वजूद बचाने को जूझ रहा चीनी का रोजा
आगरा. जिस इमारत की चमक देखकर बादशाह शाहजहां भी हैरान रह गया था, जो इमारत विलुप्त हो चुकी ईरानी शैली की पहचान है। अब वही ऐतिहासिक इमारत चीनी का रोजा अपने वजूद बचाने को जद्दोजहद कर रही है। इसकी देखरेख और संरक्षण का कार्य आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया संभालता है, लेकिन विभागीय लापरवाही का असर है कि ऐतिहासिक स्मारक अपनी पहचान खोने की तरफ बढ़ रहा है।
खुद में अनूठा है स्मारक
चीनी का रोजा जिस तरह का स्मारक है, वो अपने आप में अनूठा है। इसकी खूबसूरती देखकर शाहजहां दीवाने हो गए थे। यमुना नदी के किनारे स्थित इस स्मारक को शाहजहां के वजीर शुक्रुल्लाह शीराजी अफजल खां 'अल्लामीÓ ने बनवाया था। शीराजी ने खुद ही यह मकबरा अपने लिए साल 1628 से 1639 के बीच बनवाया था, जिसकी खूबसूरती को देखकर मुगल शहंशाह शाहजहां भी हैरान रह गए थे। नीले रंग के टाइलों से बना यह मकबरा अपनी चमक के लिए ही मशहूर था। यह इमारत ईरान की विलुप्त हो चुकी काशीकरी कारीगरी से बनी है। नीले रंग के ग्लेज्ड टाइल्स से बना चीनी का रोजा की तरह समरकंद में कई स्मारक बने हैं। अफजल खां की मृत्यु 1639 में लाहौर में हुई, लेकिन उनकी इच्छा के मुताबिक आगरा में चीनी के रोजा में दफनाया गया।
जटिल था काशीकरी कारीगरी का निर्माण
काशीकरी शैली का निर्माण कार्य बहुत जटिल था। इस तरह के निर्माण में ईंट की सतह पर पहले दो इंच मोटा प्लास्टर किया जाता था। फिर उस पर एक इंच मोटी एक महीन परत चढ़ाई जाती थी। जब वह नम होती थी, तो उस पर रूपांकन करते हए वर्गाकार आलेख बना दिया जाता था। रूपांकन के अनुसार उस पर टाइल लगा दी जाती थी। इन टाइल्स को बनाने की विधि भी काफी जटिल थी। अलग अलग प्रकार के रसायन, बालू, पत्थर और अन्य वस्तुएं प्रयोग कर इन टाइल्स को बनाकर अलग पद्धति से विशेष रूप से बनी भट््ठी में गर्म कर पिघलाया जाता था। जिससे टाइल और उसकी चमक हजार वर्ष तक बनी रहती थी। लेकिन जटिल होने के चलते यह कला खत्म हो गई।
टूट गई ईरानी शैली की टाइल्स
चीनी के रोजा की जिस इमारत की चमक जिन टाइल्स से हुआ करती थी, वे टाइल्स अब कहने को बची हैं। ईरानी कला की इन टाइल्सों का कुछ हिस्सा ही अब बचा है, जबकि आधे से अधिक टाइल्स टूटकर गिर गईं। स्मारक की दीवारों का प्लास्टर झड़ चुका है, लेकिन एएसआई द्वारा इन टाइल्स को बचाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया।
ऐतिहासिक इमारत में अव्यवस्थाओं का अंबार है। स्मारक को तो नुकसान पहुंच ही रहा है इसके साथ ही अतिक्रमण भी इसकी खूबसूरती पर दाग बन गया है। स्मारक में अंदर ही टिन शेड, पत्थर के टुकड़े सहित अन्य कबाड़ की चीजें डाल दी गई हैं। एएसआई की लापरवाही से ऐसा लगता है जैसे स्मारक कूड़ाघर हो। अमेठी से आगरा घूमने आई थी। मुख्य स्मारकों के बारे में पता था। इसके अलावा किसी भी अन्य ऐतिहासिक स्मारक के बारे में कोई जानकरी नहीं थी। एक परिचित से चीनी का रोजा स्मारक के बारे में जानकारी मिली। -डॉ। नायब फातिमा, पर्यटक आर्कियोलॉजिक सर्वे ऑफ इंडिया की लापरवाही से शहर की ऐतिहासिक इमारतों को लगातार नुकसान पहुंचा रहा है। इनका ठीक से प्रचार प्रसार हो तो पर्यटक आगरा में रुकेंगे और इससे व्यापार में भी बढ़ोत्तरी होगी।
-भूपेंद्र वर्मा युवा जिलाध्यक्ष स्वर्णकार समाज ऐतिहासिक इमारतों के बारे में पर्यटकों को जानकारी देनी चहिए। इससे पर्यटक शहर के पुरे इतिहास को तो जान पाएंगे। विभाग को इसके लिए प्रचार प्रसार की जरूरत है।
नरेंद्र कुमार