल मनोवैज्ञानिक कैसे बदलाव लाते हैं। केस स्टडी-1
टीचर ने देखा कि प्रियंका, एक अच्छी छात्रा है, पिछले कुछ दिनों से उसके व्यवहार में चेंज आया है, उसे ध्यान देने में कठिनाई हो रही थी। स्कूल में नियुक्त काउंसलर्स को यह पता लगाने के लिए कहा गया कि प्रियंका का व्यवहार इतना क्यों बदल गया है। स्कूल मनोवैज्ञानिक ने प्रियंका की काउंसलिंग की तो पता चला कि उसके पेरेंट्स अलग हो गए हैं और इस कठिन समय के लिए उसके पेरेंट्स को सुझाव दिए। प्रियंका के व्यवहार और फीलिंग सेहत में सुधार हुआ और वह अपने पेरेंट्स के साथ रिश्ते को लेकर अधिक सुरक्षित महसूस करने लगी।
केस स्टडी-2
-सर्जना चावला दयालबाग स्थित प्रिल्यूड पब्लिक स्कूल की छात्रा है। जिसका अक्सर दूसरों से झगड़ा होता रहता था। स्कूल मनोवैज्ञानिक ने उसे आराम करने, अपनी जरूरतों को पहचानने और अपने आक्रामक व्यवहार को कंट्रोल करने के सरल तरीके सिखाईं। सर्जना की मां और उसके टीचर्स ने सर्जना के बढ़ते तनाव को सुधार करने के लिए स्कूल मनोवैज्ञानिक द्वारा तैयार प्लान पर कार्य किया, सर्जना के साथियों और वयस्कों के साथ रिलेशन में सुधार होने लगा, उसके एग्जाम में अच्छे नंबर आए।
-स्कूल जाने में डर लगता है
-अपने स्कूल के काम में पिछड़ जाते हैं
-अक्सर अनुशासन को तोडऩा
-तलाक और मौत जैसे मामलों से मानसिक प्रभाव
-उदास या चिंतित महसूस करना
-आत्महत्या के बारे में सोचना
-अक्सर गुस्सा करना, कहना नहीं मानना क्लास में टीचर्स को खास निर्देश मिले हैं कि वे ऐसे बच्चों को चिन्हित करें, इनके व्यवहार में अचानक चेंज आया है, उनके पेरेंट्स बात करने के बाद ऐसे बच्चों की काउंसलिंग कराई जाती है ताकि उन्हें मानसिक रूप से मजबूत किया जा सके।
संजय तोमर, अध्यक्ष नफ्सा
सीबीएसई के सभी स्कूल में बच्चों की हेल्प के लिए काउंसलर्स को नियुक्त करने का रूल्स है, अधिकतर स्कूल्स में इनकी नियुक्ति है, जहां नहीं है, वहां भी प्रयास किए जाएंगे। स्कूल में काउंसलर होने से उनको नई दिशा मिलती है, साथ ही पेरेंट्स को भी बच्चों के व्यवहार को समझना आसान होता है।
रामानंद चौहान, सीबीएसई सिटी कॉर्डिनेटर
-केसी गुरनानी, वरिष्ठ मनोचिकित्सक काउंसलर्स के पास विशेष प्रशिक्षण होता है कि बच्चों की समस्याओं और प्रश्नों को हल करने, निर्णय लेने और खुद के लिए खड़े होने में कैसे मदद की जाए। काउंसलर का काम आपके बच्चे की समस्या को गंभीरता से लेना और उसका समाधान ढूंढने में मदद करना है।
रचना सिंह, मनोवैज्ञानिक आगरा कॉलेज आगरा